कनकधारा स्तोत्र : प्रणाम गुरुजनों आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्तोत्र बताएंगे और उसका मंत्र भी बताइए क्या आप जानते हैं कि कनकधारा पाठ माता लक्ष्मी का पाठ माना जाता है जो भी मनुष्य इस पाठ को करता है उसे माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन से आर्थिक तंगी दूर हो जाती है और उस व्यक्ति को धन लाभ होता है कनक धारा पाठ माता लक्ष्मी का बहुत ही प्रभावशाली पाठ माना जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि कनकधारा का पाठ करने से माता लक्ष्मी जल्द ही प्रसन्न हो जाती है इसीलिए माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कनकधारा पाठ का प्रयोग करें कनकधारा पाठ का प्रयोग धन प्राप्ति के लिए किया जाता है कनकधारा पाठ का विधि विधान सहित पाठ करें विधि सहित कनक धारा पाठ कैसे करते हैं यह जानने के लिए आपको हमारे इस लेख को पढ़ना होगा अगर आप हमारे इस लेख को पढ़ते हैं.
तो आपको कनकधारा पाठ कैसे करते हैं क्यों किया जाता है और इसके फायदे क्या है इन सारी विषयों के बारे में बताएंगे दोस्तों आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्तोत्र और कनकधारा पाठ करने की विधि तथा इसके फायदे क्या है इसके बारे में बताएंगे इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी अन्य जानकारी देने का प्रयास करेंगे तो हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
PDF Name | कनकधारा स्तोत्र | Kanakadhara Stotram |
PDF Size | 110.75 MB |
PDF Category | Religion & Spirituality |
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- 1. कनकधारा पाठ क्या है ? | Kanakadhara stotram kya hai ?
- 2. कनकधारा स्तोत्र किसने लिखा हैं ?
- 3. कनकधारा स्त्रोत | Kanakadhara stotram
- 3.1. अर्थ
- 3.2. अर्थ
- 3.3. अर्थ
- 3.4. अर्थ
- 3.5. अर्थ
- 3.6. अर्थ
- 3.7. अर्थ
- 3.8. अर्थ
- 3.9. अर्थ
- 3.10. अर्थ
- 3.11. अर्थ
- 3.12. अर्थ
- 3.13. अर्थ
- 3.14. अर्थ
- 3.15. अर्थ
- 3.16. अर्थ
- 4. Kanakadhara Stotra Hindi PDF | कनकधारा स्तोत्र पीडीऍफ़
- 5. कनकधारा पाठ करने की विधि | Kanakadhara stotram karne ki vidhi
- 6. कनकधारा स्तोत्र का रोज कितना पाठ करना चाहिए ?
- 7. कनकधारा स्तोत्र के फायदे | Kanakadhara stotram ke fayde
- 8. FAQ : कनकधारा स्तोत्र
- 8.1. कनकधारा स्तोत्र का पाठ कैसे करना चाहिए?
- 8.2. कनकधारा स्तोत्र पाठ व मंत्र जाप कब और कैसे करना चाहिए?
- 8.3. कनकधारा स्तोत्र से क्या होता है?
- 9. निष्कर्ष
कनकधारा पाठ क्या है ? | Kanakadhara stotram kya hai ?
कनकधारा पाठ का अर्थ होता है स्वर्ण की धारा इस स्रोत के द्वारा माता लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है इस कनकधारा स्तोत्र को आदि गुरु शंकराचार्य जी ने लिखा था माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उन्हें सोने की वर्षा कराने के लिए इस सिद्धि मंत्र का प्रयोग किया जाता है कनकधारा स्तोत्र का पाठ जल्द ही शीघ्र फल देने लगता है और आपकी दरिद्रता को दूर कर देता है।
कनकधारा स्तोत्र किसने लिखा हैं ?
कनकधारा पाठ की रचना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की थी कनकधारा का अर्थ होता है स्वर्ण की धारा इस पाठ के जरिए माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उन्हें सोने की वर्षा कराई जाती है कनकधारा स्तोत्र का पाठ शीघ्र ही फल देने वाला होता है.
इस पाठ से दरिद्रता का नाश भी हो जाता है जो व्यक्ति नियमित रूप से इसका पाठ करता है उसे धन संबंधित सभी प्रकार के दुख दूर हो जाते हैं और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस कनकधारा पाठ को करने से आपके जीवन में रुपए पैसे की अनावश्यक वर्षा कभी भी आपको धन के अभाव का अनुभव नहीं होता है।
कनकधारा स्त्रोत | Kanakadhara stotram
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
अर्थ
जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।
अर्थ
माता लक्ष्मी कमल दल पर आती-जाती और मंडराती रहती है उसी प्रकार जो मूल शत्रु होते हैं श्री हरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेम पूर्वक जाति और लज्जा के कारण लौट आते हैं उस समुद्री कन्या माता लक्ष्मी को मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।
अर्थ
जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥
अर्थ
शेषनाग पर शयन करते भगवान श्री हरि की धर्म-पत्नी श्री लक्ष्मी जी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य देने वाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेम के कारण आधे खुले हैं, लेकिन साथ ही निर्निमेष नेत्रों से देखने वाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने पास पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥
अर्थ
जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥
अर्थ
जिस तरह भ्रमरी अध-खिले पुष्पों से सजे तमाल के वृक्ष का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो भगवान विष्णु के रोमांच से शोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी की कटाक्ष-लीला मेरे लिए मंगल देने वाली हो।
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥
अर्थ
समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥
अर्थ
भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर
धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥
अर्थ
विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥
अर्थ
जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥
अर्थ
हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥
अर्थ
कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥
अर्थ
कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥
अर्थ
जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥
अर्थ
भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥
अर्थ
दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।
कमले कमलाक्षवल्लभेत्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥
कमल जैसे नेत्रों वाले केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं दीनहीन लोगों में सबसे आगे हूँ। अतः तुम्हारी कृपा का मैं स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों की तरह कटाक्षों द्वारा मेरी ओर दृष्टिपात करो।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥
जो व्यक्ति इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन की माता भगवती लक्ष्मी की वंदना करते हैं, वे इस पृथ्वी पर महान गुणवान और बहुत भाग्यवान हैं और विद्वान भी उनके मनोभाव जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
Kanakadhara Stotra Hindi PDF | कनकधारा स्तोत्र पीडीऍफ़
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कनकधारा पाठ करने की विधि | Kanakadhara stotram karne ki vidhi
अगर आप कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको नीचे दिए गए सारे बिंदुओं को पढ़ना होगा।
- इस पाठ को करने के लिए आपको सबसे पहले उस का शुभ मुहूर्त निकालना चाहिए कनकधारा पाठ करना बहुत ही आसान है जो व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना चाहता है उनसे सबसे पहले कनकधारा यंत्र और कनकधारा स्त्रोत अपने घर में ले आना चाहिए
- कनकधारा स्त्रोत का पाठ करने के लिए सबसे पहले आपको स्नान आदि से संपन्न होकर अपने सामने कनकधारा यंत्र को रख लेना है।
- उसके बाद उस कनकधारा यंत्र की श्रद्धा पूरब पूजा करना है उसकी धूप दीप जलाकर आरती करना है।
- उसके बाद कनकधारा का पाठ करने की शुरुआत कर दें।
- जैसे ही आपका यह कनकधारा पाठ संपूर्ण हो जाता है इसके बाद माता लक्ष्मी से अपने मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करे।
- अगर आप कनकधारा पाठ सुबह के समय नहीं कर पा रहे हैं तो आप उसी प्रकार इस कनकधारा पाठ को शाम के समय भी कर सकते हैं।
कनकधारा स्तोत्र का रोज कितना पाठ करना चाहिए ?
अगर आप प्रतिदिन कनकधारा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो आपको अनेक लाभ प्राप्त होते हैं लेकिन आपको कनकधारा स्त्रोत का पाठ रोज नियमित रूप से 13 बार करना चाहिए।
कनकधारा स्तोत्र के फायदे | Kanakadhara stotram ke fayde
अगर आप जानना चाहते हैं कि कनकधारा स्त्रोत के कितने फायदे होते हैं तो नीचे दिए गए बिंदुओं को जरूर पढ़ें।
- अगर कोई व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत का पाठ करता है तो उसे माता लक्ष्मी की कृपा और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है माता लक्ष्मी का आशीर्वाद उस व्यक्ति के ऊपर हमेशा बना रहता है और इस कलर धारा स्त्रोत का पाठ करने से माता लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न रहती है।
- अगर आपके पास धन की कमी है और आप उस धन की कमी को दूर करना चाहते हैं तो कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें इससे आपको कभी भी धन की कमी नहीं होगी।
- अगर आप आर्थिक तंगी से बहुत परेशान है आप कुछ आर्थिक तंगी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो इसके लिए आप कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें इससे आपके घर में हमेशा खुशियां बनी रहेंगी।
FAQ : कनकधारा स्तोत्र
कनकधारा स्तोत्र का पाठ कैसे करना चाहिए?
कनकधारा स्तोत्र पाठ व मंत्र जाप कब और कैसे करना चाहिए?
कनकधारा स्तोत्र से क्या होता है?
निष्कर्ष
दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्त्रोत के बारे में बताया और यह भी बताया कि कनकधारा पाठ करने की विधि तथा उसके क्या-क्या फायदे हैं इसके अलावा कनकधारा पार्ट से जुड़े अन्य जानकारी भी देने का प्रयास किया है हम उम्मीद करते हैं कि आज का हमारा यह लेख आपको अच्छा लगा होगा और आप के लिए उपयोगी भी साबित हुआ होगा।