अपराजिता स्तोत्र | Aparajita stotram : दोस्तों मनुष्य के जीवन में तमाम तरह की बाधाएं उसे आगे बढ़ने नहीं देती हैं इस दुनिया के हर व्यक्ति का जीवन कभी नकारात्मक शक्तियों के कारण बर्बाद होता है तो कभी ग्रह नक्षत्रों की कुदृष्टि से परेशान रहते हैं ऐसे कृतियों से परेशान व्यक्ति देवी देवताओं की शरण में जब जाता है तो शक्तियां उसकी सुरक्षा करती हैं.
इन्हीं शक्तियों में देवी अपराजिता स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है जो विभिन्न प्रकार के कष्टों का निवारण करने के लिए होता हैं मां दुर्गा का अवतार देवी अपराजिता की उत्पत्ति देवासुर संग्राम में मानी जाती है. कहा जाता है कि देवासुर संग्राम में दुर्गा देवी के नौ रूप अपनी शक्तियों से दानों के संपूर्ण वंश का नाश किया और तब मां दुर्गा अपनी मूल पीठ शक्तियों से आदिशक्ति अपराजिता स्तोत्र को पूजने के लिए हिमालय में अंतर्ध्यान हो गई थी.
- 1. देवी अपराजिता की महिमा | Devi Aparajita ki mahima
- 2. अपराजिता स्तोत्र
- 3. देवी अपराजिता का ध्यान मंत्र | Devi Aparajita ka dhyan mantra
- 4. अपराजिता स्तोत्र का पाठ | Aparajita storat ka path
- 5. अपराजिता स्तोत्र के लाभ
- 6. अपराजिता स्तोत्र के फायदे | Aparajita stotram ke fayde
- 6.1. 1. नवग्रह दोष की समाप्ति
- 6.2. 2. भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों मुक्ति
- 6.3. 3. समस्त पापों का नाश
- 6.4. 4. स्वास्थ्य के प्रति लाभ
- 6.5. 5. भयमुक्त वातावरण
- 7. FAQ: अपराजिता स्तोत्र
- 7.1. अपराजिता स्तोत्रम कब पढ़ना है ?
- 7.2. देवी अपराजिता कौन है ?
- 7.3. देवी अपराजिता पूजा मंत्र क्या है ?
- 8. निष्कर्ष
देवी अपराजिता की महिमा | Devi Aparajita ki mahima
देवासुर संग्राम के बाद मां दुर्गा हिमालय की गोद में अपराजिता स्तोत्र के लिए अंतर्ध्यान हो गई थी देवी दुर्गा के नव रूप दानों का संघार करने के बाद आर्यावर्त की राजाओं ने इसे विजय पर्व के रूप में मनाने का कार्य किया और विजयदशमी की स्थापना किया. अर्थात नवरात्रि के बाद विजयदशमी का पर्व मनाने की बात सामने आई.
विजयदशमी का पर्व देवताओं द्वारा दानवों पर विजय प्राप्ति की उपलक्ष में मनाया जाता था परंतु बाद में जब त्रेतायुग में भगवान राम का अवतार हुआ और उन्होंने रावण पर इसी दिन विजय प्राप्त किया था जिस दशहरा के दिन विजयदशमी के रूप में मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ.
विजय दशमी और अपराजिता का संबंध क्षत्रिय राजाओं के साथ रहा अपराजिता क्षत्रियों की देवी थी इसीलिए अन्य वर्ग के लोग मां अपराजिता स्तोत्र का पाठ या पूजा साधना आराधना नहीं कर सकते हैं. देवी अपराजिता 9 शक्तिपीठों में एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है.
जैसा नाम वैसा काम मां देवी अपराजिता कभी न पराजित होने वाली देवी है जब भी कोई भक्त संकट में होता है तो माता अपराजिता उसे किसी न किसी रास्ते से बचा लेती हैं विषम परिस्थितियों में भी माता अपराजिता भक्तों की रक्षा करने के लिए तैयार रहती हैं.
अपराजिता स्तोत्र
अपराजिता स्तोत्र करने से पहले विनियोग करना आवश्यक होता है ऐसे में विनियोग के लिए आप इस मंत्र का उच्चारण करें.
अपराजिता स्तोत्र विनियोग मंत्र इस प्रकार हैं-
विनियोग
ॐ अस्या: वैष्ण्व्या: पराया: अजिताया: महाविद्ध्या: वामदेव-ब्रहस्पतमार्कणडेया ॠषयः।
गाय्त्रुश्धिगानुश्ठुब्ब्रेहती छंदासी। लक्ष्मी नृसिंहो देवता।
ॐ क्लीं श्रीं हृीं बीजं हुं शक्तिः सकल्कामना सिद्ध्यर्थ अपराजित विद्द्य्मंत्र पाठे विनियोग:। (जल भूमि पर छोड़ दे)
देवी अपराजिता का ध्यान मंत्र | Devi Aparajita ka dhyan mantra
योग करने के बाद अपराजिता देवी का ध्यान मंत्र किया जाता है जिसे आंखें बंद करके मन एकाग्र करके इस मंत्र का जाप करें.
ध्यान मंत्र इस प्रकार है-
ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजंगाभरणानिव्तं ।
शुद्ध्स्फटीकंसकाशां चन्द्र्कोटिनिभाननां।। 1
शड़्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीं अपराजितं ।
बालेंदुशेख्रां देवीं वर्दाभाय्दायिनीं।। 2
नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कंडेय महातपा:।। 3
श्री मार्कंडेय उवाच
शृणुष्वं मुनय: सर्वे सर्व्कामार्थ्सिद्धिदाम् ।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीं अपराजितम्।। 4
ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय,
नमोऽस्त्वनंताय सह्स्त्रिशीर्षायणे, क्षिरोदार्णवशायिने,
शेषभोगपययड़्काय,गरूड़वाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे,
ॐ वासुदेव सड़्कर्षण प्रघुम्न, अनिरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य, कुर्म, वाराह,
नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर,राम राम राम ।
वरद, वरद, वरदो भव, नमोस्तुते, नमोस्तुते स्वाहा,
ॐ असुर- दैत्य- यक्ष- राक्षस- भूत-प्रेत- पिशाच- कुष्मांड-
सिद्ध- योगिनी- डाकिनी- शाकिनी- स्क्न्गद्घान,
उपग्रहानक्षत्रग्रहांश्रचान्या हन हन पच पच मथ मथ
विध्वंस्य विध्वंस्य विद्रावय विद्रावय चूणय चूणय शंखेंन
चक्रेण वज्रेण शुलेंन गदया मुसलेन हलेंन भास्मिकुरु कुरु स्वाहा ।
ॐ सहस्त्र्बाहो सह्स्त्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत,सहत्स्र्नेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसुदन,महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्द्नाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सर्वसुरोत्सादन, सर्वभूतवशड़्कर, सर्वदु:स्वप्न्प्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभ्जज्न, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर,सर्व्बन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दंन, नमोस्तुते स्वाहा ।
ॐ विष्णोरियमानुपप्रोकता सर्वकामफलप्रदा ।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभितिविनाशनी।। 5
सवैश्र्च पठितां सिद्धैविष्णो: परम्वाल्लभा ।
नानया सदृशं किन्चिदुष्टानां नाशनं परं।। 6
विद्द्या रहस्या कथिता वैष्ण्व्येशापराजिता ।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्शात्स्त्वगुणाश्रया।। 7
ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजं ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये।। 8
अथात: संप्रवक्ष्यामी हृाभ्यामपराजितम् ।
यथाशक्तिमार्मकी वत्स रजोगुणमयी मता।। 9
सर्वसत्वमयी साक्शात्सर्वमन्त्रमयी च या ।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।
सर्वकामदुधा वत्स शृणुश्वैतां ब्रवीमिते।। 10
य इमां पराजितां परम्वैष्ण्वीं प्रतिहतां
पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्द्यां
जपति पठति श्रृणोति स्मरति धारयति किर्तयती वा
न तस्याग्निवायुवज्रोपलाश्निवर्शभयं
न समुद्रभयं न ग्रह्भयं न चौरभयं
न शत्रुभयं न शापभयं वा भवेत् ।
क्वाचिद्रत्र्यधकारस्त्रीराजकुलविद्वेषी
विषगरगरदवशीकरण विद्वेशोच्चाटनवध बंधंभयं वा न भवेत्।
एतैमर्न्त्रैरूदाहृातै: सिद्धै: संसिद्धपूजितै:। ॐ नमोस्तुते ।
अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठत सिद्धे, जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशितितमे, एकाकिनी, निश्चेतसी, सुद्र्मे, सुगन्धे, एकान्न्शे, उमे, ध्रुवे, अरुंधती, गायत्री, सावित्री, जातवेदसी, मास्तोके, सरस्वती,धरणी, धारणी, सौदामिनी, अदीति, दिति, विनते, गौरी ,गांधारी, मातंगी, कृष्णे , यशोदे, सत्यवादिनी, ब्र्म्हावादिनी, काली ,कपालिनी, कराल्नेत्र, भद्रे, निद्रे, सत्योप्याचकरि, स्थाल्गंत, जल्गंत,अन्त्रख्सिगतं वा माँ रक्षसर्वोप्द्रवेभ्य: स्वाहा।
यस्या: प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।
भ्रियते बालको यस्या: काक्बन्ध्या च या भवेत् ।। 11
धारयेघा इमां विधामेतैदोषैन लिप्यते।
गर्भिणी जीवव्त्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशय:।।12
भूर्जपत्रे त्विमां विद्धां लिखित्वा गंध्चंदनैः ।
एतैदोषैन लिप्यते सुभगा पुत्रिणी भवेत्।। 13
रणे राजकुले दुते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।
शस्त्रं वारयते हृोषा समरे काडंदारूणे।।14
गुल्मशुलाक्शिरोगाणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम्।।15
इत्येषा कथिता विद्द्या अभयाख्या अपराजिता।
एतस्या: स्म्रितिमात्रेंण भयं क्वापि न जायते।।16
नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्करा: ।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रव:।।17
यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहा: ।
अग्नेभ्र्यं न वाताच्च न स्मुद्रान्न वै विषात्।।18
कामणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा।।19
न किन्चितप्रभवेत्त्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।
पठेद वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा।।20
हृदि वा द्वार्देशे व वर्तते हृाभय: पुमान् ।
ह्रदय विन्यसेदेतां ध्यायदेवीं चतुर्भुजां ।।21
रक्त्माल्याम्बरधरां पद्दरागसम्प्रभां ।
पाशाकुशाभयवरैरलंकृतसुविग्रहां।।22
साध्केभ्य: प्र्यछ्न्तीं मंत्रवर्णामृतान्यापि ।
नात: परतरं किन्च्चिद्वाशिकरणमनुतम्ं।।23
रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।
प्रात: कुमारिका: पूज्या: खाद्दैराभरणैरपि ।
तदिदं वाचनीयं स्यातत्प्रिया प्रियते तू मां।।24
ॐ अथात: सम्प्रक्ष्यामी विद्दामपी महाबलां ।
सर्व्दुष्टप्रश्मनी सर्वशत्रुक्षयड़्करीं।।25
दारिद्र्य्दुखशमनीं दुभार्ग्यव्याधिनाशिनिं ।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्श्गंध्वार्क्षसां।।26
डाकिनी शाकिनी स्कन्द कुष्मांडनां च नाशिनिं ।
महारौदिं महाशक्तिं सघ: प्रत्ययकारिणीं।।27
गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वंपार्वतीपते: ।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः श्रृणु।।28
एकाहिृकं द्वहिकं च चातुर्थिकर्ध्मासिकं ।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्थ्मासिकं।।29
पाँचमासिक षाड्मासिकं वातिक पैत्तिक्ज्वरं ।
श्रैष्मिकं सानिपातिकं तथैव सततज्वरं।।30
मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरं ।
द्वहिंकं त्रयहिन्कं चैव ज्वर्मेकाहिकं तथा ।
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणाद्पराजिता।।31
ॐ हीं हन हन कालि शर शर गौरि धम धम
विद्धे आले ताले माले गन्थे बन्धे पच पच विद्दे
नाशाय नाशाय पापं हर हर संहारय वा दु:स्वप्नविनाशनी कमलस्थिते
विनायकमात: रजनि संध्ये दुन्दुभिनादे मानसवेगे शड़्खिनी चक्रिणी
गदिनी वज्रिणी शूलिनी अपमृत्युविनाशिनी विश्रेश्वरी द्रविणी
द्राविणी केश्वद्यिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनी दुम्मदमनी शबरि
किराती मातंगी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।
ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान सर्वान दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रम्हाणी ब्रम्हाणी माहेश्वरी कौमारि वाराहि नारसिंही एंद्री चामुंडे महालक्ष्मी वैनायिकी औपेंद्री आग्नेयी चंडी नैॠति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊध्र्व्मधोरक्ष प्रचंद्विद्दे इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।
ॐ नमो देवी जये विजये शान्ति स्वस्ति तुष्ठी पुष्ठी विवर्द्धिनी कामांकुशे कामदुद्दे सर्वकामवर्प्रदे सर्वभूतेषु माँ प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।आकर्षणी आवेशनि ज्वालामालिनी रमणी रामणि धरणी धारणी तपनि तापिनी मदनी मादिनी शोषणी सम्मोहिनी।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।
महाचान्द्री महासौरी महामायुरी आदित्यरश्मि जाहृवि ।
यमघंटे किणी किणी चिन्तामणि ।
सुगन्धे सुर्भे सुरासुरोत्प्त्रे सर्वकाम्दुद्दे ।
यद्द्था मनिषीतं कार्यं तन्मम सिद्धतु स्वाहा ।
ॐ स्वाहा ।
ॐ भू: स्वाहा ।
ॐ भुव: स्वाहा ।
ॐ स्व: स्वाहा ।
ॐ मह: स्वाहा ।
ॐ जन: स्वाहा ।
ॐ तप: स्वाहा ।
ॐ सत्यं स्वाहा ।
ॐ भूभुर्व: स्वाहा ।
यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छ्तु स्वाहेत्यों ।
अमोघैषा महाविद्दा वैष्णवी चापराजिता।।32
स्वयं विश्नुप्रणीता च सिद्धेयं पाठत: सदा ।
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजित।।33
नानया सदृशी रक्षा त्रिषु लोकेषु विद्दते ।
तमोगुणमयी साक्षद्रोद्री शक्तिरियं मता।।34
कृतान्तोऽपि यतोभीत: पाद्मुले व्यवस्थित: ।
मूलाधारे न्यसेदेतां रात्रावेन च संस्मरेत ।।35
नीलजीतमूतसंड़्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।
उद्ददादित्यसंकाशां नेत्रत्रयविराजिताम्।।36
शक्तिं त्रिशूलं शड़्खं चपानपात्रं च बिभ्रतीं ।
व्याघ्र्चार्म्परिधानां किड़्किणीजालमंडितं।।37
धावंतीं गगंस्यांत: पादुकाहितपादकां ।
दंष्टाकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषितां।।38
व्यात्वक्त्रां ललजिहृां भुकुटिकुटिलालकां ।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पान्पात्रत:।।39
सप्तधातून शोषयन्तीं क्रूरदृष्टया विलोकनात् ।
त्रिशुलेन च तज्जिहृां कीलयंतीं मुहुमुर्हु:।। 40
पाशेन बद्धा तं साधमानवंतीं तन्दिके ।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं ध्यायेंमहबलां ।।41
यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मंत्रं निशांतके ।
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापियोगिनी।।42
ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।
अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्णवीं।।43
श्रीमद्पाराजिताविद्दां ध्यायते ।
दु:स्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमिते तथैव च ।
व्यवहारे भवेत्सिद्धि: पठेद्विघ्नोपशान्त्ये ।।44
यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्धऽक्षरहीमीड़ितं ।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सड़्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायतां ।।45
ॐ तव तत्वं न जानामि किदृशासी महेश्वरी ।
यादृशासी महादेवी ताद्रिशायै नमो नम: ।।46
अपराजिता स्तोत्रम समापन:।।
अपराजिता स्तोत्र का पाठ | Aparajita storat ka path
अपराजिता स्तोत्र देवी अपराजिता से जुड़ा है ऐसे में जो साधक या व्यक्ति अपराजिता स्तोत्र को निरंतर 1 महीने प्रतिदिन तीनों काल का पाठ करता है तो उसके सभी कार्य सफल हो जाते हैं अपराजिता स्तोत्र का 1200 का अनुष्ठान कराने से स्त्रोत सिद्ध हो जाता है इसके लिए प्रतिदिन 120 पाठ 10 दिन तक लगातार किया जाता है.
अपराजिता पाठ को रात्रि 10:00 बजे से लेकर 1:00 बजे तक मां दुर्गा की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाकर किया जाता है पाठ आरंभ करने से पहले विनियोग किया जाता है उसके बाद शुद्ध और स्पष्ट शब्दों से किसी योग्य ब्राह्मण के द्वारा कराया जाता है.
अपराजिता स्तोत्र के लाभ
- अपराजिता स्तोत्र करने से व्यक्ति के ऊपर ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं भूत प्रेत नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है जाने अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं अपराजिता स्तोत्र कराने से संतान सुख प्राप्त होते हैं. किसी भी प्रकार का रुका हुआ कार्य सफल हो जाता है.
- व्यक्ति भय बंधन से मुक्त हो जाता है अगर कोई शत्रु किसी भी प्रकार का मारण उच्चाटन सम्मोहन आदि किसी के ऊपर करवा देता है तो उस क्रियाओं को नष्ट कर देने मैं अपराजिता स्तोत्र अति उत्तम है.
- व्यक्ति के जीवन में विघ्न खत्म हो जाते हैं जीवन में मान सम्मान मिलता है विद्यार्थी जीवन में विद्या में वृद्धि होती है राजनैतिक जीवन में सफलता मिलती है विभिन्न प्रकार के असाध्य रोगों से भी छुटकारा मिलता है.
- अपराजिता स्तोत्र का पाठ करने से माता की कृपा से ग्रह दशा सही हो जाती है विभिन्न प्रकार के गंभीर से गंभीर रोग समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति स्वस्थ रहता है जीवन में तरक्की करता है और उच्च पदों पर आसीन होता है.
अपराजिता स्तोत्र के फायदे | Aparajita stotram ke fayde
अगर व्यक्ति अपने जीवन में किसी भी प्रकार के संकट में है तो अपराजिता स्तोत्र का पाठ करे जिससे उसे कई प्रकार के लाभ मिलते हैं.
सभी व्यक्तियों की कुंडली में नवग्रह दोष कभी न कभी प्रभावी होते हैं ऐसे में इनकी कुदृष्टि को शांत करने के लिए अपराजिता स्तोत्र करने से फायदा मिलता है.
2. भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों मुक्ति
व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की नकारात्मक शक्तियां प्रभावित करती रहती हैं भूत प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियां जब प्रभावित होती है तो व्यक्ति को कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है ऐसे में अपराजिता स्तोत्र पाठ करने से नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिल जाती हैं.
3. समस्त पापों का नाश
जाने अनजाने में व्यक्ति से छोटे-मोटे कई पाप हो जाते हैं जिन से मुक्ति पाने के लिए अपराजिता स्तोत्र करें जिससे इन पापों से मुक्ति मिलती है.
4. स्वास्थ्य के प्रति लाभ
अपराजिता स्तोत्र का सबसे बड़ा लाभ व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य पर पड़ता है कई बार कई बड़े से बड़े असाध्य रोग हो जाते हैं जिनको ठीक करना मुश्किल होता है ऐसी स्थिति में अपराजिता स्तोत्र करने से पूर्ण लाभ मिलता है.
5. भयमुक्त वातावरण
लोगों को कहीं ना कहीं अदृश्य चीजों से भय लगा रहता है जिससे जीवन में कई परेशानियां होती हैं इन परेशानियों और भय से मुक्ति पाने के लिए अपराजिता स्तोत्र करें.
FAQ: अपराजिता स्तोत्र
अपराजिता स्तोत्रम कब पढ़ना है ?
देवी अपराजिता कौन है ?
देवी अपराजिता पूजा मंत्र क्या है ?
निष्कर्ष
दोस्तों अगर आप अपने जीवन में मां अपराजिता स्तोत्र के विषय में जानकारी चाहते हैं तो आपको हमारा यह आर्टिकल आपको कुछ हद तक जानकारी दे सकता है. मां दुर्गा के इस अवतार की अराधना करने से आपको कोई भी समस्या नहीं होती है.
मां अपराजिता अपने नाम को हमेशा सार्थक करती हैं. जैसा कि राम ने लंका विजय प्राप्त करने के लिए मां अपराजिता की पूजा किया था और विजयदशमी को रावण को मार कर लंका विजय प्राप्त किया.