Yakshini sadhana : सरल यक्षिणी साधना कैसे करे? | अष्ट यक्षिणी साधना और मंत्र जाने

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Yakshini sadhna kaise karen ? देव, दानव,यक्ष , गन्धर्व,किन्नर,रीक्ष,पिशाच,वानर , भल्ल, अप्सराये,किरात, नाग आदि का वर्णन धर्म शास्त्रों में मिलता है। यह सभी मानवों से अलग होते थे तथा रहस्यमयी शक्तियां वह ताकत रखते थे जो किसी ने किसी रूप में मानवों की सहायता करते थे। देवताओं के बाद इन्हीं के पास ही अपार शक्तियां होती थी।

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यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां रखती थी तो पिशाचिनियां नकारात्मक शक्तियां रखती थी। हमारे धर्म के अनुसार प्रमुख रुप से 33 देवता मानी जाते हैं और उसी तरह 8 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं। सभी प्रकार के गंधर्व और यश देवताओं की ओर से कार्य करते थे तो राक्षस, दानव जातियां दैत्यों की ओर से कार्य करते थे।

इन यक्ष और यक्षिणियों की साधना करने से देवताओं के समान कार्य सिद्ध जाते थे। जब हम यक्षिणी की साधना करते हैं तो यक्षिणी हमारे सामने बहुत ही सुंदर और सौम्य स्त्री के रूप में प्रकट होती है । शास्त्रों में ‘अष्ट यक्षिणी साधना’ के नाम से यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों की साधना होती है। यक्षिणी साधना में आठ प्रकार की यक्षिणियां होती है इन की साधना करने से सर्व कार्य संपन्न होते हैं।

आठ प्रकार की प्रमुख यक्षिणियां इस प्रकार है ? 

1. सुर सुन्दरी यक्षिणी,

2 . मनोहारिणी यक्षिणी,

3 . कनकावती यक्षिणी,

4 . कामेश्वरी यक्षिणी,

5 . रतिप्रिया यक्षिणी,

6.  पद्मिनी यक्षिणी,

7. नटी यक्षिणी ,

8. अनुरागिणी यक्षिणी .

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यह सभी यक्षिणी साधक को अलग-अलग तरीके से सहायता करती हैं।

आइये जानते हैं कि कौन सी अच्छी कौन सी सहायता और विशेषता रखती है ?

1. सुर सुन्दरी यक्षिणी क्या है ? Surasundari Yakshini ?

इस यक्षिणी को साधक जिस रुप में चाहे उस रुप में प्राप्त कर सकता है क्योंकि यह उसी रुप में प्रकट होती है | जिस रुप में आप इसकी साधना करते हैं। यह यक्षिणी सिद्ध होने के बाद साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।यह देवी देवताओं के समान सुंदर होने के कारण सुर सुंदरी यक्षिणी कहा जाता है |

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2. मनोहारिणी यक्षिणी क्या है ? Manohari Yakshini ?

मनोहारिणी यक्षिणी को सिद्ध करने के बाद साधक सम्मोहन प्राप्त कर लेता है जिससे वह किसी को भी सम्मोहित कर सकता है | इसके शरीर से सदैव सुगंध निर्गत छोटी रहती है पता साधकों धन संपत्ति प्रदान करती है .

3. कनकावती यक्षिणी क्या है ? Kankavati Yakshini ?

कनकावती यक्षिणी विरोधियों को मोहित करने की छमता रखी है इसलिए साधक जब इसे सिद्ध कर लेता है | तो वह अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त कर सकता है।

यह माना जाता है कि यह यक्षिणी लाल रंग के कपड़े धारण करती है और हमेशा किशोरी बाला के रूप में दिखाई देती है।

4. कामेश्वरी यक्षिणी क्या है ? Kameshwari Yakshini ?

यह साधक को पौरुष प्रदान करके सभी प्रकार की कामनाओं से परिपूर्ण करती है तथा स्वयं भी पत्नी के रुप में साधक की इच्छा पूर्ण करती हैं। यह य छड़ी चंचल और यौवन से परिपूर्ण होती है | जब साधकों कोई भी आवश्यकता होती है . तो तुरंत उसे उपलब्ध कराती है .

5. रति प्रिया यक्षिणी क्या है ? Ratipriya Yakshini?

यह साधक कुछ हर वक्त प्रफुल्लित करती रहती है तथा साधकों कामदेव औरत के समान सुंदरता देती है . इसका शरीर स्वर्ण के समान होता है और आभूषणों से सुसज्जित होती है.

6. पदमिनी यक्षिणी क्या है ? Padmini Yakshini?

पद्मिनी यक्षिणी साधक को आत्म विश्वास और स्थिरता तथा मानसिक बल और उन्नति की ओर अग्रसर करती है . यह साधक को कदम कदम पर उसका हौसला बड़ा देती है।यह यक्षिणी श्याम वर्ण होती है।

7. नटी यक्षिणी क्या है ? Nati Yakshini ?

यह यक्षिणी साधक को सुरक्षा प्रदान करती है और विपरीत परिस्थितियों में भी बचाव करती है तथा होने वाली तरह-तरह की घटनाओं से सुरक्षा प्रदान करती हैं .

8. अनुरागिणी यक्षिणी क्या है ? an escort ?

अनुरागिनी यक्षिणी साधक को धन मान सम्मान यस से परिपूर्ण करती है तथा साधक की इच्छाओं के अनुसार रास उल्लास भी करती है .

अष्ट यक्षिणी मंत्र क्या है ? Ashta Yakshini Mantra

 यक्षिणी

3सभी प्रकार की यक्षिणी सिद्धि के लिए निम्न प्रकार के मंत्र सिद्ध किए जाते हैं|

ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः॥

1. सुर सुन्दरी मंत्र – Sur sundari mantra 

ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥

2. मनोहारिणी मंत्र – Manihari mantra 

ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥

3. कनकावती मंत्र  – Kankavati mantra 

ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥

4. कामेश्वरी मंत्र – Kameshwari mantra 

ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥

5. रति प्रिया मंत्र Ratipriya mantra

ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥

6.पद्मिनी मंत्र – Padhini mantra

ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥

7. नटी मंत्र – Nati mantra

ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥

8. अनुरागिणी मंत्र – Anuragini mantra 

ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥

यक्षिणी साधना के लिए शुभ दिन कौन सा है ? What is the auspicious day for Yakshini Sadhana?

यक्षिणी साधना को करने के लिए शुभ दिन आषाढ़ की पूर्णिमा यदि शुक्रवार को हो तो ज्यादा शुभ होता है को किया जाता है . इसके अलावा सावन महीने की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा में शक्ति अधिक होती है।

यक्षिणी साधना

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यक्षिणी साधना विधि क्या है ? What is Yakshini Sadhana method ?

  • यक्षिणी साधना करने के लिए सबसे पहले भगवान शिव की आराधना एवं पूजा अर्चना की जाती है . ऐसा करने से यक्षिणी साधनाए जल्दी पूर्ण होती है।
  • यक्षिणी साधना प्रारंभ करने से पहले स्नान आदि करके समस्त प्रकार की पूजा सामग्री लेकर शिव की पूजा करते हुए किसी केले के पेड़ के नीचे या बेलगिरी के पेड़ के नीचे यक्षिणी साधना प्रारंभ करें।
  • यक्षिणी साधना करने से मन और चित् एकाग्र हो जाते हैं उसके बाद यक्षिणी मंत्र जाप करें प्रत्येक मंत्र कम से कम 5000 बार जाप करना पड़ता है।
  • जाप करने के बाद घर जाएं और किसी कुंवारी कन्या को खीर का भोग सबसे पहले खिलाएं।

कुछ यक्षिणी साधना इस प्रकार हैं :

नटी यक्षिणी साधना कैसे करे ? How to do Nati Yakshini Sadhana?

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नटी यक्षिणी साधना मंत्र 

ऊं ह्रीं की नटी महा नटी रुपवती स्वाहा।।

इस मंत्र का जाप अशोक वृक्ष के नीचे गाय के गोबर का चौका लगाकर तथा ललाट पर चंदन का तिलक लगाकर विधिवत देवी की पूजा की जाती है इसे 1 माह तक 1000 बार मंत्र जाप करके देवी को प्रसन्न किया जाता है।

साधक को इस दौरान केवल एक बार भोजन करना चाहिए तथा साधना सदैव आधी रात के बाद करें |

सुर सुंदरी यक्षिणी साधना कैसे करे ? How to do Surasundari Yakshini Sadhana?

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सुर सुंदरी यक्षिणी साधना मंत्र 

ऊं ह्रीं ह्रीं आगच्छ आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा।।

इस मंत्र का जाप शिवलिंग की स्थापना करके सुबह सुबह दोपहर शाम विधिवत पूजा करके 3000 बार मंत्र जाप करना होता है तथा 12 दिन साधना करने के बाद सुंदरी देवी प्रसन्न होती है और अनेक प्रकार से आप का कल्याण करती हैं।

अष्ट यक्षिणी साधना कैसे करे ? How to do Ashta Yakshini Sadhana?

अष्ट यक्षिणी साधना इस प्रकार भी की जाती है।

अष्ट यक्षिणी साधना मंत्र

ऊं हों क्रूं क्रूं कटु कटु अमुकी देवी वरदा सिद्धदाच भव ऊं अं:।।

इस मंत्र को रात्रि के समय एकांत में नित्य 8000 बार जाप करके किया जाता है | इस मंत्र का जाप चंपा नामक वृक्ष के नीचे बैठकर 7 दिन तक करने से यक्षिणी साधना सफल हो जाती हैं।

अष्ट यक्षिणी साधना करने के लिए साधक को संयमित और ब्रम्हचर्य का पालन करना जरूरी है | साधना के दौरान किसी भी प्रकार का मांस मदिरा या अन्य अवैध भोज्य सामग्री लेना नहीं चाहिए।

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सभी तांत्रिक साधनाएं एवं क्रियाएँ सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से दी गई हैं, किसी के ऊपर दुरुपयोग न करें एवं साधना किसी गुरु के सानिध्य (संपर्क) में ही करे अन्यथा इसमें त्रुटि से होने वाले किसी भी नुकसान के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे |

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