महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | mahishasurmardini stotra : हेलो दोस्तो नमस्कार स्वागत है आपका हमारे आज के इस नए लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से mahishasurmardini stotra के बारे में बताने वाले हैं कई बार लोगों के साथ ऐसा होता है कि वह किसी कारणवश अधिक से अधिक समस्याओं में जुड़ जाते हैं जिसके कारण व अत्यधिक परेशान रहते हैं और उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता है.
कि वह क्या करें तो ऐसे ही लोगों के लिए आज हम एक ऐसा स्त्रोत लेकर आए हैं जो शास्त्रों द्वारा प्रमाणित है mahishasurmardini stotra इस स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं मान्यताओं के अनुसार मां भगवती के इस स्त्रोत का पाठ अत्यधिक जातक करते हैं ऐसा कहा जाता है कि जो मनुष्य जीवन में शक्ति की कामना करता है.
उसे महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए अर्थात उसी के साथ मां भगवती की आराधना भी करनी चाहिए। मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है कि मां भगवती की आराधना करते थे और ससुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करने से बड़े से बड़ा कष्ट दूर हो जाता है शास्त्रों के मुताबिक ऐसा कहा गया है कि अगर व्यक्ति दिन में एक बार महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ कर लेता है.
तो उसके जीवन की संपूर्ण परेशानियां दूर हो जाएंगी इसीलिए आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से mahishasurmardini stotra के बारे में बताएंगे इसके अलावा महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत पाठ करने की विधि क्या है और महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत पाठ करने के लाभ क्या है.
इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे अगर आप में से कोई भी व्यक्ति सभी विषयों के बारे में जानने के लिए उत्सुक है तो वह हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़े ताकि उसे महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।
- 1. महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ कब करना चाहिए ? | mahishasurmardini stotra ka path kab karna chahiye ?
- 2. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र pdf | mahishasurmardini stotra pdf
- 3. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रचयिता कौन है ? | mahishasurmardini stotra ke rachayita kaun hai ?
- 4. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | mahishasurmardini stotra
- 5. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने की विधि | Mahishasurmardini stotra ka path karne ki vidhi
- 6. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के लाभ | Mahishasurmardini stotra ke labh
- 7. FAQ : mahishasurmardini stotra
- 7.1. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रचयिता कौन है?
- 7.2. दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी क्यों कहा जाता है?
- 7.3. महिषासुर के पुत्र का नाम क्या था?
- 8. निष्कर्ष
महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ कब करना चाहिए ? | mahishasurmardini stotra ka path kab karna chahiye ?
अगर आप में से कोई भी व्यक्ति महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ कब किया जाता है इस विषय के बारे में जानना चाहते हैं तो आज हम आपको मान्यताओं के अनुसार महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ कब किया जाता है इसके बारे में बताएंगे शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा गया है कि महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ आप किसी भी दिन कर सकते हैं.
लेकिन अगर आप नवरात्रि के 9 दिनों तक महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करते हैं तो आपके लिए बहुत ही शुभ मौका रहेगा महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ सुबह के समय ही करना चाहिए इस स्त्रोत का पाठ करना बहुत ही अच्छा और लाभदायक होता है तो चलिए अब हम आपको महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत और उसकी विधि लाभ के बारे में बताएंगे।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र pdf | mahishasurmardini stotra pdf
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महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रचयिता कौन है ? | mahishasurmardini stotra ke rachayita kaun hai ?
महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करने से पहले हमें उसके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत की रचना शंकराचार्य द्वारा की गई है इस स्त्रोत का पाठ नवरात्रि के महीनों में करना शुभ माना जाता है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | mahishasurmardini stotra
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने की विधि | Mahishasurmardini stotra ka path karne ki vidhi
कई लोगों के साथ ऐसा होता है कि वह किसी कारणवश अत्यधिक परेशानियों में फस जाते हैं और उन्हें कोई भी रास्ता नहीं दिखाई देता है तो वह अत्यधिक परेशान हो जाते हैं लेकिन आज हम आपको उस परेशानी का इलाज बताएंगे।
- संपूर्ण परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए आपको महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जो हमने आपको ऊपर दे दिया है।
- अब हम आपको महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करने की विधि के बारे में बताएंगे।
- महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ आप किसी भी समय कर सकते हैं लेकिन अगर यह नवरात्रि के 9 दिन तक किया जाए तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है।
- लेकिन अगर आप इस स्त्रोत का पाठ प्रतिदिन करते हैं तो यह आपके लिए ज्यादा लाभकारी होता है।
- महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करने के लिए आपको प्रतिदिन सुबह उठकर स्नानादि से निश्चिंत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेना है।
- वस्त्र धारण करने के बाद अपने घर के मंदिर में जाकर आसन बिछाकर बैठ जाएं।
- उसके बाद मां भगवती की प्रतिमा को अपने घर के मंदिर में स्थापित करें और संपूर्ण पूजा विधि को पूजा स्थल पर रख ले।
- उसके पश्चात मां भगवती की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं और उन्हें पुष्प अर्पित करें।
- उसके पश्चात ही आप महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ शुरू करें।
- यह स्त्रोत कि कोई निश्चित संख्या नहीं होती है इसीलिए आप इस स्त्रोत का पाठ अपनी इच्छा अनुसार कर सकते हैं।
- इस स्त्रोत का पाठ करने के बाद समाप्ति में आपको मां भगवती से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के लाभ | Mahishasurmardini stotra ke labh
- शास्त्रों के मुताबिक ऐसा कहा जाता है कि अगर आपके जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार की समस्या आती है तो आपको उस समस्या से छुटकारा पाने के लिए महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए इस स्त्रोत का पाठ करने से मां भगवती का आशीर्वाद मिलता है और उसी से सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
- अगर आप में से कोई भी व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करता है तो उस व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
- प्रतिदिन महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करने से मनुष्य के जीवन से सभी प्रकार के संकटों का नाश हो जाता है और उस व्यक्ति को शक्ति साहस और बल की प्राप्ति होती है।
- उसके पश्चात महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करने से सुख समृद्धि और शांति की प्राप्ति भी होती है।
FAQ : mahishasurmardini stotra
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रचयिता कौन है?
दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी क्यों कहा जाता है?
महिषासुर के पुत्र का नाम क्या था?
निष्कर्ष
दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से mahishasurmardini stotra के बारे में बताया इसके अलावा महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत का पाठ करने की विधि क्या है और महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत पाठ करने के लाभ क्या है इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है अगर आपने हमारे इस लेख को अच्छे से पढ़ा है तो आपको इन सभी विषयों के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी।