Tantra kya hai ? दोस्तों जिन लोगों को असली जादू Real Magic और शक्ति Power प्राप्त करने और सीखने में रुचि रखते है, तो उन्हें यह अवश्य ज्ञान होना चाहिये कि असली जादू केवल सिद्धियों के माध्यम से ही प्राप्त करना संभव है , हालाकी सिद्धियां बहुत तरीके से सिद्ध की जा सकती हैं मतलब की प्राप्त की जा सकती है|
सिद्धियां प्रमुखता तंत्र-मंत्र-यंत्र Tantra-Mantra-Yantra के माध्यम से प्राप्त की जाती है, किंतु आज हम इस पोस्ट में तंत्र के विषय में चर्चा करेंगे कि आखिर यह तंत्र क्या होता है और तंत्र से हमें क्या फायदे हो सकते हैं Tantra ke fayde in hindi | तंत्र से किस प्रकार की शक्तियां प्राप्त की जा सकती हैं और यह नुकसानदेह है या फायदेमंद|
आज हम तंत्र के हर विषय पर चर्चा करेंगे यहां तक कि आपको कुछ प्रमुख 64 तंत्रों के नाम और 6 कार्यो के बारे में भी बताएंगे इसलिए पोस्ट को अंत तक पढ़े |
- 1. तंत्र क्या है ? | What is Tantra in Hindi
- 1.1. ये सात लक्षण हैं-
- 2. साधारण भाषा में तंत्र का मतलब क्या होता है ? Tantra means in Simple Words :
- 3. तंत्र फायदेमंद है या नुकसानदायक Tantra is beneficial or harmful ?
- 4. 64 तंत्रों के नाम क्या है ? Types and name of 64 Tantra :
- 5. तंत्र के कार्य होते है ? Uses of tantra :
तंत्र क्या है ? | What is Tantra in Hindi
तंत्र-विद्या, को अंग्रेजी में ‘ऑकल्ट’ कहते हैं | तन्त्र एक ऐसी प्राचीन विद्या है जो की शरीर पर खुद का नियंत्रण बढ़ाती है। आम तौर पर देखा जाए तो तन्त्र की परिभाषा बहुत ही सरल है तन्त्र शब्द का अर्थ तन यानी तन से जुड़ा है। ऐसी सिद्धियां जिन्हें पाने के लिए पहले तन को साधना पड़े उसे तन्त्र कहते हैं।
तन्त्र का प्रारंभ भगवान शिव को ही माना गया है। शिव और शक्ति की साधना के बिना तन्त्र सिद्धि को हासिल करना असंभव है। शिव और शक्ति ही तन्त्र शास्त्र के अधिष्ठाता, देवता एवं दाता हैं।
“तनोति त्रायति तन्त्र” – जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है।
व्याकरण शास्त्र के अनुसार ‘तन्त्र’ शब्द ‘तन्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है ‘विस्तार’। यह जानकारी आप osir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है शैव सिद्धान्त के ‘कायिक आगम’ में इसका अर्थ किया गया है, तन्यते विस्तार्यते ज्ञानम् अनेन्, इति तन्त्रम् (वह शास्त्र जिसके द्वारा ज्ञान का विस्तार किया जाता है)। तन्त्र की निरुक्ति ‘तन’ (विस्तार करना) और ‘त्रै’ (रक्षा करना), इन दोनों धातुओं के योग से सिद्ध होती है।
इसका तात्पर्य यह है कि तन्त्र अपने समग्र अर्थ में ज्ञान का विस्तार करने के साथ उस पर आचरण करने वालों का त्राण (रक्षा) भी करता है।
तन्त्र-शास्त्र का एक नाम ‘आगम शास्त्र’ भी है। इसके विषय में कहा गया है-
आगमात् शिववक्त्रात् गतं च गिरिजा मुखम्।
सम्मतं वासुदेवेन आगमः इति कथ्यते ॥
वाचस्पति मिश्र ने योग भाष्य की तत्ववैशारदी व्याख्या में ‘आगम’ शब्द का अर्थ करते हुए लिखा है कि जिससे अभ्युदय (लौकिक कल्याण) और निःश्रेयस (मोक्ष) के उपाय बुद्धि में आते हैं, वह ‘आगम’ कहलाता है।
शास्त्रों के एक अन्य स्वरूप को ‘निगम’ कहा जाता है। निगम के अन्तर्गत वेद, पुराण, उपनिषद आदि आते हैं। इसमें ज्ञान, कर्म और उपासना आदि के विषय में बताया गया है। इसीलिए वेद-शास्त्रों को निगम कहते हैं।
उस स्वरूप को व्यवहार (आचरण) में उतारने वाले उपायों का रूप जो शास्त्र बतलाता है, उसे ‘आगम’ कहते हैं। तन्त्र अथवा आगम में व्यवहार पक्ष ही मुख्य है। तन्त्र, क्रियाओं और अनुष्ठान पर बल देता है। ‘वाराही तन्त्र’ में इस शास्त्र के जो सात लक्षण बताए हैं, उनमें व्यवहार ही मुख्य है।
ये सात लक्षण हैं-
1. सृष्टि,
2. प्रत्यय,
3. देवार्चन,
4. सर्वसाधन (सिद्धियां प्राप्त करने के उपाय),
5. पुरश्चरण (मारण, मोहन, उच्चाटन आदि क्रियाएं),
6. षट्कर्म (शान्ति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण के साधन), तथा
7. ध्यान (ईष्ट के स्वरूप का एकाग्र तल्लीन मन से चिन्तन)।
और अधिक विस्त्रत जानकारी के लिए आप इसका विकिपीडिया पेज पढ़ सकते है .
साधारण भाषा में तंत्र का मतलब क्या होता है ? Tantra means in Simple Words :
तन्त्र का सामान्य अर्थ है ‘विधि’ या ‘उपाय’। विधि या उपाय कोई सिद्धान्त नहीं है। सिद्धान्तों को लेकर मतभेद हो सकते हैं। विग्रह और विवाद भी हो सकते हैं, लेकिन विधि के सम्बन्ध में कोई मतभेद नहीं है। डूबने से बचने के लिए तैरकर ही आना पड़ेगा।
बिजली चाहिए तो कोयले, पानी का अणु का रूपान्तरण करना ही पड़ेगा। दौड़ने के लिए पाँव आगे बढ़ाने ही होंगे। पर्वत पर चढ़ना है तो ऊँचाई की तरफ कदम बढ़ाये बिना कोई चारा नहीं है। यह क्रियाएँ ‘विधि’ कहलाती हैं। तन्त्र अथवा आगम में व्यवहार पक्ष ही मुख्य है। तन्त्र की दृष्टि में शरीर प्रधान निमित्त है।
उसके बिना चेतना के उच्च शिखरों तक पहुँचा ही नहीं जा सकता। इसी कारण से तन्त्र का तात्पर्य ‘तन’ के माध्यम से आत्मा का ’त्राण’ या अपने आपका उद्धार भी कहा जाता है। यह अर्थ एक सीमा तक ही सही है।
वास्तव में तन्त्र साधना में शरीर, मन और काय कलेवर के सूक्ष्मतम स्तरों का समन्वित उपयोग होता है। यह अवश्य सत्य है कि तन्त्र शरीर को भी उतना ही महत्त्व देता है जितना कि मन, बुद्घि और चित को।
कर्मकाण्ड और पूजा-उपासना के तरीके सभी धर्मों में अलग-अलग हैं, पर तन्त्र के सम्बन्ध में सभी एकमत हैं। सभी धर्मों का मानना है मानव के भीतर अनन्त ऊर्जा छिपी हुई है, उसका पाँच-सात प्रतिशत हिस्सा ही कार्य में आता है, शेष भाग बिना उपयोग के ही पड़ा रहता है। सभी धर्म–सम्प्रदाय इस बात को एक मत से स्वीकार करते हैं व अपने हिसाब से उस भाग का मार्ग भी बताते हैं।
उन धर्म-सम्प्रदायों के अनुयायी अपनी छिपी हुई शक्तियों को जगाने के लिए प्रायः एक समान विधियां ही काम में लाते हैं। उनमें जप, ध्यान, एकाग्रता का अभ्यास और शरीरगत ऊर्जा का सघन उपयोग शामिल होता है। यही तन्त्र का प्रतिपाद्य है। तन्त्रोक्त मतानुसार मन्त्रों के द्वारा यन्त्र के माध्यम से भगवान की उपासना की जाती है।
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विषय को स्पष्ट करने के लिए तन्त्र-शास्त्र भले ही कहीं सिद्धान्त की बात करते हों, अन्यथा आगम-शास्त्रों का तीन चौथाई भाग विधियों का ही उपदेश करता है। तन्त्र के सभी ग्रन्थ शिव और पार्वती के संवाद के अन्तर्गत ही प्रकट हैं।
देवी पार्वती प्रश्न करती हैं और शिव उनका उत्तर देते हुए एक विधि का उपदेश करते हैं। अधिकांश प्रश्न समस्याप्रधान ही हैं। सिद्धान्त के सम्बन्ध में भी कोई प्रश्न पूछा गया हो तो भी शिव उसका उत्तर कुछ शब्दों में देने के उपरान्त विधि का ही वर्णन करते हैं।
आगम शास्त्र के अनुसार ‘करना’ ही जानना है, अन्य कोई ‘जानना’ ज्ञान की परिभाषा में नहीं आता। जब तक कुछ किया नहीं जाता, साधना में प्रवेश नहीं होता, तब तक कोई उत्तर या समाधान नहीं है।
तंत्र फायदेमंद है या नुकसानदायक Tantra is beneficial or harmful ?
वैसे तो तंत्र फायदे का है या फिर नुकसान दे यह काफी विस्तारित विषय है जिस पर हम आपको अगली पोस्ट में बताएंगे फिर हाल सारांश में हम आपको यहां पर इसके बारे में बताएं देते हैं , तन्त्र शास्त्र के प्रयोग से तांत्रिक किसी भी जटिल कार्य (शुभ या अशुभ) को सहज ही सफल करने में सक्षम होते हैं। अगर तन्त्र का प्रयोग केवल शुभता के लिए किया जाये तो धरती किसी स्वर्ग से काम नहीं होगी।
तन्त्र शास्त्र के बारे में समाज की अज्ञानता ही इसके डर का मुख्य कारण हैं। क्यूंकि कई तांत्रिकों ने तन्त्र के गलत प्रयोग से लोगों की जिंदगी बरबाद कर दी या उन्हें बीमार बना दिया और मार डाला, इसलिए वे समझते हैं कि तन्त्र शास्त्र हमेशा बुरा होता है। दरअसल तन्त्र शास्त्र में कई पंथ और शैलियां होती हैं इसकी कोई एक प्रणाली नहीं है।
तन्त्र शास्त्र प्राचीन काल से वेदों के समय से ही हमारे धर्म का एक अभिन्न अंग रहा है। वेदों में भी इसका उल्लेख है और कुछ ऐसे मन्त्र भी हैं जो पारलौकिक शक्तियों से संबंधित हैं इसलिए कहा जा सकता है कि तन्त्र वैदिक कालीन है।
मन्त्र एवं तन्त्र साधना के क्षेत्र में लोगों में बहुत रूचि है, परन्तु अभी भी समाज तन्त्र के नाम से भय व्याप्त रहता है। यह एक विडम्बना रही है, कि भारतीय ज्ञान का यह उज्ज्वलतम पक्ष अर्थात तन्त्र से समाज भयभीत है| परन्तु सचाई यह है के तन्त्र एक पूर्ण शुद्ध एवं सात्विक विद्या है।
समाज में आज बहुत ही ऐसे व्यक्ति हैं जो साधनात्मक जीवन जीने की इच्छा रखते हैं परन्तु मात्र दैनिक पूजा एवं अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उनमें तन्त्र की दुर्लभ एवं गुप् साधनाओं के प्रति कोई रुझान नहीं है| पूजा एवं साधना में बहुत अंतर होता है।
साधना कोई पंडित या पुजारी नहीं दे सकता यह केवल योग्य गुरु ही दे सकते हैं। अगर व्यक्ति किसी योग्य गुरु के मार्ग दर्शन पे चले तो शीघ्र ही तन्त्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।
64 तंत्रों के नाम क्या है ? Types and name of 64 Tantra :
चतु:शती में 64 तंत्रों के नाम और उनके ऊपर ‘सौंदर्यलहरी टीका’ में प्रदत्त लक्ष्मीधर की व्याख्या इस प्रकार है :
1-2. महामाया तंत्र और शंबर तंत्र: इसमें माया, प्रपंच, निर्माण का विवरण है। इसके प्रभाव से द्रष्टा की इंद्रियाँ तदनुरूप विषय को ग्रहण न कर अन्याथा ग्रहण करती हैं। जैसा वस्तु – जगत् में घट है यह द्रष्टा के निकट प्रतिभात होता है- फ़ पटफ़ रूप में। यह किसी न किसी अंश में वर्तमान युग में प्रचलित हिपनॉटिज्म (क्तन्र्द्रददृद्यत्द्मथ्र्) प्रभृति मोहिनी विद्या के अनुरूप है।
3. योगिनी जाल शंबर : मायाप्रधान तंत्र को शंबर कहा जाता है। इसमें योगिनियों का जाल दिखाई देता है। इसकी साधना करनेवाले के लिये श्मशान प्रभृति स्थानों में उपदिष्ट नियामें का अनुसरण करना पड़ता है।
तत्वशंकर– यह ‘ महेंद्र जाल विद्या ‘ है। इसके द्वारा एक तत्व को दूसरे तत्व के रूप में भासमान किया जा सकता है; जैसे पृथ्वी त्तत्व में जल त व का या जल त व में पृथ्वी तत्व का।
5-12. सिद्ध भैरव, बटुक भैरव, कंकाल भैरव, काल भैरव, कालाग्नि भैरव, योगिनी भैरव, महा भैरव तथा शक्ति भैरव (भैरवाष्टक)। इन ग्रंथों में निधि विद्या का वर्णन है और ऐहक फलदायक कापालिक मत का विवरण है। ये सब तंत्र अवैदिक हैं।
13-20. बहुरूपाष्टक, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, चामुडा, श्विदूती, (?)। ये सभी शक्ति से उद्भूत मातृका रूप हैं। इन आठ मातृकाओं के विषय में आठ तंत्र लिखे गए थे। लक्ष्मीधर के अनुसार ये सब अवैदिक हैं। इनमें आनुषंगिक रूप से श्री विद्या का प्रसंग रहने से यह वैदिक साधकों के लिये उपादेय नहीं है।
21-28. यामलाष्टक: यामला शब्द का तात्पर्य है कायासिद्ध अंबा। आठ तंत्रों में यामलासिद्धि का वर्णन मिलता है। यह भी अवैदिक तंत्र है।
16. चंद्रज्ञान: इस तंत्र में 16 विद्याओं का प्रतिपादन किया गया है। फिर भी यह कापालिक मत होने के कारण हेय है। चंद्रज्ञान नाम से वैदिक-विद्या-ग्रंथ भी है परंतु वह चतु:षष्ठी तंत्र से बाहर है।
30. मालिनी विद्या: इसमें समुद्रयान का विवरण है। यह भी अवैदिक है।
31. महासम्मोहन: जाग्रत मनुष्य को सुप्त यक अचेतन करने की विद्या। यह बाल जिह्यभेद आदि उपायों से सिद्ध होता है, अत: हेय है।
32-36. वामयुप्ट तंत्र : महादेव तंत्र, वातुल तंत्र, वातुलोतर तंत्र, कामिक तंत्र, ये सब मिश्र तंत्र हैं। इनमें किसी न किसी अंश में वैदिक बातें पाई जाती हैं परंतु अधिकांश में अवैदिक हैं।
37. हृद्भेद तंत्र और गुह्यतंत्र: इसमें गुप्त रूप से प्रकृति तंत्र का भेद वर्णित हुआ है। इस विद्या के अनुष्ठान में नाना प्रकार से हिंसादि का प्रसंग है अत: यह अवैदिक है।
40. कलावाद: इसमें चंद्रकलाओं के प्रतिपादक विषय हैं (वात्स्यायन कृत फ़ कामसूत्रफ़ आदि ग्रंथ इसी के अंतर्गत हैं।) काम, पुरूषार्थ होने पर भीकला ग्रहण और मोक्ष दस स्थान का ग्रहण और चंद्रकला सौरभ प्रभृति का उपयोग पुरूषार्थ रूप में काम्य नहीं है। यह जानकारी आप osir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है इसे छोड़कर निषिद्ध आचारों का उपदेश इस ग्रंथ में है। इसका निषिद्धांश कापालिक न होने पर भी हेय है।
41. कलासार: इसमें करर्णे के उत्कर्षसाधन का उपाय वर्णित है। इस तंत्र में वामाचार का प्राधान्य है।
142. कुंडिका मत: इसमें गुटिकासिद्धि का वर्णन है। इसमें भी वामाचार का प्राधान्य है।
43. मतोतर मत: इसमें रससिद्धि (पारा आदि, आलकेमी, ॠथ्ड़ण्ड्ढथ्र्न्र्) का विवेचन है।
44. विनयाख्यर्तत्र: तिनया एक विशेष योगिनी का नाम है। इस ग्रंथ में इस यागिनी को सिद्ध करने का उपाय बतलाया गया है। किसी किसी के मत से विनया योगिनी नहीं हैं; संभोगयक्षिणी का ही नाम विंनया है।
45. त्रोतल तंत्र:इसमें घुटिका (पान पत्र, अंजन) और पादुकासिद्धि का विवरण है।
46. त्रोतलोतर तंत्र: इसमें 64,000 यक्षिणियों के दर्शन का उपाय वर्णित है।
47. पंचामृत: पृथ्वी प्रभृति पंचभूतों का मरणभाव पिंड, अड़ में कैसे संभव हो सकता है, इसका विषय इसमें है। यह भी कापालिक ग्रंथ है।
48-52. रूपभेद, भूतडामर, कुलसार, कुलोड्डिश, कुलचूडामणि, इन पाँच तंत्रों में मंत्रादि प्रयोग से शत्रु को मारने का उपाय वर्णित है। यह भी अवैदिक ग्रंथ है।
53-57. सर्वज्ञानोतर, महाकाली मत, अरूणोश, मदनीश, विकुंठेश्वर, ये पाँच तंत्र ‘ दिगंबर ‘ संप्रदाय के ग्रंथ हैं। यह संप्रदाय कापालिक संप्रदाय का भेद है।
58-64. पूर्व, पश्चिम, उतर, दक्षिण, निरूतर, विमल, विमलोतर और देवीमत ये ‘ छपणक संप्रदाय ‘ के ग्रंथ हैं।
पूर्वाक्त सक्षिप्त विवरण से पता चलता है कि ये 64 तंत्र ही जागतिक सिद्धि अथवा फललाभ के लिये हैं। पारमार्थिक कल्याण का किसी प्रकार संधान इनमें नहीं मिल सकता। लक्ष्मीधर के मतानुसार ये सभी अवैदिक हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मीधर ने कहा है कि परमकल्यणिक परमेश्वर ने इस प्रकार के तंत्रों की अबतारणा की, यह एक प्रश्न है।
इसका समाधान करने के लिये उन्होंने कहा है कि पशुपति ने ब्राह्मण आदि चार वर्ण और ममूर्धाभिषिक्त प्रभृति अनुलोम, प्रतिलोम सब मनुष्यों के लिये तंत्रशास्त्र की रचना की थी। इसमें भी सबका अधिकार सब तंत्रों में नहीं है। ब्राह्मण आदि तीन वर्णों का अधिकार दिया गया है।
तंत्र के कार्य होते है ? Uses of tantra :
तंत्र शास्त्र कोई लघु विषय नहीं है इसके कई हजार कार्य हैं यद्यपि उन कार्यों को हम Categories श्रेणिबध करें तो वह 6 तरह के कार्यों में विभाजित किए जा सकते हैं जो कि निम्नवत है ,
1. वशीकरण : वशीकरण का मतलब है किसी को अपने वश में कर अपनी इच्छा अनुसार कार्य करवाना। इसका प्रयोग प्रेमी-प्रेमिका, नौकर-मालिक, पडोसी या किसी के भी ऊपर कर अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करवा सकते हैं। इसके अनेको फायदे है जिनका हम रोजाना ज़िदगी में लाभ ले सकते है।
2. मारन : मारन का प्रयोग किसी भी शत्रु को मरने के लिए किया जाता है। या आम तोर पर ऐसे शत्रुओं पर किया जाता है जो आए दिन हमारे रस्ते में रुकावटें और परेशानिया खड़ी करते रहते हैं। यह जानकारी आप osir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है इसके इस्तेमाल से हम अपने दुश्मन से मिलने वाले कष्टों से छुटकारा पा सकते हैं।
यदि कोई हमारा दुश्मन हमें परेशान करता है या हमारे काम में रुकावट डालता है तो यह प्रयोग उस स्थिति में बहुत लाभदायक है l इससे हम अपने दुश्मन को कष्ट दे सकते हैं ताकि वह दोबारा हमें परेशान न करे।
3. उच्चाटन : उच्चाटन का प्रयोग किसी भी व्यक्ति का मोह भांग करने या कार्य को छुड़वाने के लिए किया जाता है।
4. मोहन : मोहन के प्रयोग से हम व्यक्तियों के पूरे समूह को अपनी इच्छा अनुसार कार्य करवाने हेतु मोहित कर सकते है।
5. विद्वेषण : विद्वेषण का प्रयोग अपने शतुओं को आपस में लड़वाने हेतु किया जाता है। जब संख्या में शत्रु अधिक हों तो विद्वेषण का प्रयोग कर हम उनको आपस में लड़वा कर अपनी परेशानी दूर कर सकते हैं ।
इस प्रयोग से उनकी लड़ाई इतनी भयंकर होती है की वे एक दुसरे की जान भी ले सकते हैं।
6. स्तम्भन : स्तम्भन का प्रयोग शत्रु की बुद्धि एवं बल को इस प्रकार भ्रष्ट कर देता है की वह यह निर्णय नहीं ले पाता के क्या करना है और क्या नहीं । उसकी समझ में इस प्रकार गड़बड़ हो जाएगी की उसको पता भी नहीं चलेगी जो काम कर रहा है वह सही है या गलत।
हालांकि आगे चलकर हम इस वेबसाइट को osir.in पर आपको इन सभी कार्यों के बारे में विस्तार से बताएंगे चुकी यह कार्य काला जादू और तंत्र मंत्र के प्रमुख कार्यों में से एक हैं और इन कार्यो को अलग-अलग सिधियों के रूप में भी जाना जाता है .
हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको कैसी लगी हमें नीचे कमेंट करके अवश्य बताएं साथ में यह जानकारी अपने दोस्तों व इसमें रूचि रखने वाले मित्रों के साथ अवश्य शेयर करें मिलते हैं अपनी अगली पोस्ट में तब तक की दोस्तों नमस्कार .