दान क्या है : Daan kya hai ? दान मानव समाज में गरीब असहाय जरूरतमंदों की कुछ आवश्यकताओ को पूरा करने के लिए दान जैसी प्रक्रिया को अपनाकर समाज के असहाय लोगों की मदद की जाती है ।जिससे उनको अपना जीवन जीने में सहायता मिलती है । दान को (चैरिटी )के नाम से भी जाना जाता है ।
दान जैसी प्रक्रिया का लाभ बड़ी-बड़ी संस्थाएं उठा रही हैं और वह दान के सहारे ही समाज के असहाय निराश्रित लोगों की सहायता करके उनको जीवन जीने में जो मदद कर रही है। उनको देखकर ऐसा लगता है कि दान का समाज के निराश्रित लोगों के जीवन में बदलाव लाने में विशेष योगदान है।गरीब असहाय लोगों के
लिए दान वरदान के समान है और दान की व्यवस्था निराश्रित लोगों के लिए ही की गयी है इससे इन लोगों को बड़ा सहारा मिल जाता है इस दान जैसी व्यवस्था से लोगों को पुण्य कमाने का भी अवसर मिलता है आज के युग मे इस व्यवस्था ने जरूरतमन्द लोगों को जीवन जीने का मार्ग सरल कर दिया है|
आइये आज हम आप सभी को दान नामक लेख के माध्यम से बताने वाले हैं कि दान क्या है ? दान के लिए दो पक्षों की आवश्यकता दान कब देना चाहिए ?दान किसे देना चाहिए ? दान क्यों देना चाहिए ? और दान के प्रकार आदि बिन्दुओं पर विस्तार से जानकारी देंगे जानकारी के लिए लेख मे अंत तक अवश्य बने रहें
- 1. दान क्या है ? | Dan kya hai?
- 2. दान के लिए दो पक्षों की आवश्यकता | Dan ke liye do pakshon ki avashyakta?
- 3. दान कब देना चाहिए ? | Dan kab dena chahiye?
- 4. दान किसे देना चाहिए ? | Dan kaise dena chahiye ?
- 5. दान के प्रकार | Dan ke prakar
- 5.1. 1. भोजन दान | Bhojan dan
- 5.2. 2. वस्त्र दान | Vastra dan
- 5.3. 3.जीवन दान | Jeevan dan
- 5.4. 4. भू दान | Bhoo dan
- 5.5. 5. श्रम दान | Shram dan
- 5.6. 6.गौ दान | Gau dan
- 5.7. 7.धन दान | Dhan dan
- 5.8. 8 .वर दान | Var dan
- 5.9. 9. ज्ञान दान | Gyan dan
- 5.10. 10.कन्या दान | Kanya dan
- 5.11. 11.अंग दान | Ang dan
- 5.12. 12. नाम दान | Nam dan
- 6. FAQ : दान क्या है ?
- 6.1. दान किसको देना चाहिए ?
- 6.2. दान का क्या उद्देश्य होता है ?
- 6.3. दान का क्षेत्र सीमित होता है या व्यापक ?
- 7. निष्कर्ष
दान क्या है ? | Dan kya hai?
जब हम अपने शरीर के द्वारा ,धन के द्वारा, विचारों के द्वारा ,भावनाओं के द्वारा ,भोजन के द्वारा ,वाणी आदि के द्वारा व्यक्तियों की मदद करते हैं जिनको इनकी आवश्यकता होती है।तो तो इसे दान कहते हैं। दान देकर हमअपने मन में संतुष्टि की अनुभूति करते हैं ।
और समाज के लोगों को दान देने की प्रेरणा देते हैं। जिससे समाज में समाज के असहाय लोगों को अपना जीवन जीवन जीने में सरलता मिलती है.
दान के लिए दो पक्षों की आवश्यकता | Dan ke liye do pakshon ki avashyakta?
दान के लिए दो पक्षों का होना आवश्यक है। एक दान देने वाला दूसरा दान लेने वाला दोनों पक्षों में से किसी एक के अभाव में ना तो दान दिया जा सकता है। और ना ही दान लिया जा सकता है ।दानके लिए दोनों पक्ष परस्पर दूसरे से संबंधित हैं।
दान कब देना चाहिए ? | Dan kab dena chahiye?
जब कोई व्यक्ति जीवन जीने में असमर्थ हो और जीना चाहता हो तब उस व्यक्ति की जैसी जरूरत हो वैसा दान देना चाहिए जिससे वह आपके द्वारा दिए गए दान का उपयोग कर खुशी से अपना जीवन जिए। असहाय व्यक्तियों को दान देकर हम भी खुशी महसूस करते हैं और साथ में ही समाज के लोगों के लिए दान देने की प्रेरणा बनते हैं।
दान किसे देना चाहिए ? | Dan kaise dena chahiye ?
दान देते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम जिसे दान दे रहे हैं उसे दान की आवश्यकता है या नहीं हमें आलसी लोगों को दान नहीं देना है हमें मादक पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्तियों को दान नहीं देना है हमें जुआ खेलने वालों को दान नहीं देना है हमें ऐसे व्यक्तियों को दान देना है.
जो हर तरह से असहाय हो और भविष्य में समाज के लिए हितैषी हो जिससे हमारे समाज का आगे विकास हो सके हमें ऐसे निराश्रित असहाय व्यक्तियों को दान देना चाहिए जिससे समाज का किसी भी प्रकार का कोई नुकसान ना हो।दान क्यों देना चाहिए ? | Dan kyon dena chahiye?
दान हम अपने मानव समाज के असहाय लोगों की सहायता के उद्देश्य से देना चाहिए। जिससे वे इसका लाभ लेते हुए अपने जीवन को जी सकें समयानुसार हम अपनी क्षमता के हिसाब से दान देते रहते हैं ,तो हमें भी आत्म संतुष्टि मिलती है ।
और हमें कभी दान देकर अहंकार नहीं आता ।मनुष्य के पास धन बल या जमीन जाय दाद या अन्य चीजें जो मनुष्य के पास अधिक हों और उनका कोई उपयोग ना हो ,इस स्थिति में हमें इन चीजों का दान कर देना चाहिए।
जिससे उनका सदुपयोग होता रहे। और हमारे देश व समाज के असहाय लोग इसका लाभ उठा सकें।
दान के प्रकार | Dan ke prakar
दान के प्रकार निम्नलिखित है ।
1. भोजन दान | Bhojan dan
हमारे देश में भूखे को भोजन कराना अति महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। क्योंकि हमारे देश में भुखमरी की समस्या से काफी लोग जूझ रहे है ।
जो दो वक्त की रोटी के लिए भी तरस जाते हैं भूखे निराश्रित असहाय लोगोंकोभोजन कराने के लिए हमारे समाज में मंदिर जैसे सार्वजनिक स्थलों पर भंडारे का आयोजन किया जाता है ।
जिसमें भूखे लोगों को भोजन कराकर उनकी आत्मा को संतुष्टि प्रदान की जाती है। संस्थाएं ऐसी है जो भोजन कराने के से दान जैसी सुविधाओं का सहारा लेकर बड़े स्तर पर भूखे लोगों को भोजन कराना अपना दायित्व समझती हैं। भोजन कराने की यह सुविधाएं हमारे समाज में ना हूं तो कुछ लोग भूखे मर जाए।
समाज के धनवान लोग, समाज के प्रतिष्ठित लोग ऐसे महान कार्यों में हिस्सा लेकर समाज के भूख से पीड़ित लोगों को भोजन कराने में अपना योगदान देते हैं। इनका यह योगदान ही भोजन दान कहलाता है भूखे लोग भोजन प्राप्त करके भोजन कराने वाले लोगों को दुआएं देते हैं ऐसी हमारे समाज की मान्यता है ।
भोजन दान के द्वारा भूख से मरने वाले लोगों को बचाया जाता है। जोकि इनकी प्रथम आवश्यकता होती है रोटी की यानी भोजन जो जीवन की प्रथम आवश्यकता होती है।
2. वस्त्र दान | Vastra dan
हमारे समाज में कुछ गरीब असहाय होते हैं। जिनके पास समुचित रूप से पहनने के लिए वस्त्र उपलब्ध नहीं होते हैं ।ऐसी स्थिति में समाज के प्रतिष्ठित वर्ग के लोगों द्वारा गरीब असहाय लोगों को वस्त्र प्रदान किए जाते हैं। वस्त्र प्रदान करने में उनका जो योगदान होता है।उसे हम वस्त्र दान की संज्ञा देते हैं।
कई संस्थाएं है ।जो गांव में जाकर आज भी जाड़े के दिनों में गरीब असहाय लोगों को कंबल आदि प्रदान करती हैं।
जिससे लोगों को सुविधा प्रदान होती है। कुछ राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा भी वोट के प्रलोभन में वस्त्र प्रदान किए जाते हैं। जरूरतमंद लोगों को वस्त्र प्रदान करना वस्त्र दान के अंतर्गत आता है। सामाजिक परंपरा के अनुसार आज से कई वर्ष पहले कई ऐसे राजा हुए हैं
जो कि अपने हाथों से पर्व त्योहारों पर अपने राज्य के गरीब असहाय जरूरतमंदों को वस्त्र आदि भेंट करते थे।वस्त्र दान की यह भारतीय परंपरा आज भी देखने को मिलती है। जबकि वर्तमान समय में यदा-कदा ही वस्त्र प्रदान किए जाते हैं।
3.जीवन दान | Jeevan dan
देश के कुछ लोगों में जीवन दान देने की भी भावना पाई जाती है ।यह वह लोग होते हैं। जिनके हृदय उदार होते हैं ।ऐसे लोग किसी व्यक्ति के द्वारा गलती किए जाने पर भी क्षमा करने में संकोच नहीं करते.
जब किसी व्यक्ति को मृत्यु दंड देना सुनिश्चित किया जाता है। उसके उपरांत यदि वह व्यक्ति अपनी गलती को महसूस करता है या क्षमा याचना करता है।
तो देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्वारा मृत्युदंड ना देकर जीवनदान प्रदान कर दिया जाता है। हमारे देश के लोगों में अहिंसा परमो धर्म: की भावना है ।इसलिए यह लोग किसी जीव की हिंसा करना पसंद नहीं करते ।मरते हुए प्राणियों को जीवनदान देना अपने जीवन का कर्तव्य समझते हैं।
गौतम बुद्ध सिद्धार्थ जिन्हें अब लोग महात्मा बुद्ध के नाम से जानते हैं। उनके चचेरे भाई द्वारा हंस पर बाण चलाने से हंस घायल हो गया ।और वह गौतम बुद्ध की गोद में आकर गिरा। उन्होंने उसके घाव को धोया ।और उसे पानी पिलाया और अपनी शरण में ले कर उसे जीवनदान प्रदान किया।
4. भू दान | Bhoo dan
हमारे देश में कुछ लोगों के पास स्वयं की जमीन ना होने के कारण वह जमीदार के खेतों में बंधुआ मजदूर की तरह काम करते थे ।और उसके बदले में जो भी उन्हें मजदूरी मिलती थी। उसी में गुजारा होता था।
इसके अलावा कुछ नहीं मिलता था। विचार किया गया कि इन लोगों को भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े प्रदान कर दिया जाए।
जिससे यह स्वयं खेतों की के मालिक बने ,और अपनी खेती में अन्य पैदा कर अपनी आजीविका पूरी करें । इस प्रकार जब भूमि का दान दिया गया ।तो उसे भूदान की संज्ञा दी गई।
5. श्रम दान | Shram dan
शारीरिक रूप से सेवा देना श्रमदान कहलाता है। इसमें कुछ लोग सेवा भाव से किसी धार्मिक स्थल या किसी सार्वजनिक स्थल निर्माण करने में शारीरिक रूप से सेवा देते हैं। तो इसे श्रमदान कहते हैं।
इसका भी बड़ा महत्व होता है ।क्योंकि आज के समय में लोग शारीरिक रूप से सेवा देना बहुत कम पसंद करते हैं।
जो लोग शारीरिक सेवा या श्रमदान करते हैं ।वह समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति है ।समाज इनकी सदैव सराहना करता रहेगा।
6.गौ दान | Gau dan
भारतीय परंपरा के अनुसार गाय दान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। जब भी किसी पंडित पुरोहित से कोई यज्ञ या पूजा-पाठ आदि करवाया जाता था तो उसके बदले में उसे दक्षिणा के रूप में गाय दान की जाती थी यह दान हमारे समाज में काफी समय से अधिक प्रचलित रहा और आज भी है
गाय का दान महत्वपूर्ण दान समझा जाता है जिसे गाय दान में मिलती थी वह उस गाय की बहुत अच्छी तरह से सेवा करता था कहा जाता है कि गाय में 33 करोड़ देवता निवास करते हैं इसलिए उसे गौमाता भी कहते हैं।
7.धन दान | Dhan dan
निर्धन लोगों को उनकी यथा जरूरत कुछ मुद्रा प्रदान करना धन दान के अंतर्गत आता है ।धन का दान समाज के धनवान लोगों के द्वारा दिया जाता है ।जो अपनी कमाई का कुछ हिस्सा समाज के निर्धन लोगों को प्रदान करके उनके जीवन जीने में सहयोग करते हैं ।
और अपने जीवन की कमाई को सार्थक बनाते हैं ।ऐसे लोग धन का दान देकर पुण्य का कार्य करते हैं। जो कि उसके बदले में उन लोगों से कोई अपेक्षा या ईश्वर से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं। निस्वार्थ भाव से दान करते हैं ।
और उनके द्वारा समाज के काफी लोगों को सहयोग मिलता है। जिससे उन्हें जीवन जीने में सरलता महसूस होती है।
8 .वर दान | Var dan
पुराने समय में जब कोई भक्त किसी देवी या देवता की भक्ति करता था ।और देवी देवता उसकी भक्ति से प्रसन्न हो जाते थे। तो कहा जाता है। कि वह साक्षात रूप में भक्तों के सामने आकर उस से वर मांगने को कहते थे। कि मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं बोलो तुम्हें क्या वर चाहिए भक्त की जो इच्छा होती थी
वह वर मांग लेता था देवी देवताओं द्वारा वर प्रदान कर दिया जाता था उनका वर प्रदान करना ही। वरदान कहलाता है। कहा जाता है कि भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने भस्मासुर को वर मांगने के लिए कहा ,
तो उसने कहा हे प्रभु मुझे ऐसा वर चाहिए कि मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूं ,वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने कहा तथास्तु अर्थात ऐसा ही होगा।।
9. ज्ञान दान | Gyan dan
जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी का मार्गदर्शन किया जाता है। तो उसे ज्ञान का दान कहते हैं। जिसे जिस क्षेत्र में मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। वह उस क्षेत्र में मार्गदर्शन लेकर कार्य प्रगति करता है।
हमारे देश में जब आश्रम व्यवस्था थी तो उसमें एक वानप्रस्थ आश्रम था।
जिसमें व्यक्ति गुरुकुल में जाकर 50 वर्ष की आयु से लेकर 75 वर्ष की आयु तक निरंतर गुरुकुल में रहने वाले विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करता था। इस प्रकार से यह ज्ञान दान के अंतर्गत आता है।
10.कन्या दान | Kanya dan
हिंदू धर्म व्यवस्था में कन्यादान का विशेष महत्व है ।पुत्री का होना बहुत जरूरी है ।क्योंकि बिना पुत्री के आप कन्यादान नहीं कर सकते ।कहा जाता है। कि जिसने कन्यादान नहीं किया उसके सारे दान व्यर्थ हो जाते हैं ।
पुत्री जब विवाह योग्य हो जाती है । तो उसके विवाह हेतु वर खोज कर विवाह करना सुनिश्चित किया जाता है। एवं वैवाहिक स्थल पर अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंप कर कन्यादान की रस्म पूरी की जाती है। इसे ही कन्यादान कहा जाता है।
11.अंग दान | Ang dan
जब किसी व्यक्ति के शरीर का कोई अंग निष्क्रिय हो जाता है। जिससे उसे जीवन में असुविधा होने लगती है। ऐसी स्थिति में जब हम उस व्यक्ति को अपना अंग प्रदान करते हैं ।तो यह अंगदान के अंतर्गत आता है।
और हम सभी को अंगदान करना चाहिए। इससे हमारे समाज के लोगों को बहुत बड़ी सुविधा मिलती है ।और लोगों के जीवन में फिर से खुशी की किरण चमकने लगती है।
12. नाम दान | Nam dan
अध्यात्म के क्षेत्र में उन्नति करने वाले महान संतों की संगत में जाकर हम कुछ समय तक उनके दिए गए उपदेशों का पालन करते हैं । उनके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन का अनुसरण करते हैं ।और उनकी सेवा करते हैं सेवा का तात्पर्य यह नहीं की उनके पैर दबाना है ।
उनके शरीर की मालिश करनी है ।बल्कि सेवा से यह भाव है कि उनके हुकुम में रहना जो कि वह हमारे ही फायदे के लिए बताते हैं।
हम नाम दान अपने जीवन की मोक्ष की प्राप्ति के लिए लेते हैं। और संतों का भी यही मानना है की जीवन में मोक्ष की प्राप्ति तभी होगी जब गुरु से नाम दान प्राप्त होगा गुरु नाम देता है ।और शिष्य उसका सुमिरन करता है। सुमिरन करते करते अभ्यास करते करते वह धीरे-धीरे परिपक्व हो जाता है।
और कुछ समय के बाद वह खुद एक मार्गदर्शक के रूप में तैयार हो जाता है ।वह चाहे तो वह भी नामदान लोगों को प्रदान कर सकता है। परंतु ऐसा नहीं करता आध्यात्मिक क्षेत्र में नाम के दान का सर्वश्रेष्ठ महत्व है। क्योंकि कहा भी गया है ।
कि कलयुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उत्तरहीं पारा ।। तो इस प्रकार से संतो द्वारा दिए गए नाम की महिमा का वर्णन नहीं कर सकते । संतो की महिमा अपार है ।और उनके द्वारा दिए गए नाम की भी महिमा उससे भी ज्यादा अपार है।
FAQ : दान क्या है ?
दान किसको देना चाहिए ?
दान का क्या उद्देश्य होता है ?
दान का क्षेत्र सीमित होता है या व्यापक ?
निष्कर्ष
दान के द्वारा हम और हमारे देश व समाज की स्थित कैसे प्रभावित होती है ।यह निम्नलिखित दान के प्रकारों के माध्यम से ज्ञात होता है ।कि दान के द्वारा हम किस प्रकार से लोगो की सहायता करते हैं । व दान का कितना महत्व है।
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में दान का विशेष योगदान है। इस लेख माध्यम हमने जानकारी देने का प्रयास किया है कि दान क्या है ? दान के लिए दो पक्षों की आवश्यकता दान कब देना चाहिए ?दान किसे देना चाहिए ? दान क्यों देना चाहिए ?
और दान के प्रकार आदि बिन्दुओं पर विस्तार से जानकारी प्रदान की हम आशा कराते हैं हमारा आज का यह लेख आप सभी को अच्छा लगा होगा |