खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं ? | Khatu shyam ko hare ka sahara kyu kehte hai ?

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खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं Khatu shyam ko hare ka sahara kyu kehte hai : दोस्त नमस्कार आज मैं आप लोगों को इस लेख के माध्यम से खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं इससे संबंधित जानकारी प्रदान करूंगी, जिसमें मैं आप लोगों को बताऊंगी खाटू श्याम कौन है और इन्हें हारे का सहारा क्यों कहते हैं ?

खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं Khatu shyam ko hare ka sahara kyu kehte hai

खाटू को हारे का सहारा क्यों कहते हैं इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, यह तब की बात है जब पांडव और कौरव के बीच में युद्ध का समय आ गया था और इस युद्ध के विषय में बड़े-बड़े राजा महाराजा सभी को जानकारी प्राप्त हो गई थी और वह सभी लोग अपनी अपनी सेना लेकर इस युद्ध में शामिल होने के लिए तैयार हो गए थे.

इतना ही नहीं बल्कि कौरव और पांडव के युद्ध के विषय में पूरे ब्रह्मांड में खबर पहुंच गई और फिर जब इस युद्ध का समय आया तो यहीं से प्रारंभ हुई है खाटू श्याम हारे के सहारे की कथा, तो दोस्तों आइए जानते हैं वह कौन सी वजह है जिसकी वजह से खाटू श्याम के अवतार ने जन्म लिया और फिर इन्हें हारे का सहारा क्यों कहा जाने लगा.

खाटू श्याम कौन है ? | Khatu shyam kaun hai ?

खाटू श्याम के रूप में जिसकी पूजा की जाती है वह घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे, जो कि एक बहुत ही शक्तिशाली और दानवीर योद्धा थे जिन्हें भगवान शिव की तपस्या के द्वारा दिव्य तीन दिव्य बाण प्रदान किए गए हैं थे जो समस्त दुनिया का विनाश कर सकती थी. इसलिए जब कौरव और पांडव के बीच युद्ध हो रहा था. तब श्री कृष्ण बर्बरीक को युद्ध में जाने से रोकने के लिए छल के द्वारा बर्बरीक का शीश दान में मांग लिया था.

Khatu Shyam

क्योंकि श्री कर्षण को पता था कि अगर बर्बरीक युद्ध को पहुंच गया तो निश्चित ही पांडवों की हार हो जाएगी ,इसलिए उन्होंने ऐसा किया था और जब बर्बरीक ने श्री कृष्ण के चरणों में अपना शीश दान दे दिया था तो उनकी श्री कृष्ण बर्बरीक की इस वीरता से प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान दिया कि आप कलयुग में हमारे रूप में पूजे जाएंगे, और जो भी मेरा सच्चा भक्त आपके नाम का स्मरण करेगा उसके समस्त दुखों का निवारण होगा और श्री कृष्ण के इसी आशीर्वाद की वजह से बर्बरीक को कलयुग में खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है.

खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं ? | Khatu shyam ko hare ka sahara kyu kehte hai ?

जब पांडवों और कौरवों के बीच में युद्ध चल रहा था तब बहुत दूर-दूर से राजा महाराजा इस युद्ध को देखने के लिए आ रहे थे तभी घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता मोर्वी के सामने कौरव और पांडव के बीच में हो रहे युद्ध को देखने जाने की इच्छा प्रस्तुत की . मगर बर्बरीक की मां ने उन्हें युद्ध देखने जाने के लिए माना कर दिया. लेकिन बर्बरीक की जिद की वजह से मां की ममता ने उन्हें युद्ध देखने की आज्ञा प्रदान कर दी.

जैसे ही बर्बरीक को मां के द्वारा युद्ध देखने की आज्ञा प्रदान हुई बर्बरीक की मां मौरवी ने अपने बेटे बर्बरीक से कहा जाओ बेटा युद्ध में हारे का सहारा बनना. तब बर्बरीक ने अपनी मां को वचन दिया मां जैसा आपने कहा है मैं वैसा ही करूंगा मैं युद्ध में हारने वाले पक्ष का सहारा बनूंगा. बर्बरीक ने अपने नीले घोड़े पर सवार होकर युद्ध देखने के लिए युद्ध की तरफ प्रस्थान कर लिया. बर्बरीक घटोत्कच और मौरवी का पुत्र था जो बहुत ही शक्तिशाली और दानी था. बर्बरीक भगवान शिव की पूजा अर्चना करता था.

जिसकी वजह से इसके पास कई सारी देवी शक्ति थी, इसके अलावा यह भी कहा जाता है. बर्बरीक के पास मात्र तीन बाण थे जो समस्त सृष्टि का विनाश कर सकती थी जिनमें से एक बाण का उपयोग करके बर्बरीक कौरव और पांडव के बीच हो रहे युद्ध का फैसला कर सकता था.

और इस बात से श्री कृष्ण परिचित थे अगर बर्बरीक इस युद्ध में शामिल हुआ तो पांडव की हार निश्चित है इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए ब्राह्मण का रूप धारण करके रास्ते में आ रहे बर्बरीक को रोका , और फिर बर्बरीक से श्री कृष्ण ने प्रश्न किया आप कुरुक्षेत्र की ओर कहां जा रहे हैं.

तब बर्बरीक ने बड़े गर्व के साथ श्री कृष्ण को एक मामूली ब्राह्मण समझते हुए उनके प्रश्न का उत्तर दिया और कहा मैं कुरुक्षेत्र में पांडव और कौरव के बीच हो रहे युद्ध को देखने जा रहा हूं जिसमें मैं हारने वाले पक्ष की मदद करूंगा.

बर्बरीक की इतनी बात सुनकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा आप इतने शक्तिशाली वीर योद्धा है तो हमें साबित करके दिखाएं कि आप सच में महान शक्तिशाली योद्धा है. श्री कृष्ण की इतनी बात सुनकर बर्बरीक ने अपनी वीरता दिखाने के लिए अपनी एक बाण चलाई सामने एक पीपल का वृक्ष था उस पेड़ में जितने भी पत्ते थे एक ही बाण से सभी पत्ते छेद हो गए थे और एक पत्ता श्री कृष्ण के पैर के नीचे छिपा हुआ था इसीलिए वह बाण श्री कृष्ण के पैर के ऊपर जा कर यह थम गई.

खाटू श्याम

बर्बरीक कि इस महान शक्ति को देखकर श्री कृष्ण मन ही मन सोच रहे थे कि किस प्रकार से युद्ध में जाने से रोको क्योंकि बर्बरीक के पास जो तीन बाण थे वह बर्बरीक ने भगवान शिव से वरदान के रूप में प्राप्त किया था और ऐसा माना जाता है यह तीन बाण समस्त दुनिया का विनाश कर सकती थी, जिनमें से एक बाण कौरव और पांडवों के बीच हो रहे युद्ध को पूरी तरह से खत्म करने के लिए काफी थी इसीलिए श्रीकृष्ण ने सोचा किसी न किसी तरह से तो हमें बर्बरीक को रोकना ही होगा ताकि यह युद्ध तक ना पहुंच पाए.

उसके पश्चात श्री कृष्ण ने बर्बरीक कि इतनी शक्ति को देखकर कहा आप तो बहुत बड़े योद्धा है आप बहुत महान है क्या आप मुझ गरीब ब्राह्मण को कुछ दान नहीं करेंगे. तब बर्बरीक अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहा मागों आप क्या मांगना चाहते हैं आज तक हमने किसी को भी कुछ देने से मना नहीं किया है मागिए आपको क्या मांगना है. श्री कृष्ण ने फिर प्रश्न किया एक बार सोच लीजिए जो मांगूंगा क्या आप मुझे वह दे पाएंगे.

तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण को सामान्य ब्राह्मण समझकर वचन देते हुए कहा आप जो मांगेंगे मैं आपको खुशी खुशी दे दूंगा. जैसे ही बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को वचन दिया तो फिर श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान के रूप में उनका शीश मांग लिया. जब बर्बरीक ने ब्राह्मण की इस इच्छा के विषय में सुना तो उन्हें आभास हो गया कि यह कोई सामान्य ब्राह्मण नहीं है फिर बर्बरीक ने श्री कृष्ण से अपने असली अवतार में आने के लिए कहा और उनसे अपना परिचय बताने का निवेदन किया.

बर्बरीक के इस निवेदन को सुनकर श्री कृष्ण अपने असली अवतार में आए उसके बाद बर्बरीक को अपना सारा परिचय दिया. बर्बरीक ने वचन के मुताबिक श्री कृष्ण के चरणों में अपना शीश दान करने के लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने श्रीकृष्ण से अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा, मैं युद्ध को देखने की इच्छा रखता हूं इसीलिए आप मेरा सिर दान में ले लीजिए मगर मुझे कौरव और पांडव के बीच चल रहे युद्ध का दर्शन करा दीजिए.

श्री कृष्ण ने उनकी इस बात को स्वीकार किया उसके बाद बर्बरीक ने अपने वचन के मुताबिक श्री कृष्ण के चरणों में अपना शीश काटकर दान कर दिया. बर्बरीक कि इस दानवीरता से श्रीकृष्ण बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए उन्होंने बर्बरीक के शीष को उठा कर कुरुक्षेत्र में हो रहे कौरव और पांडव के युद्ध को देखने के लिए बर्बरीक के शीष को एक बहुत ऊंचे पहाड़ के ऊपर रख दिया ताकि बर्बरीक का शीष कौरव और पांडव के बीच चल रहे संपूर्ण युद्ध को आसानी से देख सकें.

इस तरह से बर्बरीक के कौरव और पांडव के बीच चल रहे संपूर्ण युद्ध का शुरू से अंत तक पूरा चित्रण देखा युद्ध में जीत पांडव की हुई थी और गौरव को हार प्राप्त हुई थी और जब युद्ध में विजय पांडव को प्राप्त हुई तो सभी भाई आपस में युद्ध जीतने का श्रेय प्राप्त करने के लिए आपस में लड़ने लगे. श्री कृष्ण ने पांडव को आपस में लड़ते हुए देखकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया युद्ध का श्रेय किसको मिलना चाहिए इसका निर्णय आप कीजिए क्योंकि आपने संपूर्ण युद्ध को शुरू से अंत तक पूरी तरह से देखा है.

तब बर्बरीक ने जवाब दिया श्री कृष्ण का शक्तिशाली चक्र चल रहा था जिसकी वजह से गौरव की सभी सेना कटते हुए वृक्ष की तरह पराजित होकर जमीन पर गिर रही थी और उधर द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्तपान कर रही थी. बर्बरीक कि इस बात को सुनकर पांडव को अपने आप में बहुत शर्मिंदगी का अनुभव हुआ और फिर उन्होंने श्री कृष्ण से माफी मांगी और बर्बरीक को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया.

इस प्रकार श्री कृष्ण बर्बरीक के शीश दान और उनकी सच्ची बातों से प्रसन्न होकर उन्हें कलयुग में अपने नाम यानी कि श्री कृष्ण नाम से पूजे जाने का वरदान प्रदान किया, जिसमें उन्होंने कहा अगर कोई मेरा भक्त आपके दर्शन करेगा तो समझो उसने मेरे दर्शन प्राप्त कर लिया और जो भी भक्त सच्चे दिल से आपके नाम का स्मरण करेगा तो उस भक्तों का कल्याण होगा और धर्म-अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति होगी.

उसके बाद जहां पर बर्बरीक का शीष रखा हुआ था उस स्थान पर, कुछ समय पश्चात एक बहुत ही विशाल मंदिर बन गया जिसमें श्री कृष्ण की मूर्ति की स्थापना की गई जिन्हें खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध किया और तभी से हर साल में होली वाले दिन खाटू श्याम बाबा के भव्य मंदिर में हजारों संख्या में लोग इनके दर्शन के लिए आते हैं और जो भी बेसहारा इनके मंदिर में सच्चे दिल से अपनी मुराद लेकर आता है, तो खाटू श्याम बाबा उन्हें कभी खाली हाथ नहीं भेजते हैं. यही वजह है कि इन्हें हारे का सहारा कहते हैं.

FAQ : खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं ?

खाटू श्याम की महिमा क्या है ?

खाटू श्याम बाबा में इतनी शक्ति है कि इन के दरबार में जो भी सच्चे दिल से आता है जो भी मुराद मांगता है उस व्यक्ति को खाटू श्याम बाबा खाली हाथ नहीं भेजते हैं जिसकी वजह से वह व्यक्ति हर बार इनके दर्शन करने का इच्छुक बन जाता है.

खाटू श्याम पहले कौन थे ?

खाटू श्याम पहले पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे जो घटोत्कच और मौरवी के पुत्र थे ,बर्बरीक एक बहुत ही शक्तिशाली और मायावी योद्धा था इससे महादेव के प्रधान से 3 दिव्या बाढ़ प्राप्त थी जो समस्त दुनिया का विनाश कर सकती थी.

खाटू श्याम को क्या चढ़ाया जाता है ?

खाटू श्याम ने धर्म की जीत के लिए अपना सिर श्री कृष्ण को दान में दे दिया था इसीलिए इनकी इस दानवीरता को देखते हुए इन्हें केसरी सफेद लाल रंग का झंडा चढ़ाया जाता है.

निष्कर्ष

मित्रों जैसा कि आज हमने इस लेख के माध्यम से आप सभी लोगों को खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं इस प्रश्न से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की पूरी कोशिश की है जिसमें हमने आप लोगों को बताया है खाटू श्याम कौन है और इनका खाटू श्याम नाम कैसे पड़ा तथा खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं ?

ऐसे में अगर आप लोगों ने इस लेख को शुरू से अंत तक पढ़ा होगा तो आप लोगों को खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहा जाता है इस प्रश्न से संबंधित जानकारी अच्छे से प्राप्त हो गई होगी. ऐसे में अगर आप भी खाटू श्याम की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो खाटू श्याम के दर्शन करके इनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं तो मित्रों हम उम्मीद करते हैं आप लोगों को हमारे द्वारा बताई गई खाटू श्याम से संबंधित जानकारी पसंद आई होगी और उपयोगी भी साबित हुई होगी.

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