एक yogi को किन बातो का ध्यान रखना चाहिये ? और उसे Dhyaan ko kab knha aur kaise karna cahiye ? दोस्तों हम सभी किसी नई Sadhna को जानने के तुरंत बाद ही उस साधना को करने के लिए व्याकुल हो उठते है और ऐसे में जानकारी के आभाव के चलते हम सभी कई गलतियाँ कर देते है जिसका परिणाम यह प्राप्त होता है की हमे इच्छित सफलता प्राप्त नही होती और फिर हमे उस Yog या साधना पर से भरोसा भी उठ जाता है |
इसी समस्या के निराकरण हेतु आज हम आपको विस्तृत जानकारी एवं सावधानियों के बारे में बतायेंगे जिनका ध्यान देने से हमे साधना का अत्याधीक लाभ प्रप्त हो सकेगा इस लिए पोस्ट को अंत तक पढ़े यद्यपि फिर भी आप के मन में कोई संका हो तो निराकरण हेतु नीचे कमेन्ट बॉक्स में अवस्य लिखे | जानकारी पसंद आने पर इसे अपने शखा एवं बंधुओ के साथ शेयर अवश्य करे .
ध्यानयोगी को सर्वप्रथम यह याद रखना चाहिए की परमात्मा सर्वव्यापक है, वही तीनो कालो का नियामक है. उसके साक्षात् से असीम आनंद की प्राप्ति होती है,मनुष्य भाव भय से पार हो जाता है. उस परात्पर शक्ति या परमात्मा का स्वरुप सत, चित व आनंदमय है.इस प्रकार परमात्मा सभी जीवो में सामान रूप से समाया हुआ है. वह सृष्टि के कण कण में व्याप्त है. उससे कुछ भी छुपा नही है. वह सर्वदृष्टा, सर्वज्ञाता, सर्वव्यापी है.
इस भाव के पश्चात ध्यान सम्बन्धी निम्न बातो पर अमल करे :-
स्थान या वातावरण
जिस जगह पर ध्यान किया जाये वह स्थान एकांत, पवित्र, नदी तट, देव मंदिर, शोरगुल से रहित, भगवत चर्चा जहाँ हो ऐसा होना चाहिए.ऐसा स्थान नही होना चाहिए जहाँ छल प्रपंच, हिंसा या मैथुन आदि क्रिया कलाप होते हो ऐसी जगह पर साधना में मन नही लगता है और साधना का लाभ भी प्राप्त नही होता है |
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आसन
ध्यान के लिए आसन समान होना चाहिए. न अधिक ऊँचा और न अधिक नीचा. ऐसा आसन कभी ग्रहण न करे जिसमें असुविधा हो.आसन वही ले जिससे ध्यान करने में सुविधा हो. आजकल अनेक प्रकार के आसन मिलने लगे है. फिर भी ध्यान योगी को कुशासन (यह कुसी से बनता है)
, मृगचर्मासन (परन्तु जीव हत्या निषेध है) या शुद्ध वस्त्र का आसन उपयोग में लेना चाहिए.आसन पर पूर्वाभिमुखी (पूर्व दिशा की ओर मुख करके) या उत्तरमुखी (उत्तर दिशा की ओर मुख करके) बैठना चाहिये |
समय ( काल )
ध्यान के लिए श्रेष्ठ समय उषाकाल या रात्रि का अंतिम प्रहर होता है. यह ऐसा समय है जब बुद्धि संस्कार शून्य व सात्विक होती है. भूखे पेट ध्यान करना अच्छा होता है लेकिन भोजन के तुरंत बाद कभी ध्यान नही करना चाहिए. क्योकि ऐसी स्थिति में कभी ध्यान होगा ही नही. ध्यान काल में आध्यात्मिक चिंतन जितना कर सके उतना ही अच्छा है. विचार शुद्ध सात्विक रखे मन को एकाग्र रखे.इससे मानसिक शक्ति का क्षय नही होगा.ध्यान के समय स्वस्तिक या पद्मासन लगाये अथवा सुखासन भी उचित रहता है.ध्यान नित्य तीन घंटे करना श्रेष्ठ होता है.
ध्यान में बैठने से पूर्व क्या करे ?
ध्यान में बैठने से पूर्व शिथिलीकरण का अभ्यास करें. अर्थात शरीर को ढीला रखने का प्रयास करे. मौन धारण करे.परमात्मा के प्रति समर्पण भाव रखे. मन में सात्विक विचार रखे. भाव यह रखे की परमात्मा हमारी सभी दुर्बलताओ को दूर कर रहे है. मन में उठने वाले विचारो को जो नाना प्रकार के है दूर करने का प्रयास करे.
ध्यान के समय क्या करे ?
जब ध्यान करने बैठे तो शरीर व मन में पावनता का अनुभव करे.फिर भावना करे की जीवात्मा मूलाधार से उठकर सहस्त्रसार की ओर अग्रसर हो रही है. इसके कुछ समय बाद यह अनुभव करे की जीवात्मा परमात्मा से अभिन्न हो गयी है.ह्रदय के निकट जहाँ अनाहत चक्र है, ज्योतिर्पुंज का अनुभव करे.यही ध्यान का प्रमुख विषय है. यही आत्मा है. यही परमात्मा का अंश रूप है.
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योगी की दिन-चर्या
योगाभ्यास के कारण शरीर पर जो भी पसीना आये उसे शरीर पर ही मल लेना चाहिए. लवण और अम्लो से युक्त भोजन न करे वरन गाय का दूध का सेवन करे. इस प्रकार अल्पभोजी तथा सर्वत्यागी व योगपरायण रहे इस प्रकार एक वर्ष से अधिक अभ्यास करने पर सिद्धि होती है. योगी को साधना काल में समस्त यम, नियम, व संयम का पालन करते हुए अल्प एवं मिताहरी रहना चाहिए.अपना विह, निद्रा,व आहार संतुलित रखना चाहिए .
साधना काल में क्या सावधानियां रखे ?
- शुभ मुहूर्त आदि देखकर कर साधना प्रारंभ करे जिससे मन का उत्साह तथा विश्वास दृढ बना रहे |
- तंत्र मंत्र की साधनाए रात्रि में करे.
- ध्यान योग की साधना ब्रम्ह मुहूर्त में करे.
- साधना के समय लंगोट धारण करे,संभव हो तो अन्य वस्त्र न पहने,
- मात्र कोई हल्का स्वच्छ व सूती वस्त्र धारण करे.
- आसन के लिए मृगछाला सर्वोत्तम है. और जाप के लिए रुद्राक्ष की माला. किन्तु जाप में सुमेरु का उलंघन निषिद्ध होता है. सुमेरु आ जाने पर नेत्रों से माला लगाकर फिर माला पलटकर दोबारा जपना चाहिए.तर्जनी का स्पर्श माला से जाप के समय वर्जित मन जाता है.
- साधना का स्थान समतल होना चाहिए.
- साधना स्थल पर धुप या अगरबत्ती का प्रयोग नही करना चाहिए. परन्तु देसी घी का दीपक जलाया जा सकता है.
- साधना से पूर्व शंखनाद करना श्रेष्ठ मन जाता है.
- साधना काल में किसी व्यक्ति का साधना स्थल में प्रवेश साधक का ध्यान भंग करता है.
- भूगर्भ,सरोवर,वन,उपवन, मंदिर,नदी तट , तथा श्मसान आदि साधना के लिए श्रेष्ठ होते है.
- दिन में जब रजोगुण प्रधान सूर्य वर चल रहा हो तो योग साधना न करे. रात्रि में जब तमो गुण प्रधान चन्द्र स्वर चल रहा हो तो भी योग अभ्यास न करे.
- चन्द्र स्वर में ऐसे कार्य न करे जिनमे अल्पश्रम की आवश्ता हो तथा सूर्य स्वर में कठिन या अधिक परिश्रम वाले कार्य करे. और जब सुषुम्ना चले तब योग साधना सात्विक कार्य अथवा धर्म पूजन आदि के कार्य करने चाहिए.
- साधना में शुद्ध धुले हुए वस्त्र पहनने चाहिए. तथा शौच इत्यादि से शुद्ध होकर साधना करनी चाहिए.
- सात्विक साधनाओ में कुशासन , रजोगुणी साधना में सूत का आसन प्रयोग करना चाहिए.
- साधना निश्चित समय पर, नियमित रूप से, नियत स्थान पर और निश्चित विधि से होनी चाहिए.
- कुंडलिनी साधना में पूर्व दिशा में मुख करके बैठना उचित रहता है.परन्तु रात्रि में साधना करे तो पश्चिम दिशा में मुख करके बैठे.
- जप के समय कंठ में ध्वनि हो,होंठ भी हिले परन्तु पास में बैठा व्यक्ति उसे सुन न सके. इतनी ही शक्ति से उछारण करके मंत्र बोलने चाहिए.परन्तु मंत्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए.
- साधना काल में अपने अनुभव मंत्र तथा प्रक्रिया आदि को गुप्त रखना चाहिए.मात्र गुरु से ही परामर्श लेना चाहिए.
- विश्वास तथा श्रद्धा टूटनी नही चाहिए.संकल्प , लगन, तथा आत्मविश्वास बना रह्ना चाहिये.
- साधना काल में होने वाले अनुभवों की भयंकरता अथवा उत्पन्न होने वाली व्याधियो क्र्सता या शिथिलता आदि से घबराना नहीं चाहिए | न ही साधना छोडनी चाहिए | सनै: सनै: स्वयं ही सब कुछ ठीक हो जाता है | न ही साधना काल में होने वाले रमणीय अनुभवों में आसक्त होना चाहिए | मात्र द्रष्टा बनकर उन्हें देखना चाहिए |
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यद्यपि कोई साधक इन सब बातो का का ख्याल रखता है तो उसे मनोवांछित सफलता अवश्य प्रपात होगी .
नोट :- किसी भी योग या साधना को करने के लिए पहले उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी आवश्य प्राप्त कर ले या फिर किसी गुरु के सानिध्य में ही साधना को संपन करे !
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