प्रेम क्या है गीता के अनुसार | Prem kya hai geeta ke anusar : हेलो मित्रों नमस्कार आज मैं आप लोगों के लिए लेकर आई हूं एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक जिसमें मैं आप लोगों को बताऊंगी प्रेम क्या है गीता के अनुसार, क्योंकि प्रेम एक ऐसी वस्तु है जो मनुष्य को जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है और उसे सही गलत का ज्ञान कराता है यहां तक कि कई बार प्रेम आपको मृत्यु के चंगुल से भी बचा लेता है.
क्योंकि सच्चे प्यार में ईश्वर की भक्ति करने से भी ज्यादा शक्ति निहित होती है और प्रेम की इसी शक्ति को देख कर कमहर्षि वेदव्यास जी ने श्रीमद्भगवद्गीता का निर्माण किया जिसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोकों का वर्णन है जिसमें से तीसरा अध्याय कर्म और प्रेम पर आधारित है जिसमें उन्होंने बताया है प्रेम ही जीवन का आधार है।
जिस के जीवन में प्रेम है उस के जीवन में सदैव सुख शांति निहित रहती है. इसके अलावा महर्षि वेदव्यास जी ने श्रीमद भगवत गीता के 18 अध्यायों में मनुष्य के संपूर्ण जीवन के विषय में सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं का वर्णन किया है इसको पढ़ने के बाद हर मनुष्य को जीवन जीने का ढंग क्या होता है.
इसके विषय में अच्छे से जानकारी प्राप्त हो जाती है और इसी मद भगवत गीता के महत्व को समझते हुए आज मैं आप लोगों को श्रीमद्भगवद्गीता में बताए गए प्रेम का क्या अर्थ होता है इसके विषय में बताएंगे जिसके लिए हम आप लोगों को प्रेम की कुछ परिभाषा बताएंगे जो यह बताती है कि प्रेम गीता के अनुसार क्या माना गया है.
ऐसे में अगर आप लोग गीता के अनुसार प्रेम का क्या अर्थ बताया गया है इसकी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो कृपया करके इस लेख को शुरू से अंत तक अवश्य पढ़ें.
- 1. प्रेम क्या है गीता के अनुसार | Prem kya hai geeta ke anusar
- 1.1. 1. गीता के अनुसार प्रेम की परिभाषा
- 1.2. 2. गीता के अनुसार निस्वार्थ प्रेम की परीभाषा
- 1.3. 3. गीता के अनुसार पवित्र प्रेम की परिभाषा
- 2. गीता के अनुसार सच्चे प्रेम का अर्थ
- 3. गीता के अनुसार सबसे चंचल क्या है ?
- 4. गीता के अनुसार सत्य क्या है ?
- 5. गीता के अनुसार शरीर का सारथी कौन है ?
- 6. गीता का प्रमुख संदेश क्या है ?
- 7. FAQ : प्रेम क्या है गीता के अनुसार
- 7.1. प्रेम कितने प्रकार का होता है ?
- 7.2. शास्त्रों के अनुसार प्रेम क्या है ?
- 7.3. प्यार होने के बाद क्या होता है ?
- 8. निष्कर्ष
प्रेम क्या है गीता के अनुसार | Prem kya hai geeta ke anusar
श्रीमद भगवत गीता में कुछ परिभाषाओं के माध्यम से प्रेम के अर्थ की व्याख्या की गई है. जिनको पढ़ने के बाद प्रेम क्या होता है, इस बात का उत्तर सटीक और सरल शब्दों में प्राप्त हो जाता है वह परिभाषाएं कुछ इस प्रकार से है जैसे :
1. गीता के अनुसार प्रेम की परिभाषा
श्रीमद भगवत गीता में प्रेम के लिए सबसे पहली परिभाषा में बताया गया है प्रेम ही जीवन का आधार है जिस व्यक्ति के जीवन में प्रेम है उस व्यक्ति के जीवन में सदैव सुख और शांति निहित रहती हैं.
2. गीता के अनुसार निस्वार्थ प्रेम की परीभाषा
गीता के अनुसार प्रेम की दूसरी परिभाषा, बिना किसी शर्त के किसी को प्यार करना, बिना किसी इरादे के बात करना, बिना किसी कारण के किसी को कुछ देना, बिना किसी उम्मीद के दूसरे की परवाह करना , यही निस्वार्थ प्रेम हैं.
3. गीता के अनुसार पवित्र प्रेम की परिभाषा
गीता के अनुसार पवित्र प्रेम एक एहसास है, जो रूह से महसूस किया जाता है, जिसके बिना हमें अपना जीवन निरर्थक लगता है, हम मृत प्राय हो जाते हैं.
गीता के अनुसार सच्चे प्रेम का अर्थ
गीता के अनुसार सच्चा प्रेम प्यार वो नही जो कह कर दिखाया जाये :
प्यार वो है जो छुप कर निभाया जाये
प्यार वो आस्मां है
जिसे कभी दबाया ना जाये
प्यार वो ज़मीन है
जिसे कभी गिराया ना जाये
प्यार वो आग है
जिसे कभी बुझाया ना जाये
प्यार वो सुकून है
जिसे कभी छोड़ा ना जाये
प्यार वो एहसास है
जो हमेशा महसूस किया जाये
प्यार वो गीत है
जिसे ज़िन्दगी भर गुनगुनाया जाये
प्यार वो जीत है
जिसे हमेशा मनाया जाये
प्यार वो रीत है
जिसे ज़िन्दगी भर निभाया जाये
प्यार वो कमजोरी है
जिसे कभी आजमाया ना जाये
प्यार वो ताकत है
जिसे कभी भुलाया ना जाये
प्यार वो वचन है
जिसे कभी तोड़ा ना जाये
प्यार वो आदत है
जिसे कभी भुला ना जाये
प्यार वो इज़्ज़त है
जिसे कभी ठुकराया ना जाये
प्यार वो भगवान है
जिसे कभी रूठा ना जाये
प्यार वो बचपना है
जिसे कभी भुलाया ना जाये
प्यार वो ज़मीर है
जिसे कभी बेचा ना जाये
प्यार वो ज़िद है
जिसमें कभी रोका ना जाये
प्यार वो सुख है
जिसमें कभी रोया ना जाये
प्यार वो मंदिर है
जिसे रोज पूजा जाये
प्यार प्राकृतिक है जो ज़बरदस्ती नहीं होता
वो तो एक खूबसूरत एहसास है जो एक पल में ही होता
प्यार हमेशा निस्वार्थ होता है बदले में कुछ नहीं मानता है जैसे सीता का प्यार राम के लिए, राधा का प्यार कृष्ण जी के लिए, मीरा का प्यार कृष्ण जी के लिए. यह सब आज की महिलाओं के लिए मिसाल है प्रेरणा है कि प्रेम क्या होता है प्रेमी स्वार्थ नहीं होता आत्मा का आत्मा से मिलन ही सच्चा प्रेम है.
गीता के अनुसार अन्य महत्वपूर्ण बातें जैसे :
गीता के अनुसार सबसे चंचल क्या है ?
गीता में सबसे चंचल मन को बताया गया है, ऐसा इसलिए क्योंकि आपके मन को आप से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता है. इसीलिए अगर कोई व्यक्ति चाहे तो soyan का आकलन करके अपनी अच्छाइयों और बुराइयों की पहचान कर सकता है और अपने अंदर विद्यमान बुराइयों में सुधार करके खुद को अच्छे कर्म करने योग वाला व्यक्ति बना सकता है.
गीता के अनुसार सत्य क्या है ?
गीता के अनुसार शरीर का सारथी कौन है ?
गीता में मनुष्य के शरीर को रथ बताया गया है जिसमें आत्मा रूपी को रथी विद्यमान हैं जिसका सारथी बुद्धि और मन को लगाम का कारक माना गया है.
गीता का प्रमुख संदेश क्या है ?
गीता का सबसे प्रमुख संदेश है कर्म करते रहो मगर फल प्राप्त होने की आशा मत करो, क्योंकि आपके कर्मों का फल आपको बिना मांगे ही एक दिन अवश्य प्राप्त होगा इसीलिए कर्म के बदले आपको फल पाने का इंतजार नहीं करना चाहिए यही गीता का प्रमुख संदेश है.
FAQ : प्रेम क्या है गीता के अनुसार
प्रेम कितने प्रकार का होता है ?
शास्त्रों के अनुसार प्रेम क्या है ?
प्यार होने के बाद क्या होता है ?
निष्कर्ष
तो दोस्तों जैसा कि आज हमने इस लेख के माध्यम से आप सभी लोगों को प्रेम क्या है गीता के अनुसार इस टॉपिक से संबंधित जानकारी प्रदान करने की पूरी कोशिश की है जिसमें हमने आप लोगों को गीता में प्रेम के अर्थ को समझाने के लिए दी गई परिभाषाओं को बताया है .
अगर आप लोगों ने इस लेख को शुरू से अंत तक पढ़ा होगा तो आप लोगों को गीता के अनुसार प्रेम क्या है इस विषय में अच्छे से जानकारी प्राप्त हो गई होगी और आप लोग सही मायने में प्रेम क्या होता है समझ गए होंगे.