कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस pdf डाऊनलोड हिन्दी अर्थ समेत, विधि और फायदे | Kanakdhara strot Geeta Press

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कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस | Kanakdhara strot Geeta Press : हेलो दोस्तो नमस्कार स्वागत है आपका हमारे आज के इस नए लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस के बारे में बताने वाले हैं या आप लोग कनकधारा स्त्रोत के बारे में जानते हैं अगर नहीं तो आप हमारे इस लेख में अवश्य बने रहे कनकधारा स्त्रोत को गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित किया गया है.

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इसे स्त्रोत को सर्वप्रथम मां लक्ष्मी की स्तुति के लिए किया गया था इस स्थिति से ही स्वर्ण बारिश हुई थी सर्वप्रथम इस कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस को धन प्राप्ति के लिए उपयोग किया जाता है इसके अलावा हमारे पुराणों के अनुसार ऐसा कहा गया है कि कनकधारा स्त्रोत का विधि विधान पूर्वक पाठ करने से माता लक्ष्मी खुश हो जाती है और धन की बारिश करती हैं.

इसीलिए आज हम आप लोगों को इस लेख में कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले हैं इसके अलावा कनकधारा स्त्रोत क्या है और इसके कौन-कौन से चमत्कार हैं इन सारे विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे अगर आप लोग कनकधारा स्त्रोत की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें.

कनकधारा स्तोत्र गीता क्या है ? | Kanakdhara stotra Geeta kya hai ?

हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस का विधि विधान पूर्वक पाठ करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है ऐसा कहा जाता है कि कनकधारा स्त्रोत की रचना गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी उन्होंने सर्वप्रथम माता लक्ष्मी की स्तुति करने के लिए इस स्त्रोत की उत्पत्ति की थी ऐसा कहा जाता है कि इस स्त्रोत से ही उन्होंने स्वर्ण बारिश करवाई थी अगर कोई भी व्यक्ति धन प्राप्ति के लिए कोई उपाय करना चाहता है.

लक्ष्मी Laxmi

तो उस व्यक्ति को हर संभव श्रेष्ठ उपाय यही कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए ऐसा कहा जाता है कि धन प्राप्ति और धन संचय के लिए कनकधारा स्त्रोत यंत्र चमत्कारी लाभ देता है या यंत्र बहुत ही प्रभावशाली है इस यंत्र की विशेषता यह है कि इसमें किसी भी प्रकार की माला ,जाप ,पूजा ,विधि विधान की मांग नहीं की जाती है क्योंकि इस स्त्रोत का दिन में एक ही बार पाठ किया जाता है.

यह स्त्रोत श्री वल्लभाचार्य द्वारा भी लिखा गया है ऐसा कहा जाता है कि इस स्त्रोत से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और यह एक शक्तिशाली स्त्रोत है इस स्त्रोत का नियमित पाठ करने से और इस यंत्र को धारण करने से धन संबंधित जितनी भी परेशानियां होती हैं सब दूर हो जाती हैं इसके अलावा कनकधारा स्त्रोत धन प्राप्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस pdf | Kanakdhara strot Geeta Press pdf

अगर आप लोगों को कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस का पीडीएफ चाहिए तो हमारे द्वारा दी गई इस लिंक पर जाकर आप आसानी से कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस का पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं.

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कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस | Kanakdhara strot Geeta Press

लक्ष्मी

श्रीकनकधारास्तोत्रम्

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।

अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।

माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

माता लक्ष्मी कमल दल पर आती-जाती और मंडराती रहती है उसी प्रकार जो मूल शत्रु होते हैं श्री हरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेम पूर्वक जाति और लज्जा के कारण लौट आते हैं उस समुद्री कन्या माता लक्ष्मी को मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।

आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

शेषनाग पर शयन करते भगवान श्री हरि की धर्म-पत्नी श्री लक्ष्मी जी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य देने वाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेम के कारण आधे खुले हैं, लेकिन साथ ही निर्निमेष नेत्रों से देखने वाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने पास पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।

कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।

मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

जिस तरह भ्रमरी अध-खिले पुष्पों से सजे तमाल के वृक्ष का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो भगवान विष्णु के रोमांच से शोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी की कटाक्ष-लीला मेरे लिए मंगल देने वाली हो।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।

मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।

दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।

दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।

सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।

शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।

नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।

त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।

संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

कमल जैसे नेत्रों वाले केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं दीनहीन लोगों में सबसे आगे हूँ। अतः तुम्हारी कृपा का मैं स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों की तरह कटाक्षों द्वारा मेरी ओर दृष्टिपात करो।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।

अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

जो व्यक्ति इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन की माता भगवती लक्ष्मी की वंदना करते हैं, वे इस पृथ्वी पर महान गुणवान और बहुत भाग्यवान हैं और विद्वान भी उनके मनोभाव जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ करने की विधि | Kanakadhara stotram karne ki vidhi

महालक्ष्मी

अगर कोई व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ करना चाहता है तो उसके लिए उस व्यक्ति को कुछ नियमों का पालन करना होगा.

  1. कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ करने के लिए शुभ मुहूर्त निकालना है उसके बाद कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना बहुत ही आसान होता है उसके बाद आपको सबसे पहले बाजार से कनकधारा यंत्र और कनकधारा स्त्रोत अपने घर में लेकर आना है.
  2. कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ करने के लिए उस व्यक्ति को सबसे पहले सुबह जल्दी शुभ मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निश्चिंत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने हैं.
  3. उसके बाद कनकधारा यंत्र को किसी साफ-सुथरी जगह पर स्थापित करना है.
  4. उसके बाद कनकधारा यंत्र के सामने पूर्व दिशा की ओर बैठकर श्रद्धा पूर्वक उसकी पूजा करनी है और उसके सामने धूप दीप जलाकर आरती करनी है.
  5. अब आपको कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ शुरू कर देना है.
  6. जैसे ही आप इस कनकधारा स्त्रोत गीता को संपूर्ण कर लेते हैं उसके बाद आपको माता लक्ष्मी के सामने बैठकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करनी है.
  7. अगर आप लोग कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ सुबह के समय नहीं कर सकते हैं तो आप उसी प्रकार इस कनकधारा पाठ को शाम के समय भी कर सकते हैं.

कनकधारा स्त्रोत गीता के फायदे | Kanakadhara stotram ke fayde

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हमारे हिंदू धर्म के अनुसार और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जिस भी घर में माता लक्ष्मी विराजमान होती हैं उस घर में हमेशा सुख शांति समृद्धि बनी रहती है वैसे तो विशेष रूप से माता लक्ष्मी की आराधना शुक्रवार के दिन करना लाभकारी होता है.

ऐसा कहा जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा श्रद्धा पूर्वक करने से उन्हें लाल पुष्प अर्पित करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है इसके अलावा अगर आप लोग लक्ष्मी और नारायण की साथ में पूजा करते हैं तो आपका दांपत्य जीवन सुखमय में रहता है और आपके घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है इसीलिए आपको शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने बैठकर श्रद्धा पूर्वक उनकी पूजा करनी चाहिए।

इसके अलावा शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि कनकधारा स्त्रोत का जो भी व्यक्ति दिन में 3 बार पाठ करता है उस व्यक्ति को कुबेर की भांति ही धनवान बना दिया जाता है लेकिन कुछ लोग तो दिन में 3 दिन का पाठ नहीं कर सकते हैं तो दिन में एक ही दिन का पाठ काफी होता है.

लेकिन कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ दिन में दो बार तो अवश्य ही करना चाहिए अगर दो बार नहीं तो एक बार तो करना ही चाहिए अगर आप दिन में एक बार ही कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ करते हैं तो आपको काफी लाभ प्राप्त होता है क्योंकि इस स्त्रोत का पाठ करने से जीवन से गरीबी और दरिद्रता दूर हो जाती है जीवन में आपको इतना धन प्राप्त होता है जिससे आप अपनी सभी परेशानियों को दूर कर सकते हैं इसीलिए इस कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना बहुत ही लाभदायक है.

FAQ : कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस

कनकधारा स्त्रोत कितनी बार करना चाहिए?

अगर आप लोग यह जानना चाहते हैं कि कनकधारा स्त्रोत का कितनी बार पाठ करना चाहिए तो हम आप लोगों को बता दें कि शंकराचार्य ने कनकधारा स्त्रोत का संदर्भ सहित विधि विधान पूर्वक उल्लेख नहीं दिया है लेकिन कनकधारा स्त्रोत का 1 बार पाठ करना अनिवार्य है आप चाहे तो दिन में 3 बार भी इसे स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं।

कनकधारा स्तोत्र का पाठ कैसे करना चाहिए?

अगर कोई भी व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना चाहता है तो उस व्यक्ति को सबसे पहले एक कनकधारा यंत्र और कनकधारा स्त्रोत बाजार से ले आना चाहिए उसके बाद नियमित रूप से स्नानादि करने के बाद कनकधारा यंत्र को साफ सुथरी जगह पर स्थापित कर देना है और उसके सामने धूप दीप जलाना है उसके बाद कनकधारा स्त्रोत का पाठ शुरू करना है आप अपनी सुविधा के अनुसार शाम सुबह भी इस स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं.

कनकधारा स्त्रोत में कितने श्लोक होते हैं?

अगर कोई भी व्यक्ति या जानना चाहता है कि कनकधारा स्त्रोत में कितने लोग थे तो हम आप लोगों को बता दें कि कनकधारा स्त्रोत में कुल 21 श्लोक हैं.

निष्कर्ष

जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस पाठ के बारे में बताया इसके अलावा कनकधारा स्त्रोत का पाठ कैसे किया जाता है कनकधारा स्त्रोत गीता का पाठ करने के फायदे क्या है इन सारे विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है अगर आपने हमारे जिले को अच्छे से पढ़ा है तो आपको कनकधारा स्त्रोत गीता प्रेस के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी उम्मीद करते हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी

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