शिवलिंग का जल पीना चाहिए Shivling ka jal pina chahiye : हेलो दोस्तो नमस्कार आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से बताएंगे शिवलिंग पर चढ़े हुए जल को पीना चाहिए या नहीं क्योंकि हिंदू धर्म में भगवान शिव को देवताओं में सबसे उच्च स्थान प्रदान किया गया है इसके अलावा भगवान शिव की महिमा का वर्णन वेद पुराणों और कई प्रकार की फिल्मों में भी देखने को मिलता है.
यहां तक कि वेद पुराणों में यह भी कहा गया है अगर कोई व्यक्ति सच्चे दिल से भगवान शिव को सोमवार के दिन जल अर्पण करता है तो उसकी हर एक मनोकामना पूर्ण होती है इसीलिए आज हम आप लोगों को बताएंगे कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने का क्या महत्व है और इसे पीना चाहिए या नहीं
ऐसे में अगर आप इस जानकारी को पूर्णता प्राप्त करना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें तो आइए जानते हैं भगवान शिव का जल से क्या संबंध है
- 1. भगवान शिव का जल क्यों अर्पण किया जाता है ?
- 2. शिवलिंग का जल पीना चाहिए या नहीं | Shivling ka jal pina chahiye ya nhi
- 3. शिवलिंग पर किस पात्र से जल अर्पण करना चाहिए ?
- 4. शिवलिंग पर जल किस प्रकार चढ़ाना चाहिए ?
- 5. किस दिशा की ओर मुख करके भगवान शिव को जल अर्पण करना चाहिए ?
- 6. शिवलिंग पर जल चढ़ाने के फायदे | Shivling par jal chadane ke fayde
- 7. भगवान शिव को नीलकंठ नाम से क्यों संबोधित किया गया और उन पर जल क्यों चढ़ाया जाता है ?
- 8. FAQ : शिवलिंग का जल पीना चाहिए
- 8.1. भोलेनाथ का कंठ नीला क्यों है ?
- 8.2. भगवान शिव की पत्नी का क्या नाम है ?
- 8.3. क्या शिवलिंग का पानी पीना चाहिए
- 9. निष्कर्ष
भगवान शिव का जल क्यों अर्पण किया जाता है ?
वेद पुराणों में कहा गया है एक बार भगवान शिव समुद्र मंथन के लिए निकले थे. जहां पर उन्होंने कालकूट नामक विश को अपने कंठ में धारण कर लिया था जिसकी वजह से भगवान शिव का पूरा शरीर और मस्तिष्क में बहुत ज्यादा गर्मी छा गई थी.
जिसे कम करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव के ऊपर कई प्रकार की जड़ी बूटियों से युक्त जल डाला था इसीलिए वेद पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है इसी गर्मी को कम करने के लिए भगवान शिव के ऊपर जल और दूध अर्पण किया जाता है.
शिवलिंग का जल पीना चाहिए या नहीं | Shivling ka jal pina chahiye ya nhi
अक्सर लोगों के मन में सवाल रहता है कि शिवलिंग का जल पीना चाहिए या नहीं इनमें से कुछ लोगों का कहना होता है कि शिवलिंग का जल पीना बहुत बड़ा पाप माना जाता है तो वहीं कुछ लोग कहते हैं कि शिवलिंग का जल पीना मनुष्य के लिए बहुत ज्यादा लाभकारी होता है.
इसलिए आज मैं आप लोगों के इस प्रश्न का सही उत्तर दूंगी वह भी पूरे प्रमाण के साथ इसकी जानकारी के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें.
शिवलिंग पर किस पात्र से जल अर्पण करना चाहिए ?
अगर आप चाहते हैं कि भगवान शिव की महिमा आप पर बनी रहे और भगवान शिव आपसे कभी रुष्ट न हो तो इसके लिए आप जब भी शिवलिंग पर जल चढ़ाने जाए तो इसके लिए आप तांबे, चांदी, कासे. इन सभी पात्र से भगवान शिव के ऊपर जल अर्पण करें अगर आप स्टील के बने हुए पात्र से भगवान शिव पर जल अर्पण करेंगे तो भगवान शिव आप से रुष्ट हो जाएंगे.
शिवलिंग पर जल किस प्रकार चढ़ाना चाहिए ?
जब भी आप शिवलिंग पर जल चढ़ाएं तो एक बात का ध्यान रखें कि शिवलिंग पर कभी खड़े होकर जल नहीं चढ़ाना चाहिए ऐसा करने से भगवान शिव रुष्ट हो जाते हैं और उनकी कृपा आपको कभी प्राप्त नहीं होगी इसीलिए आप जब भी शिवलिंग पर जल चढ़ाएं तो हरदम बैठकर ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं
किस दिशा की ओर मुख करके भगवान शिव को जल अर्पण करना चाहिए ?
भगवान शिव को जल अर्पण करने के लिए उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके जल अर्पण करना शुभदायक फलदायक दोनों माना जाता है. क्योंकि उत्तर दिशा में शिवजी का बाया अंग होता है.
जिसमें माता पार्वती भी निवास करती हैं इसीलिए इस दिशा की ओर मुख करके जल अर्पण करने से आपको शिव और पार्वती की दोनों की कृपा प्राप्त होगी.
शिवलिंग पर जल चढ़ाने के फायदे | Shivling par jal chadane ke fayde
जो व्यक्ति शिवलिंग पर सावन के सोमवार को नियमित सोमवार जल अर्पण करता है तो उसे कई प्रकार के शुभ फल प्राप्त होते हैं जैसे :
- शिवलिंग पर जल चढ़ाने से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से पाप रहित हो जाता है.
- अगर कोई कुंवारा लड़का शिवलिंग पर जल चढ़ाता है तो उसे बहुत सुंदर दुल्हन मिलती है.
- यदि आप किसी प्रकार की समस्या से परेशान हैं तो सच्चे दिल से भोलेनाथ के शिवलिंग पर जल चढ़ाकर उस समस्या से छुटकारा पाने की प्रार्थना करें तो निश्चित ही आप उस समस्या से बाहर निकल पाएंगे.
- यदि कोई महिला संतान प्राप्ति के लिए शिवलिंग पर जल अर्पण करती हैं तो उसे बहुत जल्दी पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.
- शिवलिंग पर जल चढ़ाने से शीतलता प्रदान होती है.
- शिवलिंग पर चांदी के पात्र जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं.
- यदि कोई व्यक्ति सावन के हर सोमवार को भगवान शिव को जल अर्पण करता है तो उसके मन से मलीनता दूर हो जाती हैं और फिर आपके अंदर बहुत अच्छे अच्छे विचार आने लगेंगे.
- शिवलिंग पर जल चढ़ाने से मन में भक्ति भावना उत्पन्न होती है.
भगवान शिव को नीलकंठ नाम से क्यों संबोधित किया गया और उन पर जल क्यों चढ़ाया जाता है ?
एक बार दुर्वासा ऋषि अपने कुछ शिष्यों के साथ में शिवाजी के दर्शन के लिए जा रहे थे जहां पर आधे मार्ग पर उन्हें देवराज इंद्र नजर आए फिर इंद्र ने दुर्वासा ऋषि को प्रणाम किया तो फिर ऋषि ने इंद्र को विष्णु का परिजात पुष्प प्रदान किया लेकिन इंद्र अपने पद के घमंड में इतना ज्यादा चूर थे कि उन्होंने उस पुष्प को अपने ऐरावती हाथी के माथे से स्पर्श करा दिया तब उस फूल में विद्यमान सारी शक्तियां हाथी को प्राप्त हो गई.
जिसकी वजह से हाथी विष्णु के समान बहुत ज्यादा शक्तिशाली और ताकतवर हो गया और फिर उस हाथी ने इंद्र का परित्याग करके उस फूल को अपने पैरों तले कुचल कर वहां से चला गया यह सब कुछ देखकर दुर्वासा ऋषि बहुत ज्यादा क्रोधित हो गए. फिर उन्होंने इंद्र को श्रप दिया कि तुम अभी से लक्ष्मी हीन हो जाओगे जिसकी वजह से लक्ष्मी मां तुरंत स्वर्ग छोड़ कर चली गई.
जिसके बाद इंद्र और अन्य देवता बहुत ज्यादा निर्धन और निर्बल हो गए. जब यह बात असुरों को पता चली कि इंद्र व अन्य देवता निर्धन और निर्बल हो गए हैं तो उन्होंने इंद्र बाकी के अन्य देवताओं के ऊपर आक्रमण करने की योजना बनाई फिर सभी ने मिलकर स्वर्ग पर आक्रमण करके उस पर अपना अधिकार जमा लिया.
जैसे ही इंद्र के स्वर्ग पर असुरों ने आक्रमण करके उसे अपना बना लिया, तो फिर इंद्र तथा अन्य देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उन्होंने ब्रह्मा जी से खोया हुआ वैभव द्वारा प्राप्त करने की प्रार्थना की तो ब्रह्मा जी ने कहा दुर्वासा ऋषि के द्वारा दिए गए विष्णु पुष्प के अपमान के कारण तुम्हारे स्वर्ग की लक्ष्मी चली गई है.
इसे दोबारा प्राप्त करने का एक रास्ता है कि आप विष्णु नारायण की कृपा प्राप्त करें. तभी तुम अपने खोए हुए वैभव को दोबारा प्राप्त कर पाओगे. तब इंद्र ने ब्रह्मा जी से विष्णु के पास उनके साथ चलने की आग्रह की तो ब्रह्मा जी ने इंद्र के साथ में विष्णु भगवान के पास पहुंचे, सभी छोटे-मोटे देवता और इंद्र सहित भगवान विष्णु के चरणों में गिर गए और बोले हे प्रभु आपके चरणों में बारंबार नमन है.
इसी के साथ में उन्होंने भगवान विष्णु से आग्रह की है प्रभु मुझे क्षमा कर दीजिए और मेरा खोया हुआ वैभव मुझे वापस दे दीजिए इतना कहकर इंद्र भगवान और बाकी के देवता एक ही रट लगा रहते थे रक्षा करो प्रभु हमारी रक्षा करो.
उनकी इस पीड़ा को देखते हुए भगवान विष्णु ने उन्हें एक रास्ता बताया जिसमें उन्होंने कहा कि तुम सभी देवता लोगों आसुर लोगों से मित्रता करनी होगी. उसके बाद उन असुर लोगों के साथ में समुद्र मंथन करना होगा जिसमें समुद्र के अंदर छिपे हीरे मोती जावरात के माध्यम से फिर से अपने वैभव को प्राप्त कर सकोगे.
जैसे इंद्र ने भगवान शिव की आवाज सुनी तो उन्होंने प्रश्न किया हे प्रभु वह तो हमारे शत्रु है तो वह हम से मित्रता क्यों करेंगे ? भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम उनसे बताओ कि समुद्र मंथन में अमृत का एक भंडार है अगर हम उन्हें प्राप्त करेंगे, तो हमेशा के लिए अमर हो सकते हैं तो वह तुमसे मित्रता कर लेंगे.
इतना सुनकर इंद्र तथा अन्य देवता लोग असुर लोगों के पास संधि का प्रस्ताव लेकर गए. जहां उन्होंने असुर लोगों को अमृत के बारे में बताकर उन्हें समुद्र मंथन के लिए तैयार कर लिया. फिर सभी देवता और असुर उस समुद्र मंथन के लिए निकल पड़े समुद्र के पास पहुंचकर उन लोगों ने वासुक नाग की रस्सी बना कर समुद्र मंथन करने लगे.
तभी समुद्र मंथन के दौरान उस समुद्र से कालाकूट नामक विष निकला जो बहुत ही जहरीला था जिसकी वजह से आसपास के सारे स्थान और चारों तरफ की दिशाएं बहुत ज्यादा जलने लगी जिसकी वजह से सभी असुर और देवताओं में हाहाकार मच गई.
जिसमें वहां पर मौजूद सभी देवता और राक्षस उस विष की गर्मी से जलने लगी और यह सब कुछ देख कर ऋषि मुनि तथा अन्य देवता भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे हे प्रभु मुझे इस समस्या से बाहर निकालो तमाम प्रकार की प्रार्थना याचना के बाद भगवान शिव ने उस विष को पीने के लिए तैयार हो गए और फिर भगवान शिव ने भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए उस विष को पी गए और फिर वह विष भगवान शिव के कंठ में ही रुक गया.
जिसकी प्रवाह की वजह से उनके गले का कंठ नीला पड़ गया तभी से भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से संबोधित किया जाने लगा. इसी के साथ में यह भी मान्यता है कि भगवान शिव जब उस विष को पान कर रहे थे तब उस विश की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई थी जिन्हें कुछ सर्प बिच्छू वगैरह ने पान कर लिया था जिसकी वजह से वह जहरीले हो गए थे.
जैसे ही विष प्रभाव खत्म हो गया तो सभी देवता बहुत प्रसन्न हो गए और भगवान की जय जय कार मनाई. यहां तक कि यह भी माना जाता है कि जब भगवान शिव ने विष को सेवन किया था. तब उनकी चेतना को वापस लाने के लिए उनके सर पर कुछ शक्तिशाली जड़ी बूटियों से युक्त जल गिराया गया था जिसकी वजह से उनके शरीर में चेतना दोबारा वापस आई थी इसीलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा चलती है.
FAQ : शिवलिंग का जल पीना चाहिए
भोलेनाथ का कंठ नीला क्यों है ?
भगवान शिव की पत्नी का क्या नाम है ?
क्या शिवलिंग का पानी पीना चाहिए
विदवेसर संगीता के 22 अध्याय के 18 लोक में यह प्रमाण बताया गया है जिस जल को शिवलिंग पर चढ़ाया जाता उस जल को त्रिपवेदम मतलब कि 3 बार थोड़ा-थोड़ा करके पीने से कायिक वाचिक और मानसिक तीनों प्रकार के रोग दूर हो जाते हैंसनापायित्व विधानेन यो लिगस्नपनोदकम त्रि:पिबेत त्रिविध पाप तस्येयाशु विनशयन्ति
निष्कर्ष
दोस्तों आज हमने आप लोगों को इस आर्टिकल के माध्यम से शिवलिंग का जल पीना चाहिए या नहीं इसके विषय में जानकारी प्रदान की है अगर आपने इस लेख को अंत तक पढ़ा होगा तो आपको शिवलिंग पर चढ़े जल को पीना चाहिए या नहीं इसकी जानकारी प्राप्त हो गई होगी.