संपूर्ण शिव आरती हिंदी में | Shiv aarti hindi me | shiv chalisa in hindi : हेलो प्रिय दोस्तों नमस्कार स्वागत है. आपका आज के इस लेख में जैसा कि आप सभी जानते हैं. शिव जी को ब्रह्मांड का एक अनोखा हिस्सा माना जाता है. जिस प्रकार ब्रह्मांड का ना कोई आदि है. और ना कोई अंत उसी प्रकार शिव जी का भी कोई अंत नहीं है. अर्थात शिव को अनंत माना जाता है. क्यों एक शक्ति के रूप में इस ब्रह्मांड में समाए हुए हैं. शिव को महाकाल के नाम से भी जाता है.
क्योंकि शिव ही सृष्टिके संहारक हैं. कहा जाता है कि जब इस संसार में कुछ भी नहीं था तो शिव ही इस संसार में व्याप्त थे. शिव के स्वरूप से ही इस सृष्टि का भरण पोषण होता है. सतयुग से लेकर कलयुग तक सृष्टि का भार वहन करते आ रहे हैं. कैलाश पर्वत पर रहने के कारण इन्हें कैलाशपति भी कहते हैं. संसार के लोग शिव जी की पूजा करते हैं. और पूजा करने के बाद आरती भी करते हैं.
बिना आरती किये पूजा अधूरी मानी जाती है. इसलिए पूजा के बाद आरती करना बहुत जरुरी होता है. शिव जी की पूजा बड़ी सरल होती है. इनकी पूजा के लिए बहुत ज्यादा सामाग्री की आवश्यकता नहीं होती है. लेख से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी के लिए लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें आगे के लेख में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की जा रही है .
शिव पूजा | shiv puja
भगवान शिव की पूजा सब को करनी चाहिए भगवान शिव पूजा से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. और अपने भक्तों को मनचाहा वर प्रदान करते हैं. जिससे उनके भक्तों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती रहती हैं . भगवान शिव की पूजा सोमवार के दिन शिव मंदिर में की जाती है. शिव जी के भक्त बड़े उत्साह के साथ सोमवार के दिन मंदिर में जाकर जल चढाते हैं .और पूजा भी करते हैं. जिससे उनको बड़ी शांति मिलती है .
शिव जी की पूजा विधि | shiv puja vidhi
- सुबह प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए .
- शिव मंदिर में घी का दीपक जलाना चाहिए .
- सभी देवी देवताओं की मूर्तियों पर गंगा जल डालकर पवित्र करना चाहिए.
- अपनी सुविधा के अनुसार शिवलिंग पर दूध या जल चढाना चाहिए .
- भगवान शिव पर पुष्प चढाना चाहिए.
- भगवान शिव पर बेल पत्र अवश्य चढाना चाहिए.
- भगवान शिव की आरती करने के बाद भोग भी चाहिए.
शिव पूजा के लाभ | Shiv puja ke labh
भगवान शिव की पूजा करने वाले भक्त भगवान शिव की पूजा करके अनेक लाभ प्राप्त करते हैं जो इस प्रकार बताए जा रहे हैं.
1. शिवजी की पूजा करने वाले भक्तों को कभी भी धन की कमी नहीं रहती है.
2. भगवन शिव की पूजा करने वाले भक्तों को कभी भी रोग नहीं सताते हैं.
3. भगवान शिव की पूजा करने वाले भक्तों का घर धन-धान्य से भरा रहता है .
4. भगवान शिव की पूजा करने वाले व्यक्ति का अध्यात्म में ज्यादा मन लगता है.
5. भगवान शिव की पूजा करने वाले व्यक्तियों को शांति प्राप्त होती है.
6. भगवान शिव की पूजा करने वाले लोगों पर भगवान शिव की अपार कृपा बनी रहती है.
7. और इनकी पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती रहती है.
8. शिव की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर भक्ति भावना बनी रहती है.
शिव जी का व्रत
भारतीय हिंदू धर्म के अनुसार सभी लोग किसी न किसी देवी देवता के उपासक होते हैं और उनकी पूजा उपासना करते हुए व्रत भी रखते है जिनमें शिव के उपासक अधिक पाए जाते हैं भगवान शिव के उपासक भगवान शिव की पूजा उपासना करने के उपरांत सोमवार के दिन व्रत रखने का का भी संकल्प लेते हैं व्रत का मतलब होता है संकल्प और संकल्प भी किसी ना किसी उद्देश्य से रखा जाता है.
संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखता है, कोई धन प्राप्ति के लिए, तो कोई सुंदर वर की प्राप्ति के लिए और कोई अपने कष्टों के निवारण के लिए शिवजी का व्रत रखा जाता है .
शिव जी के व्रत के नियम | shiv vrat niyam
सोमवार के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर , स्नान करके साफ कपडे पहनना चाहिए . फिर समीप के शिव मंदिर में जाकर, शिवलिंग पर जल चढ़ाकर जलाभिषेक करना चाहिए, जलाभिषेक करने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की बड़ी ही श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करना चाहिए . और व्रत से सम्बंधित कथा जरुर सुनना चाहिए . सोमवार के व्रत में एक ही समय भोजन करना चाहिए. व्रत के समय आप फलाहार कर सकते हैं.
शिव आरती हिंदी में | Shiv Aarti hindi me
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
शिव चालीसा श्री शिव चालीसा – 1
शिव चालीसा- 2
दोहा :
अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार। बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार॥
आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति -मुक्ति -दातार। करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार॥
पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार। सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार॥
पलक-पलक आशा भर्यो, रह्यो सुबाट निहार। ढरौ तुरन्त स्वभाववश, नेक न करौ अबार॥
जय शिव शङ्कर औढरदानी।
जय गिरितनया मातु भवानी॥
सर्वोत्तम योगी योगेश्वर।
सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर॥
सब उर प्रेरक सर्वनियन्ता।
उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता॥
पराशक्ति – पति अखिल विश्वपति।
परब्रह्म परधाम परमगति॥
सर्वातीत अनन्य सर्वगत।
निजस्वरूप महिमामें स्थितरत॥
अंगभूति – भूषित श्मशानचर।
भुजंगभूषण चन्द्रमुकुटधर॥
अखिल विश्व के भाग्य-विधायक॥
व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर।
रीछचर्म ओढे गिरिजावर॥
कर त्रिशूल डमरूवर राजत।
अभय वरद मुद्रा शुभ साजत॥
तनु कर्पूर-गोर उज्ज्वलतम।
पिंगल जटाजूट सिर उत्तम॥
भाल त्रिपुण्ड्र मुण्डमालाधर।
गल रुद्राक्ष-माल शोभाकर॥
विधि-हरि-रुद्र त्रिविध वपुधारी।
बने सृजन-पालन-लयकारी॥
तुम हो नित्य दया के सागर।
आशुतोष आनन्द-उजागर॥
अति दयालु भोले भण्डारी।
अग-जग सबके मंगलकारी॥
सती-पार्वती के प्राणेश्वर।
स्कन्द-गणेश-जनक शिव सुखकर॥
हरि-हर एक रूप गुणशीला।
करत स्वामि-सेवक की लीला॥
रहते दोउ पूजत पुजवावत।
पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत॥
मारुति बन हरि-सेवा कीन्ही।
रामेश्वर बन सेवा लीन्ही॥
जग-जित घोर हलाहल पीकर।
बने सदाशिव नीलकंठ वर॥
असुरासुर शुचि वरद शुभंकर।
असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर॥
जो नर-नारि रटत शिव-शिव नित
। तिनको शिव अति करत परमहित॥
श्रीकृष्ण तप कीन्हों भारी।
ह्वै प्रसन्न वर दियो पुरारी॥
अर्जुन संग लडे किरात बन।
दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित मन॥
भक्तन के सब कष्ट निवारे।
दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे॥
शङ्खचूड जालन्धर मारे।
दैत्य असंख्य प्राण हर तारे॥
अन्धकको गणपति पद दीन्हों।
शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों॥
तेहि सजीवनि विद्या दीन्हीं।
बाणासुर गणपति-गति कीन्हीं॥
अष्टमूर्ति पंचानन चिन्मय।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग ज्योतिर्मय॥
भुवन चतुर्दश व्यापक रूपा।
अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा॥
काशी मरत जंतु अवलोकी।
देत मुक्ति -पद करत अशोकी॥
भक्त भगीरथ की रुचि राखी।
जटा बसी गंगा सुर साखी॥
रुरु अगस्त्य उपमन्यू ज्ञानी।
ऋषि दधीचि आदिक विज्ञानी॥
शिवरहस्य शिवज्ञान प्रचारक।
शिवहिं परम प्रिय लोकोद्धारक॥
इनके शुभ सुमिरनतें शंकर।
देत मुदित ह्वै अति दुर्लभ वर॥
अति उदार करुणावरुणालय।
हरण दैन्य-दारिद्रय-दु:ख-भय॥
तुम्हरो भजन परम हितकारी।
विप्र शूद्र सब ही अधिकारी॥
बालक वृद्ध नारि-नर ध्यावहिं।
ते अलभ्य शिवपद को पावहिं॥
भेदशून्य तुम सबके स्वामी।
सहज सुहृद सेवक अनुगामी॥
जो जन शरण तुम्हारी आवत।
सकल दुरित तत्काल नशावत॥
|| दोहा ||
बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार
तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय
दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥
कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥ ।।
इति श्री शिव चालीसा समाप्त ।।