Vigyan bhairav tantra | Vigyan bhairav tantra book : विज्ञान भैरव तंत्र सर्व संप्रदाय का एक मुख्य ग्रंथ है अर्थात विज्ञान भैरव तंत्र के अंतर्गत भगवान भैरव और भैरवी से संबंधित तंत्र साधना होती है। विज्ञान भैरव तंत्र के अंतर्गत 112 प्रकार की धारणाओं को वर्णित किया गया है।
विज्ञान भैरव तंत्र के अंतर्गत देवी के प्रश्न दार्शनिक रूप में पूछे जाते हैं जिनका उत्तर भगवान शिव को देना होता है लेकिन वह देवी को उत्तर न देकर बदले में विधि-विधान बता देते हैं और इस विधि विधान को बताकर वह उत्तर बता देते हैं कहते हैं कि यदि देवी इस विधि से गुजरती है तो वह उसके प्रश्न का जवाब मिल जाएगा जब देवी पूछती है कि प्रभु आपका सत्य क्या है तो वह उपरोक्त तरीके से उनको उत्तर दे देते हैं।
इसी प्रकार से भैरव विज्ञान तंत्र एक प्रकार की करो और जानो जैसी साधना है क्योंकि किसी भी तंत्र के लिए करना ही जानना है अर्थात जब हम साधना करते हैं तभी उसके विषय में जान पाते हैं। तंत्र विद्या के क्षेत्र में किसी भी प्रकार की विद्या सीखना या तंत्र मंत्र की साधना करना उसके विषय में जानना होता है।
विज्ञान भैरव तंत्र एक प्रकार की कठिन साधना है जिसको सिद्ध करने के बाद तांत्रिक या साधक प्रकांड विद्वान के साथ-साथ त्रिकालदर्शी जैसी शक्तियां प्राप्त कर लेता है।
विज्ञान भैरव तंत्र क्या है ? | Vigyan Bhairav Tantra
विज्ञान भैरव तंत्र के अंतर्गत भगवान शिव जी ने माता पार्वती को शांत करने के लिए लगभग 120 प्रक्रियाओं का रहस्य स्पष्ट किया। यह एक भैरव तंत्र नामक ग्रंथ है जिसने तंत्र विज्ञान की दुनिया को नए आयाम तक पहुंचाने में मदद किया।
इस ग्रंथ में आत्म दर्शन एवं सिद्ध अवस्था को प्राप्त करते हुए शिव तंत्र में लीन होने की प्रक्रियाओं को तंत्र माध्यम से समझाया गया है विज्ञान भैरव तंत्र में ऐसी दिव्य क्रियाएं वर्णित हुई हैं जिनका किसी प्रकार से आडंबर नहीं समझा जा सकता है।
विज्ञान भैरव तंत्र का महत्व क्या है ? | Vigyan Bhairav Tantra benefits
विज्ञान भैरव तंत्र वर्णित विभिन्न प्रकार की तंत्र विद्या ओं को कुछ समय तक आराधना करने और अभ्यास करने से व्यक्ति के अंदर दिव्य अनुभूतियां और चमत्कार जैसी शक्तियां प्रकट हो जाती हैं।
विज्ञान भैरव तंत्र की तंत्र विद्या ओं के माध्यम से व्यक्ति के अंदर कुंडलिनी जागरण क्रिया योग अणिमा लघिमा जैसी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। विज्ञान भैरव ग्रंथ तंत्र विद्या का सबसे मूल आधार ग्रंथ है इसके माध्यम से विभिन्न प्रकार की तांत्रिक साधनों की पूर्ति होती हैं विज्ञान भैरव तंत्र की साधनाएं इतना आसान नहीं है तो इतना कठिन भी नहीं है।
विज्ञान भैरव तंत्र की साधनों को यदि श्रद्धा पूर्वक भक्ति के साथ किया जाता है तो निश्चित रूप से बहुत ही जल्दी पूर्ण हो जाती हैं इस तंत्र की साधनाएं श्रद्धा और लगन के साथ तत्परता पूर्वक करने से शीघ्र पूर्ण होती हैं। विज्ञान भैरव तंत्र बौद्धिकता पर आधारित हैं दार्शनिक था पर बिल्कुल आधारित नहीं है यह विद्यालय किसी भी प्रकार की पूजा पाठ और उपासना से सिद्ध होने वाली नहीं होती हैं इनसे दूर रहती हैं।
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विज्ञान भैरव तंत्र की विधियां : Vigyan Bhairav Tantra vidya
विज्ञान भैरव तंत्र के अंतर्गत माता पार्वती भगवान शिव से कुछ प्रश्न करते हैं जिनके उत्तर वह 112 विधियों के माध्यम से करणी को बता देते हैं जिसमें सिर्फ कुछ विधियां यहां पर वर्णित की जा रही हैं जो मानव मात्र के कल्याण हेतु माता पार्वती ने भगवान शिव जी से पूछा पूछा कि ईश्वर क्या है और कौन है ?
भगवान शिव ने उन्हें 112 विधियों के माध्यम से जानने के लिए प्रेरित किया विज्ञान भैरव तंत्र के माध्यम से हर प्रकार की कामना भय क्रोध नींद कल्पना श्वास अथवा चीप जैसी क्रियाएं विषय में जानकारी प्राप्त हो जाती है। विज्ञान भैरव तंत्र की विधियां इस प्रकार से वर्णित की गई हैं :
- मध्य ध्यान केंद्रित करके सांस का अंदर आना और बाहर जाना की प्रक्रिया को सजग रूप से देखना होता है।
- जब सांस नीचे ऊपर आने जाने लगे तो इसको संधिकाल कहा जाता है इसे देखना जरूरी है अर्थात इसे अनुभव किया जाए।
- जब अंतर और वह स्वास एक दूसरे से मिलने लगी तो उस प्रक्रिया के केंद्र को स्पर्श करें।
- जब स्वास्थ्य पूरी तरह से बाहर या अंदर हो तो उसकी मध्य होने वाली अंतर का एहसास पर ध्यान केंद्रित करो
- भ्रकुटी के मध्य आज्ञा चक्र होता है जिस पर ध्यान केंद्रित करके प्राण ऊर्जा और सहस्त्रार चक्र से परिपूर्ण करो।
- सांसारिक कार्य करते हुए भी सांसो के मध्य ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- अपने ललाट के मध्य सांस को स्थिर करते हुए प्राण ऊर्जा को हृदय में पहुंचाने का अभ्यास करें जिससे स्वप्न और मृत्यु पर विजय प्राप्त हो जाती है
- पूर्ण भक्ति भाव के साथ सांसो की संधि के समय एकाग्र चित्त होकर ज्ञान प्राप्त करें
- मृत अवस्था में लेट कर अपने क्रोध अभाव को स्थिर करते हुए बिना पलक झपकाए मुंह में कुछ लेकर चूसते हुए प्रक्रिया में दिलाएं
- ध्यान अवस्था ऐसी हो जैसे चीटियों के रंगने की स्थिति उत्पन्न हो ऐसी स्थिति में अपनी इंद्रियों के द्वार बंद करने का अनुभव करें
- शय्या पर हो तो मन के पास जाकर भार शून्य हो जाए
- पांचो प्रकार की इंद्रियों के पांचों रंग किसी केंद्र बिंदु पर नहीं मिल रहे होते हैं ऐसा कल्पना करनी चाहिए।
- अपने पूरे ध्यान को मेरुदंड के मध्य स्नायु में स्थित करके उसी में समाने का अनुभव करें।
- ध्यान अवस्था में आने पर आंख कान नाक और मुंह के बीच आज्ञा चक्र ग्रहण करने योग्य हो जाता है।
- जब इंद्रियां हृदय में विलीन हो जाती है तब सहस्त्रार चक्र पर पहुंचना होता है।
- मन को स्थिर करने का पूरा प्रयास करें जब तक मन स्थिर ना हो जाए उसी के मध्य में रहना होता है।
- आनंद की अनुभूति के लिए किसी दूसरे विषय पर मन में विचार ना लाएं।
- अपने नितंबों के सहारे बैठना और ध्यान केंद्रित करना होता है
- ध्यान मग्न अवस्था होने पर लाइव भद्र होकर शरीर मिलता-जुलता है ऐसा अनुभव करें
- अपने शरीर के किसी भाग में दर्द उत्पन्न करो और आंतरिक शुद्धता सिद्ध करो.
- अपनी अतीत की घटनाओं को याद करो जिससे स्मरण करते समय चेतना ऐसी जगह रखो जिससे शरीर को साक्षी रखकर घटना को भी साक्षी करें
- अपने सामने किसी विषय का अनुभव करते हुए अन्य विषयों की अनुपस्थिति का अनुभव करें और अनुपस्थिति को छोड़कर आत्मा में प्रवेश हो जाए।
- जब किसी व्यक्ति के पक्ष या विपक्ष में कोई भाव उठता है तो उस व्यक्ति पर आरोपित ना करें।
- मन में उठने वाली किसी भी प्रकार को कामना को देखकर अचानक छोड़ दो।
- ध्यान के समय इस प्रकार से घूमो जैसे पूरी तरह से थकान महसूस हुआ और जमीन पर गिर कर गिरने का अनुभव करें।
- शक्ति और ज्ञान से वंचित होने का कल्पना करते हुए एक दृष्टा बनी।
- आंखें बंद करके अस्तित्व के विस्तार को देखो और उसे शक्ति अस्तित्व का अनुभव करें।
- किसी भी पात्र में किनारों पर सामग्री के बिना सामग्री का अनुरोध करें।
- किसी सुंदर व्यक्ति या विषय को पहली बार देखने का प्रयास कर रहे हैं।
- बादलों के पास शांति और क्षमता का अनुभव करो।
- आपको जब कोई उपदेश दिया जा रहा हूं उसे आगे चल मन से अपने कामों से सुनो और मुक्ति को उपलब्ध है।
- किसी गहरे की के किनारे खड़े होकर गहराई को देखते हुए मंत्रमुग्ध हो जाओ और विस्मय में महसूस होगा।
- किसी विषय को देखते हुए उससे दृष्टि हटा लो और हटाने का विचार करो
- दृष्टि पथ में संस्कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्पना को ध्वनि की भांति समभाव का अनुभव करते हुए फिर उसे छोड़कर मुक्त हो जाए।
- जलप्रपात की अखंड ध्वनि के केंद्र में स्नान करो। ॐ मंत्र जैसी ध्वनि का मंद मंद उच्चारण करो |
- किसी भी वर्ण के शब्द का उच्चारण आरंभ और क्रमिक परिष्कार के समय जागृत हो
- तार वाली वाद्य यंत्रों को सुनते हुए ध्वनि की ओर केंद्रित होकर सर्व व्यापक होने का अनुभव करो।
- किसी भी प्रकार की धुन का उच्चारण इस प्रकार से करो कि सुनाई दे और सिर्फ मंद मंद कर दो उसके बाद स्वयं सुनने का प्रयत्न भाव लय होकर करो।
- मुंह को खुला रखते हुए मन को जीत के बीच में स्थिर करते हुए सांस अंदर और बाहर का अनुभव करें।
- अ और म के बिना ॐ ध्वनि पर पर मन केंद्रित करो।
- अः से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चारण मन में करो।
- कानो को दबाकर, गुदा को सिकोड़कर बंद करो और ध्वनि में प्रवेश करो।
- अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियो को महसूस करो।
- आलिंगन के समय उत्तेजना के भाव को मन के अंदर केंद्रित करते हुए स्थाई रहे
- प्रणय आलिंगन में शरीर में परिवर्तन कंपन के साथ आत्मसात होने का अनुभव करें
- मानसिक रूप से संभोग की क्रिया का स्मरण करके ऊर्जा को स्थानांतरित करना महत्वपूर्ण होता है।
- प्रिय जनों और मित्रों के बहुत समय बाद मिलने वाली प्रसन्नता में लीन होने का अनुभव करें।
- भोजन करते हैं पानी पीते समय उसी के स्वाद में समाहित होने का प्रयास करें।
- विज्ञान भैरव तंत्र में इसी प्रकार की बहुत सी साधनाएं करना होता है जिनके माध्यम से 112 प्रकार से प्रश्नों के उत्तर आप को मिलते हैं और आप एक पूर्ण व्यक्ति के रूप में आश्चर्य पूर्ण शक्तियों से परिपूर्ण हो जाते हैं यही विज्ञान भैरव तंत्र की सफलता और महिमा होती है|