अथर्वशीर्ष क्या है ? सम्पूर्ण पूजा विधि एवं लाभ और pdf Download लिंक | atharvashirsha pdf

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अथर्वशीर्ष pdf | Atharvashirsha pdf : हेलो दोस्तो नमस्कार स्वागत है आपका हमारे आज के इस नए लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से atharvashirsha pdf के बारे में बताने वाले हैं यह अथर्वशीर्ष भगवान श्री गणेश को समर्पित किया गया है यह एक प्रकार का स्त्रोत है भगवान श्री गणेश को हिंदू धर्म में देवताओं में सबसे प्रमुख देवता माना गया है.

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यह स्त्रोत बताता है कि कैसे भगवान श्री गणेश ने सबसे प्रमुख ब्राह्मण सर्वोत्तम इकाई और सभी जीवित और निर्जीव चीजों का सार एक साथ था अगर आप इस स्त्रोत का प्रयोग करते हैं तो इसका प्रयोग करने से हाथी भगवान यानी कि श्री गणेश से अपनी हार्दिक प्रार्थना कर सकते हैं।

इसीलिए आज हम आपको इस लेख के माध्यम से atharvashirsha pdf के बारे में बताएंगे इसके अलावा अथर्वशीर्ष क्या है ? इसके लाभ क्या है और इसकी पूजा विधि क्या है इन सारे विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे अगर आप इस जानकारी को संपूर्ण तरह से प्राप्त करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

अथर्वशीर्ष क्या है ? | Atharvashirsha kya hai ?

अथर्वशीर्ष यह प्रकार का स्त्रोत है इस स्त्रोत को भगवान श्री गणेश को समर्पित किया गया है हमारे हिंदू धर्म के सबसे प्रसिद्ध भक्तों के विघ्नहर्ता मंगलकारी भगवान श्री गणेश के दिव्यपाठ से व्यक्ति के अनेकों प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं ऐसे में भगवान श्री गणेश के अनेकों भक्त उनकी आराधना करते हैं.

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दिन रात उनकी पूजा करते हैं और उनकी भक्ति में लीन रहते हैं और उनकी पूजा के समय अनेकों भक्तों ने श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ किया है यह हमारे जीवन का चमत्कारी अनुभव है इस स्त्रोत की रचना प्रमुख रूप से संस्कृत भाषा में हुई है इस स्त्रोत में दस ऋचाएँ गई है शास्त्रों के मुताबिक यह भी कहा गया है कि ऋषियों के मुंह से सुना है की संस्कृत रचनाओं को ऋचा कहां जाता है।

अथर्वशीर्ष pdf | Atharvashirsha pdf

इस लिंक पर जाकर आप आसानी से अथर्वशीर्ष pdf | atharvashirsha pdf डाउनलोड कर सकते हैं.

अथर्वशीर्ष pdf | atharvashirsha pdfDownload PDF 

अथर्वशीर्ष pdf | Atharvashirsha pdf

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ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्माऽसि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि 2

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्‍चातात्। अव पुरस्तात्।
अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तातत्।
अवचोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मॉं पाहि-पाहि समंतात।।3।।

त्वं वाङ्‌मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माऽसि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारि वाक्पदानि।5।।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
त्वं रुद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम।।6।।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्‍चान्त्यरूपं। बिन्दुरुत्तररूपं।
नाद: संधानं। स हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

एकदंताय विद्‌महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात्।।8।।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष | Shri Ganesh Atharvashirsha

हमारे हिंदू धर्म के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री गणेश हमारे विघ्नहर्ता है मान्यताओं के अनुसार यह भी बताया गया है कि देव गणों में सबसे प्रथम भगवान श्री गणेश को पूजनीय माना जाता है क्योंकि भगवान श्री गणेश विघ्नहर्ता और सुख-दुख के देवता माने गए हैं.

 

इसीलिए अगर इनकी किसी भी मंत्र का जाप किया जाए तो जीवन के हर एक कार्य सफल हो जाते हैं उसी के अनुसार ऐसा कहा गया है कि अगर गणपति जी का अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करते हुए उनकी संपूर्ण विधि विधान पूर्वक पूजा की जाए और उनकी पूजा सामग्री का प्रयोग किया जाए जिसमें सुगंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि सभी चीजें शामिल हो.

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इन्हें पूजने के समय यह सारी चीजें भगवान श्री गणेश को अर्पण की जाए तो भगवान श्री गणेश प्रसन्न हो जाते हैं और उसी के साथ भगवान श्री गणेश को दुर्वा भी चढ़ा सकते हैं। जिस प्रकार मां दुर्गा को लाल सिंदूर या फिर लाल रंग बहुत प्रिय है.

उसी प्रकार भगवान श्री गणेश को लाल रंग या फिर लाल सिंदूर अत्यधिक प्रिय है इसीलिए भगवान श्री गणेश की पूजा में हमेशा लाल रंग के पुष्प रखनी चाहिए और उसके साथ भगवान श्री गणेश का सबसे शक्तिशाली और प्रिय मंत्र ॐ गं गणपतये नम: का आप उनकी पूजा में अवश्य करना चाहिए।

उनकी पूजा में भगवान श्री गणेश के अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए इस स्त्रोत का पाठ करने से घर और जीवन के अमंगल दूर हो जाता है।

श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ विधि | Shri Ganesh Atharvashirsha Path Vidhi

अगर आप में से कोई भी व्यक्ति भगवान श्री गणेश को सच्चे दिल से मानता है और उन को प्रसन्न करने के लिए पूरी लगन के साथ उनकी पूजा करना चाहता है तो उस व्यक्ति को इस दिव्यपाठ का नियमित रूप से जाप अवश्य करना चाहिए.

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अगर आप नियमित रूप से इस दिव्यपाठ का जाप करते हैं तो आपको अवश्य ही इसका लाभ नजर आएगा अगर आप प्रतिदिन इस पाठ को नहीं कर सकते हैं तो आप भगवान श्री गणेश के प्रिय दिन यानी कि बुधवार के दिन विधि-विधान पूर्वक इस पाठ को अवश्य करें।

  1. अगर आप इस पाठ को करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सबसे पहले नित्य कार्य से निश्चिंत होने के बाद स्नानादि से निश्चिंत होना है उसके बाद आपको पीले रंग के आसन पर बैठ जाना है।
  2. अब आपको अपने सामने भगवान श्री गणेश की मूर्ति या फिर फोटो को स्थापित करना है उसके लिए आपको सबसे पहले एक चौकी रखनी है और उस पर पीले रंग का आसन डालना है और उसी पर भगवान श्री गणेश की मूर्ति को स्थापित कर देना है।
  3. मूर्ति को स्थापित करने के बाद अब आपको गणेश भगवान यानी कि हमारे विघ्नहर्ता गणपति बप्पा का आवाहन करना है।
  4. भगवान श्री गणेश का आवाहन करने के पश्चात भगवान श्री गणेश का ध्यान करें।
  5. अब आपको सबसे पहले भगवान श्री गणेश की प्रिय चीजें जैसे कि सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि अर्पित कर देना है।
  6. सारी पूजा सामग्री भगवान श्री गणेश के सामने अर्पित करने के पश्चात अब आपको हमारे विघ्नहर्ता यानी कि गणेश भगवान को दूर्वा अर्पित करना है।
  7. आप में से जो भी व्यक्ति हिंदू धर्म के हैं या फिर जो लोग भगवान श्री गणेश को मानते हैं और प्रतिदिन उनकी पूजा करते हैं तो उन्हें भगवान श्री गणेश का प्रिय भोग अवश्य पता होगा अगर पता नहीं है तो हम आपको बता दें कि गणपति बप्पा को मोदक अत्यधिक प्रिय है इसीलिए उनकी पूजा में मोदक का भोग अवश्य लगाएं अब आपको गणेश भगवान के सामने मोदक का भोग लगाना है।
  8. यह पूजा करने के बाद आपको विघ्नहर्ता हमारे गणपति बप्पा के समक्ष हाथ जोड़कर और निर्मल मन से श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना है।
  9. जैसे ही भगवान श्री गणेश का यह पाठ संपन्न हो जाता है उसके बाद आपको भगवान श्री गणेश की आरती करनी है। अगर आपको गणेश भगवान की आरती नहीं आती है तो हम आपको इस लेख में नीचे गणेश भगवान की आरती भी देंगे।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के लाभ | Shri Ganesh Atharvashirsha path ke labh

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हर एक व्यक्ति के मन में यह प्रश्न उठता है कि अगर हम कोई भी पूजा पूरे सच्चे मन से करते हैं या फिर भगवान की भक्ति करते हैं तो हमें उसका कौन सा फल प्राप्त होता है ऐसे में अगर आप श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ नियमित रूप से कम से कम करते हैं तो आपको कौन सा लाभ प्राप्त होता है।

  1. जहां तक हमने इस पाठ को किया है उसी प्रकार से इस पाठ को कम से कम नियमित रूप से करने से शरीर की आंतरिक शुद्धता होती है। आपके शरीर मे जो नकारात्मक ऊर्जा होती है वह दूर हो जाती है।
  2. वैसे तो किसी भी पूजा को करने से या मंत्र जाप करने से सकारात्मक ऊर्जा अवश्य संचारित होती है लेकिन अगर आप गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते हैं तो आपके शरीर में सकारात्मक उर्जा का संचालन होता है।
  3. इसके अलावा हमारे अनुभव के मुताबिक गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से हमें मानसिक मजबूती मिलती है और उसके साथ मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
  4. अगर आप अपने दिमाग को स्थिर करना चाहते हैं या फिर आप अपने दिमाग से एक सटीक और दृढ़ निश्चय लेना चाहते हैं तो उसके लिए आपको गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए ।
  5. हमारे विघ्नहर्ता गणपति का अथर्वशीर्ष पाठ करने से हमारे शरीर के सारे विषैले तत्व बाहर आ जाते हैं और हमारे अंदर अच्छे तत्व जाने लगते हैं।
  6. विघ्नहर्ता गणपति का अथर्वशीर्ष पाठ करने से शरीर में एक क्रांति पैदा होती है।
  7. अथर्वशीर्ष का पाठ करने से हमारे जीवन में स्थिरता का विकास होता है।
  8. अगर आप कोई कार्य करने जाते हैं और आपके उस कार्य में बेवजह रुकावट उत्पन्न होती हैं तो ऐसे में अगर आप अथर्वशीर्ष का पाठ करते हैं तो बेवजह आने वाली रुकावटें दूर हो जाती है।

FAQ : atharvashirsha pdf

अथर्वशीर्ष का अर्थ क्या है?

शास्त्रों के मुताबिक ऐसा कहा गया है अथर्वशीर्ष का अर्थ दो शब्दों से मिलकर बना अथर्व + थर्व (थर्वा) का अर्थ है अपरिवर्तनीय मन इसीलिए भगवान श्री गणेश के इस स्त्रोत को किसी गंभीर समस्या के लिए प्रयोग किया जाता है अगर आप अपने सिर को ठंडा करना चाहते हैं या फिर अपने मन को एकाग्र करके काम करना चाहते हैं तो सुबह उठकर इस स्त्रोत का जाप अवश्य करें।

अथर्वशीर्ष किसने लिखा था?

हमारे विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश के इस स्त्रोत के लेखक अथर्व ऋषि माने गए हैं ऐसा शास्त्रों के मुताबिक कहा जाता है कि इनके पास गणपति दर्शन थे इसीलिए यह अपने किसी भी कार्य की शुरुआत करने से पहले गणेश भगवान की प्रार्थना और उनका नाम अवश्य लेते थे।

अथर्वशीर्ष का जाप कैसे करें?

शास्त्रों के मुताबिक ऐसा कहा जाता है कि जब भी गणेश भगवान के अथर्वशीर्ष का पाठ करते हैं तो हमें अवरत्न "ॐ नमस्ते गणपतये" से "श्रीवरदमूर्तये नमो नमः" का जाप अवश्य करना चाहिए। इस मंत्र का जाप आपको 11 से 21 बार करना है उसके बाद आपको शांति मंत्र फलश्रुति “एतदथर्वशीर्षं” का जाप करना है।

निष्कर्ष

दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से atharvashirsha pdf के बारे में बताया इसके अलावा यह भी बताया कि अथर्वशीर्ष क्या है यह स्त्रोत किस देवता का है अथर्वशीर्ष का पाठ कैसे किया जाता है अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लाभ क्या है इन सारे विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है.

अगर आपने हमारे इस लेख को अच्छे से पढ़ा है तो आपको इन सारे विषयों के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी।

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