पारसनाथ चालीसा | parasnath chalisa : हेलो दोस्तों नमस्कार स्वागत है आपका हमारे आज के इस लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से parasnath chalisa के बारे में बताने वाले हैं पारसनाथ जैन धर्म के देवता है पारसनाथ जैन धर्म के 23 वें भगवान है जैन धर्म के सभी लोग संपूर्ण भक्ति भाव के साथ श्री पारसनाथ जी की चालीसा का पाठ हृदय से करते हैं.
पारसनाथ के नाम से स्तुति भी की जाती है पारसनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था भगवान पारसनाथ के पिता का नाम राजा अश्वसेन और उनकी माता का नाम रानी वामदेवी था भगवान पारसनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ था इन्हें सम्मेद शिखर पर मोक्ष की प्राप्ति हुई थी भगवान पारसनाथ के बाद अगले तीर्थक श्री महावीर को माना गया है.
इसीलिए आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से parasnath chalisa के बारे में जानकारी देंगे इसके अलावा पारसनाथ की चालीसा का पाठ करने की विधि क्या है और पारसनाथ चालीसा पाठ करने के लाभ कौन से हैं उन सभी विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे अगर आप हमारे इस लेख को ध्यानपूर्वक शुरू से अंत तक पढ़ते हैं तो आपको पारसनाथ के बारे में और उनकी चालीसा के बारे में संपूर्ण जानकारी अवश्य प्राप्त होगी.
- 1. पारसनाथ कौन थे ? | Parasnath kaun hai ?
- 2. पारसनाथ चालीसा pdf | parasnath chalisa pdf
- 3. पारसनाथ चालीसा | Parasnath chalisa
- 4. पारसनाथ चालीसा का पाठ करने की विधि | Parasnath Chalisa ka paath karne ki vidhi
- 5. पारसनाथ चालीसा का पाठ करने के लाभ | Parasnath Chalisa ka paath karne ke labh
- 6. पार्श्वनाथ भगवान की आरती | Parshwanath bhagwan aarti
- 7. FAQ : parasnath chalisa
- 7.1. श्री पारसनाथ के पूर्ववती तीर्थकर कौन थे ?
- 7.2. भगवान पारसनाथ के बाद अगले तीर्थ कौन थे ?
- 7.3. भगवान पारसनाथ का जन्म स्थान कहां का है ?
- 8. निष्कर्ष
पारसनाथ कौन थे ? | Parasnath kaun hai ?
पारसनाथ एक प्रकार के भगवान हैं जिन्हें जैन धर्म का भगवान कहा जाता है पारसनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे भगवान पारसनाथ का जन्म आज के 2900 वर्ष पहले हुआ था इनका जन्म वाराणसी गांव में हुआ था पारसनाथ इक्ष्वाकु वंश के थे इनके पिता का नाम राजा अश्वसेन था और इनकी माता का नाम रानी वामदेवी था इनकी माता ने पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को महा तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया था.
जिसके अंग पर सर्प चित्र बना था जैन धर्म के मुताबिक ऐसा कहा गया है कि वामादेवी जब गर्भवती थी तो एक बारी इनके स्वप्न में सर्प दिखाई दिया था जिसके कारण उनके पुत्र होने पर उसके अंग पर शर्ट चित्र था रामादेवी का जीवन राजकुमारी के रूप में व्यतीत हुआ था भगवान पारसनाथ ने काशी में 83 दिन तक तपस्या की थी तपस्या के 84 दिन इन्होंने ज्ञान को प्राप्त किया था भगवान पारसनाथ ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए तीर्थ कार जैन धर्म के चार मुख्य व्रत सत्य , अहिंसा , अस्तेय और अपरिग्रह की शिक्षा ली थी.
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पारसनाथ चालीसा | Parasnath chalisa
दोहा
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।|
।।चौपाई।।
पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।
तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा।
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा की आंखों के तारे।
काशीजी के स्वामी कहाए, सारी परजा मौज उड़ाए।
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुंचे।
हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जंगल में गई सवारी।
एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर।
तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते।
तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया।
निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे।
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र नवकार सुनाया।
मरकर वो पाताल सिधाए, पद्मावती धरणेन्द्र कहाए।
तपसी मरकर देव कहाया, नाम कमठ ग्रंथों में गाया।
एक समय श्री पारस स्वामी, राज छोड़कर वन की ठानी।
तप करते थे ध्यान लगाए, इक दिन कमठ वहां पर आए।
फौरन ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना।
बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई।
बहुत अधिक पत्थर बरसाए, स्वामी तन को नहीं हिलाए।
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा में चित लाए।
धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।
पद्मावती ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया।
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया।
यही जगह अहिच्छत्र कहाए, पात्र केशरी जहां पर आए।
शिष्य पांच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया, सबने जैन धरम अपनाया।
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहां सुखी थी परजा सगरी।
राजा श्री वसुपाल कहाए, वो इक जिन मंदिर बनवाए।
प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।
वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता।
मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया।
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।
गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है।
वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अंदर।
उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी।
जो अहिच्छत्र हृदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे।
पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इकदम घटती हो।
है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी।
रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी-नर।
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाए, हाथ जोड़कर शीश नवाए।
सोरठा
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगंध अपार, अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।
पारसनाथ चालीसा का पाठ करने की विधि | Parasnath Chalisa ka paath karne ki vidhi
अगर आप में से कोई भी व्यक्ति पारसनाथ चालीसा का पाठ करना चाहता है तो इस व्यक्ति को आज हम पारसनाथ चालीसा का पाठ करने की विधि के बारे में बताएंगे जो कि इस प्रकार है ;
- पारसनाथ चालीसा का पाठ करने के लिए सबसे पहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे.
- उसके पश्चात पारसनाथ की मूर्ति को अपने घर के मंदिर में स्थापित करें.
- उसके बाद विधि – विधान पूर्वक पारसनाथ की मूर्ति की पूजा करें.
- धूप – दीप जलाकर उनकी आरती करें.
- उसके पश्चात पारसनाथ चालीसा का पाठ करें.
पारसनाथ चालीसा का पाठ करने के लाभ | Parasnath Chalisa ka paath karne ke labh
अगर आप में से कोई भी व्यक्ति पारसनाथ चालीसा का पाठ करता है तो उस व्यक्ति को कई प्रकार के चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं इसीलिए आज हम आप लोगों को पारसनाथ चालीसा का पाठ करने के कुछ ऐसे चमत्कारी लाभ बताएंगे इनको पढ़ने के बाद आप अवश्य ही पारसनाथ चालीसा का पाठ करेंगे.
- पारसनाथ चालीसा का पाठ करने से दरिद्रता दूर हो जाती है.
- भगवान पारसनाथ की चालीसा पढ़ने से संतान ही महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है.
- अगर आप में से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में धन की कमी के कारण अत्यधिक परेशान रहता है तो उसे पारसनाथ चालीसा का पाठ करना चाहिए पारसनाथ चालीसा का पाठ करने से धन-धान्य की कमी नहीं होती है.
पार्श्वनाथ भगवान की आरती | Parshwanath bhagwan aarti
ओं जय पारस देवा स्वामी जय पारस देवा !
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा |
पौष वदी ग्यारस काशी में आनंद अतिभारी,
अश्वसेन वामा माता उर लीनों अवतारी | ओं जय..
श्यामवरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं,
सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहैं | ओं जय..
जलते देख नाग नागिन को मंत्र नवकार दिया,
हरा कमठ का मान, ज्ञान का भानु प्रकाश किया | ओं जय..
मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करूँ किसकी,
तुम बिन दाता और न कोर्इ, शरण गहूँ जिसकी | ओं जय..
तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अंतर्यामी,
स्वर्ग-मोक्ष के दाता तुम हो, त्रिभुवन के स्वामी | ओं जय..
दीनबंधु दु:खहरण जिनेश्वर, तुम ही हो मेरे,
दो शिवधाम को वास दास, हम द्वार खड़े तेरे | ओं जय..
विपद-विकार मिटाओ मन का, अर्ज सुनो दाता,
सेवक द्वै-कर जोड़ प्रभु के, चरणों चित लाता | ओं जय..
FAQ : parasnath chalisa
श्री पारसनाथ के पूर्ववती तीर्थकर कौन थे ?
भगवान पारसनाथ के बाद अगले तीर्थ कौन थे ?
भगवान पारसनाथ का जन्म स्थान कहां का है ?
निष्कर्ष
दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से parasnath chalisa के बारे में बताया इसके अलावा हमने आपको इस लेख में पारसनाथ कौन हैं पारसनाथ चालीसा का पाठ करने की विधि क्या है और पारसनाथ चालीसा पाठ करने के लाभ क्या है पारसनाथ भगवान की आरती के बारे में भी संपूर्ण जानकारी दी है अगर आपने हमारे इस लेख को अच्छे से पढ़ा है तो आपको इन सभी विषयों के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी उम्मीद करते हैं.
हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी.