संपूर्ण स्वस्ति वाचन मंत्र : मंत्र का अर्थ और पाठ करने के नियम | Swasti vachan mantra

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स्वस्ति वाचन मंत्र  | Swasti vachan mantra : दोस्तों क्या आप स्वस्ति वाचन मंत्र के बारे में जानते हैं,स्वस्ति वाचन मंत्र क्या है ? इसका जाप कैसे करें, इसका हमारे जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है ? आइए हम आपको बताते हैं. दोस्तों जब घर में कई बार किसी भी शुभ कार्य में पूजा हवन आदि किया जाता है तो स्वस्तिवाचन मंत्र का उच्चारण जरूरी पंडित द्वारा किया जाता है.

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आपने अक्सर अपने घरों में पूजा-पाठ के दौरान पंडितों को स्वस्तिवाचन मंत्र के रूप में ऊं स्वस्ति न इंद्रो.. कहते हुए जरूर सुना है यह मंत्र वास्तव में एक अलग ऊर्जा प्रवाहित करता है इसीलिए पूजा हवन आदि के पहले इस मंत्र का उच्चारण भी किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा हवन यज्ञ आदि स्वस्तिवाचन मंत्र बोलने से व्यक्ति को उसका लाभ अधिक मिलता है इस मंत्र को हम दैनिक जीवन में प्रतिदिन जाप कर सकते हैं.

स्वस्तिवाचन क्या है ? | Swasti vachan kya hai ?

स्वस्ति मंत्र का पाठ करने की क्रिया को स्वस्तिवाचन कहा जाता है किसी भी शुभ कार्य में सफलता और उसका लाभ प्राप्त करने के लिए स्वस्तिवाचन मंत्र का उच्चारण अनुष्ठान में किया जाता है. इस मंत्र का उच्चारण सही तरीके से करने से व्यक्ति को अच्छा फल प्राप्त होता है.

स्वस्ति वाचन मंत्र | Swasti vachan mantra

सामान्य रूप से यज्ञ पूजा व्यक्ति स्वस्तिवाचन मंत्र को बोला जाता है यह स्वस्तिवाचन मंत्र इस प्रकार से हैं.

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

स्वस्तिवाचन मंत्र का अर्थ-

दोस्तों किसी भी प्रकार के मंत्र का उच्चारण किताबों करने के साथ-साथ भारत का जानना भी आवश्यक है इससे हृदय और मन दोनों एक हो जाते हैं ऐसे में स्वस्तिवाचन मंत्र का अर्थ भी जानना व्यक्ति के लिए जरूरी है.

गरुड़ भगवान

स्वस्तिवाचन मंत्र का अर्थ कहता है कि हे भगवान इंद्र आप महान कीर्ति वाले हैं और हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञान स्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो अटूट हथियार रखने वाले गरुड़ देव हमारा मंगल करो हे बृहस्पति देव हमारा मंगल करो.

स्वस्ति वाचन के नियम | Swasti vachan ke niyam

दोस्तों मंत्रों का उच्चारण और जॉप भी सही नियम के साथ होना जरूरी है तभी हमारे लिए फलदाई होते हैं ऐसे में मंत्रों का उच्चारण बहुत ही स्पष्ट और साफ शब्दों में होना जरूरी है तथा नियमों का पालन बहुत ज्यादा जरूरी है ऐसे में अगर आप स्वस्तिवाचन मंत्र का जाप करते हैं तो इन के नियमों को भी जान लें.

  1. स्वस्ति वाचन मंत्र का किसी भी प्रकार की पूजा प्रारंभ करने से पहले किया जाना चाहिए .
  2. स्वस्तिवाचन मंत्र के बाद सभी दिशाओं में अभिमंत्रित किया गया जल और पूजा में प्रयुक्त किए गए जल के छींटे लगाना जरूरी है.
  3. नए घर में प्रवेश करते समय स्वस्तिवाचन मंत्र का उच्चारण करना मंगलकारी माना जाता है परंतु विधि विधान से स्वस्तिवाचन मंत्र का उच्चारण करें .
  4. विवाह के दौरान विधि विधान से स्वस्तिवाचन मंत्र का प्रयोग करने से विवाह में किसी प्रकार का विघ्न नहीं पड़ता है .
  5. स्वस्तिवाचन मंत्र सभी प्रकार के वास्तु दोष समाप्त कर देता है इसीलिए पूजा के दौरान स्वस्तिवाचन मंत्र का प्रयोग अवश्य करें .

संपूर्ण स्वस्ति वाचन मंत्र | Sampurn Swasti vachan mantra

दोस्तों ऐसे हमारे घरों में किसी भी प्रकार का अनुष्ठान होने पर केवल स्वस्तिवाचन मंत्र का ही प्रयोग किया जाता है लेकिन संपूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र का अगर आप जाप करना चाहते हैं तो आपके सामने यह संपूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र है.

ॐ आनो भद्रा : क्रतवो यन्तु विस्वतो
दब्धासो अपरीतास उद्भिद:।

देवा नो यथा सदमिद वृधे
असन्नप्रा युवो रक्षिता रोदि वेदि वे।।

देवा नां भद्रा सुमतिर्रिजुयताम देवाना
ग्वंगरातिरभिनोनिवार्ताताम।

देवानां ग्वंगसख्यमुपसेदि मावयम
देवान आयु: प्रति रन्तु जीवसे।।

तान पूर्वया निविदाहूमहे वयम
भगंमित्रमदितिम दक्षमस्रिधम।

अर्यमणं वरुण ग्वंग सोममस्विना
सरस्वती न: सुभगा मयस्करत ।।

तन्नो वा तो मयो भूवा तु भेषजं
तन्नमा ता पृथिवी तत्पिता द्यौ : ।

तद्ग्राद् ग्रावा न: सोमसुतो मयोभूवस्त
दस्विनाश्रुनुतं धिष्ण्यायुवं ।।

तमीशानं जगतस्तस्थुखसपतिं
धियंजिन्वम वसेहूमहे वयम ।

पूषानो यथा वेद सामसद वृधे
रक्षिता पायुरदब्ध: स्वस्तये ।।

स्वस्तिन इन्द्रो वृद्ध श्रवा :
स्वस्तिन पूषा विस्ववेदा : ।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि :
स्वस्तिनो वृहस्पति दधातु।।

पृषदश्वा मरुत: प्रिश्निमातर:
शुभंया वानोविदथेषु जग्मय:।

अग्नि जिह्वा मनव: सूरचक्षसो
विश्वेनो देवा अवसागमन्निह।।

भद्रं कर्णेभि : शृणुयाम देवा
भद्रं पश्येमा क्षभिर्यजत्राः ।

स्थि रैरङ्गैस्तुष्टुवा ग्वंगसस्तनू
भिर्व्यशेमहि देवहितं यदा यु:।।

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा
यत्रानश्चक्रा जरसंतनू नाम् ।

पुत्रा सो यत्र पितरो भवन्ति
मानो मध्यारी रिषतायुर्गन्तो :।।

अदिति र्द्यौ रदि तिरन्तरिक्ष्म
दितिर्मातास पिता स पुत्र:।

विश्वेदेवा अदिति : पञ्चजन
अदितिर्जातम दितिर्जनि त्वम् ।।

द्यौ : शान्तिरन्तरिक्ष्ग्वंग शान्ति : पृथिवी
शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति :।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा : शान्तिर्ब्रह्म
शान्ति : सर्वग्वंग शान्ति : शान्तिरेव
शान्ति : सामाशान्तिरेधि ।।

यतो यत: समी हसे ततो नो अभयं कुरु ।
शं न: कुरु प्रजा भ्यो भयं न: पशुभ्य: ।।

सुशान्तिर्भवतु

श्री मन्महा गणाधि पतये नमः ।
लक्ष्मी नारायणाभ्यां नम:।
उमा महेश्वराभ्यां नम:।
वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नं:।
शचि पुरन्दराभ्यां नम:।
इष्टदेवताभ्यो नम:।
कुलदेवताभ्यो नम:।
ग्रामदेवताभ्यो नम:।
वास्तुदेवताभ्यो नम:।
स्थानदेवताभ्यो नम:।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:।

ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्महागणाधि पतये नम:।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपि लो गजकर्णकः ।
लम्बो दरश्च विकटो विघ्नना शोविनायक:।।

धूम्रकेतुर्गणा ध्यक्षो भालचन्द्रो गजा नन:।द्वद्शैद्शैता निनामानि
यः पठे च्छ्रि णुया दपी ।।

विद्या रंभे विवाहे च
प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव
विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बरधरं देवं
शशि वर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्
सर्व्विघ्नो पशान्तये।।
अभिप्सितार्थ सिद्ध्यर्थं
पूजितो य: सुरा सुरै:।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै
गणाधिपतये नम:।।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये !
शि वे ! सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बि lके !
गौरी नारायणि नमोस्तुते।।
सर्वदा सर्वकार्येषु
नास्ति तेषा ममङ्गलम्।
येषां हृदयस्थो भगवान्
मङ्गलाय तनो हरि :।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव, तारा बलं चन्द्रबलं तदेव ।
विद्याबलं दैवबलं तदेव, लक्ष्मी पते तेन्घ्रियुगं स्मरामि ।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां परा जय:।
येषामिन्दी वरश्यामो हृदयस्थो जनार्दन:।।
यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:।
तत्र श्रीर्विजयो भूति र्ध्रुवानीतिर्मतिर्मम।।
अनन्यास्चिन्तयन्तो मां ये जना : पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।

स्मृतेः सकल कल्याणं भाजनं यत्र जायते।
पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरम्।।

सर्वेष्वारंभ कार्येषु त्रय:स्त्री भुवनेश्वरा :।
देवा दिशन्तुनः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दना :।।

विश्वेशम् माधवं दुन्धिं दण्डपाणिं च भैरवम्।
वन्दे कशी गुहां गंगा भवानीं मणिकर्णिकाम्।।

वक्रतुण्ड् महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्वका र्येषु सर्वदा ।।

ॐ श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नम: ,।।

FAQ: स्वस्ति वाचन मंत्र

स्वस्ति प्रार्थना मंत्र क्या है ?

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु

वैदिक स्वस्तिवाचन मंत्र क्या है ?

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥अर्थ - द्युलोक शान्तिदायक हों, अन्तरिक्ष लोक शान्तिदायक हों, सभी और सभी औषधियां शांति दायक हो, सभी वनस्पतियों शांति दायक हो, विश्व के सभी देवता शांति हों, ब्रह्मा शांति, सभी शांति हों पृथ्वीलोक शान्तिदायक हों। शांति शांति शांति।

ओम और स्वास्तिक में क्या अंतर है ?

ओम यह मंत्र जगदीश स्वास्तिक एपी यंत्र है परंतु शक्तियों के स्वरूप में दोनों एक जैसे हैं दोनों को सिद्ध करने से शक्तियां बढ़ जाते हैं

स्वस्ति वाचन मंत्र कब बोला जाता है ?

स्वस्तिवाचन मंत्र पूजा आरंभ के पहले बोला जाता है और पूजा पश्चात के बाद अभिमंत्रित जल को सभी दिशाओं में छीटें लगाना चाहिए.

निष्कर्ष

दोस्तों जीवन में कल्याण के लिए हर व्यक्ति यज्ञ, हवन, पूजन आदि कराता रहता है जिसमें स्वस्तिवाचन मंत्र का अपना एक महत्व है क्योंकि किसी भी शुभ कार्य में किए जाने वाले हवन पूजन में स्वस्तिवाचन मंत्र का उपयोग होने की वजह से लाभ अधिक मिलता है.

स्वस्तिवाचन मंत्र किसी भी पूजा में इसीलिए उच्चारित किया जाना जरूरी है और उच्चारण करने के बाद अभिमंत्रित जल को चारों दिशाओं में फैला देना जरूरी होता है इससे सभी दिशाएं भी शांत होते हैं और हमें लाभ मिलता है.

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