संपूर्ण हवन विधि Sampurna havan vidhi : प्रणाम गुरुजी आज हम आप लोगों के इस लेख के माध्यम से संपूर्ण हवन विधि के बारे में बताएंगे गुरुजनों जैसा कि आप लोग जानते हैं हिंदू धर्म में देवी देवताओं को बहुत मान्यता दी जाती है और उनकी पूजा की जाती है जिसे आज तक हमारे बड़े बुजुर्ग निभाते आ रहे हैं.
ऐसा कहा जाता है कि अगर आप पूजा करने के बाद हवन कर देते हैं तो आपकी पूजा संपूर्ण मानी जाती है क्योंकि हवन करने से आप का वातावरण शुद्ध रहता है और आपके घर के आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. इसीलिए हिंदू धर्म में हवन को धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृश्यों से महत्वपूर्ण माना गया है अगर आप अपने घर में हवन करते हैं तो इसके आपको अनेकों फायदे मिलेंगे वैसे तो सभी लोग अपने घरों में पूजा पाठ करवाते हैं.
कभी नवरात्रि की पूजा होती है तो उसमें हवन किया जाता है कभी किसी ने कथा का पाठ किया है तो उसमें हवन किया जाता है अपने घर की सुख शांति के लिए भी पूजा पाठ करवाते हैं तो उसने हवन किया जाता है तो उसी प्रकार उस हवन में कुछ ऐसे मंत्र पढ़े जाते हैं.
जिससे आपके घर में सुख शांति बनी रहे और आपको धन लाभ भी प्राप्त हो तो आज हम उसी संपूर्ण हवन विधि के बारे में बताएंगे से आप उसका प्रयोग करके अपने घर में हवन कर सके और अपने घर में सुख शांति धन समृद्धि प्राप्त कर सकें. अगर आपको संपूर्ण हवन विधि के बारे में जानना है तो हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें आज हम आप लोगों को इस लेख में संपूर्ण हवन विधि के बारे में बताएंगे।
PDF Name | संपूर्ण हवन विधि PDF |
No. of Pages | 84 |
PDF Size | 20.6 MB |
Language | Hindi |
Category | आध्यात्म |
Download Link | ✔ डाऊनलोड के लिए उपलब्ध |
- 1. संपूर्ण हवन विधि पीडीएफ | Sampurna havan vidhi PDF
- 2. संपूर्ण हवन विधि | Sampurna havan vidhi
- 2.1. प्रथमः परिच्छेदः सम्पूर्णहवनविधिः
- 2.2. स्वस्तिवाचनम्
- 2.3. सम्पूर्णहवनविधिः
- 2.4. अग्निस्थापनम्
- 2.5. केवलं नामाऽनुक्रमेण क्षेत्रपालस्थापनम्
- 2.6. सम्पूर्णहवनविधिः
- 2.7. गायत्र्यक्षरन्यासः
- 2.8. गायत्रीपदन्यासः
- 2.9. गायत्र्याः न्यासः
- 2.10. गायत्र्याः षडङ्गन्यासः
- 2.11. गायत्रीसहस्रनामावल्या हवनम्
- 2.12. प्रधानाहुति:
- 2.13. गायत्रीसहस्त्रनामावल्या हवनम्
- 2.14. वास्तुहवनम्
- 3. FAQ : संपूर्ण हवन विधि
- 3.1. पूर्णाहुति मंत्र क्या है ?
- 3.2. हवन की शुरुआत कैसे करें ?
- 3.3. हवन करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए ?
- 4. निष्कर्ष
संपूर्ण हवन विधि पीडीएफ | Sampurna havan vidhi PDF
इस लिंक से आप संपूर्ण हवन विधि पीडीएफ Sampurna havan vidhi PDF आसानी से डाऊनलोड कर सकते है :
संपूर्ण हवन विधि पीडीएफ | Download link PDF |
संपूर्ण हवन विधि | Sampurna havan vidhi
कर्ता अपनी धर्मपत्नी के संग हवनकुण्ड के समीप अथवा स्थण्डिल के समीप आकर आसन पर बैठे और कुशा के द्वारा जल लेकर अपना और हवन सामग्री का प्रोक्षण करे, तदुपरान्त ब्राह्मण निम्न मंत्रों का उच्चारण करके स्वस्तिवाचन करें ।
स्वस्तिवाचनम्
हरिः ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । देवा नो यथा सदमिद्वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे ॥ १ ॥
देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना० रातिरभि नो निवर्तताम् । देवाना० सख्यमुपसे दिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे ॥ २ ॥
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भग मित्रमदितिन्दक्षमस्त्रिधम् । अर्यमणं वरुण ० सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्॥ ३॥
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजन्तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः । तद्ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणु तन्धिष्ण्या युवम् ॥ ४ ॥
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियं जिन्वमवसे हूमहे वयम् । पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॥ ५ ॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ६ ॥
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः । अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह ॥ ७ ॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवार्ट० सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥ ८ ॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् । पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥ ९ ॥
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः । विश्वे देवा अदिति: पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥ १० ॥
द्यौः शान्ति रन्तरिक्ष० शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वठे० शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥ ११ ॥
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु । शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ॥ ॐ शान्तिः सुशान्तिः सर्वारिष्टशान्ति भवतु ॥ १२ ॥
अमुकनाम्नि संवत्सरे अमुकायने अमुकऋतौ महामाङ्गल्यप्रदमासोत्तमे मासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकयोगे अमुककरणे अमुकराशिस्थिते चन्द्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकराशिस्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथास्थानस्थितेषु सत्सु एवं गुणगणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुकगोत्रोऽमुकशर्माहं ( वर्माऽहम्, गुप्तोऽहम्, दासोऽहम् ) अस्मिन् अमुकयागहवनकर्मणि एभिर्वरणद्रव्यैः नानानामगोत्रान् नानानामधेयान् शर्मण आचार्यादिब्राह्मणान् युष्मानहं वृणे ।
अग्निस्थापनम्
ब्रह्मा के द्वारा कुण्ड में पंचभूसंस्कार किये जाने के उपरान्त कर्ता अंर उसकी पत्नी कुण्ड के पश्चिमभाग में पूर्वदिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठे, आचार्य कुण्ड का पूजन निम्न क्रम द्वारा कर्ता से करावें । सर्वप्रथम प्रथम कुण्ड के ऊपर वाली मेखला में अक्षतपुंज पर सुपाड़ी रखवाकर निम्न मन्त्र का आचार्य उच्चारण करें.
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्यपार्ट० सुरे स्वाहा ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि स्थापयामि ॥ १ ॥ततो मध्यमेखलायां रक्तवर्णालङ्कृतायां ब्रह्माणं पूजयेत् — ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः ।
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माण मावाहयामि स्थापयामि ॥
तत अधोमेखलायां कृष्णवर्णालङ्कृतायां रुद्रं पूजयेत् — ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतोत इषवे नमः ।बाहुभ्यामुत ते नमः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः रुद्राय नमः, रुद्रमावाहयामि स्थापयामि ॥
ततो योन्यां रक्तवर्णालङ्कृतायां गौरीं पूजयेत् -ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन ।ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पील वासिनीम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गौर्यै नमः गौरीमावाहयामि स्थापयामि ॥
कण्ठे – ॐ नीलग्रीवाः शितिकण्ठा दिव० रुद्रा उपश्रिताः ।तेषार्ट० सहस्त्रयोजनेऽव धन्वनि तन्मसि ॥
ॐ कण्ठे नमः कण्ठमावाहयामि स्थापयामि ॥
नाभिम् — ॐ नाभिर्मे चित्तं विज्ञानं पायुर्मेऽपचितिर्भसत् ।आनन्द नन्दावाण्डौ मे भगः सौभाग्यं पसः ।
जङ्घाभ्यां पद्भ्यां धर्म्मोऽस्मि विशि राजा प्रतिष्ठितः ॥
ॐ नाभ्यै नमः नाभिमावाहयामि स्थापयामि ॥
केवलं नामाऽनुक्रमेण क्षेत्रपालस्थापनम्
आचार्य वायव्यकोण में सफेद वस्त्र से ढकी हुई पीठ पर चारों ओर रेखाओं को लगाकर मध्य में पूर्वदिशा से पश्चिमदिशा, उत्तरदिशा से दक्षिण दिशा में दो दो रेखाएं बनावें, नवग्रह के तुल्य नौ कोष्ठकों का निर्माण करके पूर्वदिशा में छ: षट्दल और उत्तरदिशा व ईशानकोण के मध्य के कोष्ठों में सप्तदल का निर्माण करें, पुनः कर्ता अपनी पत्नी के साथ आसन पर बैठकर आचमन और प्राणायाम करे । तदुपरान्त आचार्य निम्न संकल्प कर्ता से करावें.
संकल्पः – कर्ता दक्षिणहस्ते जलाऽक्षत द्रव्यं चादाय, सङ्कल्पं कुर्यात् – देशकालौ स्मृत्वा, अस्मिन् अमुकयागहवनकर्मणि क्षेत्रपालपूजनं करिष्ये । आचार्य क्षेत्रपाल का स्थापन एवं पूजन निम्न नाम वाक्यों का उच्चारण करते हुए कर्ता से करावें
ॐ अजराय नमः अजरमं मे स्थापयामि ॥ १ ॥
ॐ व्यापकाय नमः व्यापकमावाहयामि स्थापयामि ॥ २ ॥
ॐ इन्द्रचौराय नमः
इन्द्रचौरमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३ ॥इन्द्रमूर्तये नमः इन्द्रमूर्तिमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४ ॥
ॐ उक्ष्णे नमः उक्षाणमावाहयामि ॐ वरुणाय वटुकाय वमावाहयामि ॐ लिप्तकाय स्थापयामि ॥ १०
॥ ॐ लीलालोकाय नमः लीलालोकमावाहयामि ॐ बन्धनाय स्थापयामि ॥ १५ ॥
ॐ दिव्यकरणाय नमः दिव्यकरणमावाहयामि यामि ॥ १७ ॥
ॐ भीषणाय नमः भीषणमावाहयामि स्थापयामि ॥ १८ ॥
ॐ गवयाय नमः गववमावाहयामि स्थापयामि ॥ १९ ॥
ॐ घण्टाय नमः स्थापयामि ॥ ५ ॥
कूष्माण्डाय नमः कूष्माण्डमावाहयामि
स्थापयामि ॥ ६ ॥ॐ ॐ
वरुणमावाहयामि
स्थापयामि ॥ ७ ॥
स्थापयामि ॥ ८ ॥ॐ विमुक्ताय
विमुक्तमावाहयामि
स्थापयामि ॥ ९ ॥
नमः
लिप्तकमावाहयामि
स्थापयामि ॥ ११ ॥
ॐ एकदंष्ट्राय नमः एकादंष्ट्रमावाहयामि
स्थापयामि ॥ १२ ॥
ॐ ऐरावताय नमः ऐरावतमावाहयामि ॐ ओषधीघ्नाय नमः ओषधीघ्नमावाहयामि
स्थापयामि ॥ १३ ॥
स्थापयामि ॥ १४ ॥
बन्धनमावाहयामि
स्थापयामि ॥ १६ ॥ ॐ कम्बलाय नमः कम्बलमावाहयामि स्थाप
नमःकेवलं नामाऽनुक्रमेण क्षेत्रपालस्थापनम् नमः घण्टेश्वरमावाहयामि स्थापयामि ॥ २९ ॥
ॐ गणवन्धाय नमः गणवन्धमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३० ॥
ॐ मुण्डाय नमः मुण्डमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३१ ॥
यामि ॥ ३५ ॥
ॐ दुण्ढकरणा नमः ढुण्ढकरणमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३६ ॥
ॐ स्थविराय नमः स्थविरमावाहयामि स्थाप यामि ॥ ३७ ॥
ॐ दन्तुर नमः दन्तुरामावाहयामि स्थापयामि ॥ ३८ ॥
ॐ धनदाय नमः धनदमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३९ ॥
ॐ नागकर्णाय नमः वीरकमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४३ ॥
ॐ सिंहाय नमः सिंहमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४४ ॥
ॐ मृगाय नमः मृगमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४५ ॥
ॐ यक्षाय नमः यक्षमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४६ ॥
ॐ मेघवाहनाय नमः
३१
घण्टामावाहयामि स्थापयामि ॥ २० ॥
ॐ व्यालाय नमः व्यालमावाहयामि स्थापयामि ॥ २१ ॥
ॐ अंशवे नमः अंशुमावाहयामि स्थापयामि ॥ २२ ॥
ॐ चन्द्रवारुणाय नमः चन्द्रवारुणमावाहयामि स्थापयामि ॥ २३ ॥
ॐ घटाटोपाय नमः घटाटोपमावाहयामि स्थापयामि ॥ २४ ॥
ॐ जटिलाय नमः जटिलमावाहयामि स्थापयामि ॥ २५ ॥
ॐ क्रतवे नमः क्रतु मावाहयामि स्थापयामि ॥ २६ ॥
ॐ घण्टेश्वराय स्थापयामि ॥ २७ ॥
ॐ विटकाय नमः विटकमावाहयामि नमः मणिमानमावाहयामि स्थापयामि ॥ २८ ॥
ॐ मणिमानाय ॐ ववूकराय नमः वर्तूकरमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३२ ॥ॐ सुधापाय नमः सुधापमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३३ ॥
ॐ वैनाय नमः वैनमावाहयामि स्थापयामि ॥ ३४ ॥
ॐ पवनाय नमः पवनमावाहयामि स्थाप नागकर्णमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४० ॥
ॐ महाबलाय नमः महाबलमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४१ ॥
ॐ फेत्काराय नमः फेत्कारमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४२ ॥
ॐ वीरकाय नमः मेघवाहनमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४७ ॥
ॐ तीक्ष्णाय नमः तीक्ष्णमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४८ ॥
ॐ अमलाय नमः अमलमावाहयामि स्थापयामि ॥ ४९ ॥
ॐ शुक्राय नमः शुक्रमावाहयामि स्थापयामि ॥ ५० ॥
ततः – ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञर्ठ० समिमं द धातु । विश्वेदेवास इह मादयन्तामों प्रतिष्ठ ॥ इति अजरादिक्षेत्रपालाः सुप्रतिष्ठिताः वरदाः भवन्तु । ततः षोडशोप – चारैः पूजयेत् ।
व्याहृतिन्यासः – ॐ भूः नमः – हृदये ॥ १ ॥
ॐ भुवः नमः – मुखे ॥ २ ॥
ॐ स्वः नमः – दक्षांसे ॥ ३ ॥
ॐ महः नमः – वामांसे ॥ ४ ॥
ॐ जनः नमः – दक्षिणोरौ ॥ ५ ॥
ॐ तपः नमः – वामोरौ ॥ ६ ॥
ॐ सत्यं नमः – जठरे ॥ ७ ॥
इति व्याहतिन्यासः ।
गायत्र्यक्षरन्यासः
ॐ तत् नमः पादद्वयाङ्गुलिमूलयोः ॥ १ ॥
ॐ सं नमः गुल्फयोः ॥ २ ॥
ॐ विं नमः जानुनो ॥ ३ ॥
ॐ तुं नमः पादमूलयोः ॥ ४ ॥
ॐ वं नमः लिङ्गे ॥ ५ ॥
ॐ रें नमः नाभौ ॥ ६ ॥
ॐ णिं नमः हृदये ॥ ७ ॥
ॐ यं नमः कण्ठे ॥ ८ ॥
ॐ यं नमः हस्तद्वया ङ्गुलिमूलयोः ॥ ९ ॥
ॐ गों नमः मणिबन्धयोः ॥ १० ॥
ॐ दें नमः कूर्परयोः ॥ ११ ॥
ॐ वं नमः बाहुमूलयोः ॥ १२ ॥
ॐ स्यं नमः आस्ये ॥ १३ ॥
ॐ धीं नमः नासापुटयोः ॥ १४ ॥
ॐ मं नमः कपोलयोः ॥ १५ ॥
ॐ हिं नमः नेत्रयोः ॥ १६ ॥
ॐ धिं नमः कर्णयोः ॥ १७ ॥
ॐ यों नमः भ्रूमध्ये ॥ १८ ॥
ॐ यों नमः मस्तके ॥ १९ ॥
ॐ नं नमः पश्चिमवक्त्रे ॥ २० ॥
ॐ प्रं नमः उत्तरवक्त्रे ॥ २१ ॥
ॐ चों नमः दक्षिणवक्त्रे ॥ २२ ॥
ॐ दं नमः पूर्ववक्त्रे ॥ २३ ॥
ॐ यात् नमः ऊर्ध्ववक्त्रे ॥ २४ ॥ इति गायत्र्यक्षरन्यासः ।
गायत्रीपदन्यासः
ॐ तत् नमः शिरसि ॥ १ ॥
ॐ सवितुर्नमः भ्रुवोर्मध्ये ॥ २ ॥
ॐ वरेण्यं नमः नेत्रयोः ॥ ३ ॥
ॐ भर्गो नमः मुखे ॥ ४ ॥
ॐ देवस्य नमः कण्ठे ॥ ५ ॥
ॐ धीमहि नमः हृदये ॥ ६ ॥
ॐ धियो नमः नाभौ ॥ ७ ॥
ॐ यो नमः गुह्ये ॥ ८ ॥
ॐ नं नमः जानुनोः ॥ ९ ॥
ॐ प्रचोदयात् नमः पादयोः ॥ १० ॥
ॐ आपो ज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोमिति शिरसि ॥ ११ ॥ इति गायत्रीपदन्यासः ।
गायत्र्याः न्यासः
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं नमः नाभ्यादिपादांगुलि पर्यन्तम् ॥ १ ॥
ॐ भर्गो देवस्य धीमहि नमः हृदयादिनाभ्यन्तम् ॥ २ ॥
ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् नमः मूर्द्धादिहृदयान्तम् ॥ ३ ॥ इति गायत्र्याः न्यासः।
गायत्र्याः षडङ्गन्यासः
ॐ तत्सवितुर्ब्रह्मणे हृदयाय नमः ॥ १ ॥
ॐ वरेण्यं विष्णवे शिरसे स्वाहा ॥ २ ॥
ॐ भर्गो देवस्य रुद्राय शिखायै वषट् ॥ ३ ॥
ॐ धीमहि ईश्वराय कवचाय हुम् ॥ ४ ॥
ॐ धियो यो नः सदाशिवाय नेत्रत्रयाय वौषट् ॥ ५ ॥
ॐ प्रचोदयात् सर्वात्मने अस्त्राय फट् ॥ ६ ॥ इति गायत्र्याः षडङ्गन्यासः ।
गायत्रीसहस्रनामावल्या हवनम्
भजे ॥
ध्यानम्
मुक्ताविद्रुमहेमनीलधवलच्छायैर्मुखैस्तीक्षणै
र्युक्तामिन्दुनिबद्धरत्नमुकुटां तत्त्वार्थवर्णात्मिकाम् ।
गायत्रीं वरदाभयाङ्कुशकशां पाशं कपालं गुणं शङ्खं चक्रमथारबिन्दुयुगलं हस्तैर्वहन्तीं
प्रधानाहुति:
गायत्री यज्ञ नौ या ग्यारह दिन में सम्पन्न होता है। अतः आचार्य और ब्राह्मण निम्न गायत्री मन्त्र का उच्चारण करके कुण्ड में चौबीस लाख आहुति प्रदान करवायें
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा ॥
विशेष- गायत्री यज्ञादि के हवन में व्याहृति रहित गायत्री मन्त्र से हवन करना चाहिए, ऐसा धर्मसिन्धु ग्रन्थ में लिखा है । यह प्रथा प्रायः सर्वत्र गायत्री यज्ञादि के हवन में प्रचलित है।
गायत्रीसहस्त्रनामावल्या हवनम्
१. ॐ अचिन्त्यलक्षणायै स्वाहा ।
२. ॐ अव्यक्तायै स्वाहा ।
३. ॐ अर्थमातृ-महेश्वर्यै स्वाहा ।
४. ॐ अमृतार्णवमध्यस्थायै स्वाहा ।
५. ॐ अजितायै स्वाहा ।
६. ॐ अपराजितायै स्वाहा ।
७. ॐ अणिमादिगुणाधारायै स्वाहा ।
८. ॐ अर्कमण्डलसंस्थितायै स्वाहा ।
९. ॐ अजरायै स्वाहा ।
१०. ॐ अजायै स्वाहा ।
११. ॐ अपरायै स्वाहा ।
१२. ॐ अधर्मायै स्वाहा ।
१३. ॐ अक्षसूत्रधरायै स्वाहा ।
१४. ॐ अधरायै स्वाहा ।
१५. ॐ अकारादिक्षकारान्तायै स्वाहा ।
१६. ॐ अरिषड्वर्गभेदिन्यै स्वाहा ।
१७. ॐ अञ्जनादिप्रतीकाशायै स्वाहा ।
१८. ॐ अञ्जनाद्रिनिवासिन्यै स्वाहा ।
१९. ॐ अदित्यै स्वाहा ।
२०. ॐ अजपायै स्वाहा ।
२१. ॐ अविद्यायै स्वाहा ।
२२. ॐ अरविन्दनिभेक्षणायै स्वाहा ।
२३. ॐ अन्तर्बहिः स्थितायै स्वाहा ।
२४. ॐ अविद्याध्वंसिन्यै स्वाहा ।
२५. ॐ अन्तरात्मिकायै स्वाहा ।
२६. ॐ अजायै स्वाहा ।
२७. ॐ अजमुखावासायै स्वाहा ।
२८. ॐ अरविन्दनिभाननायै स्वाहा ।
२९. ॐ अर्धमात्रायै स्वाहा ।
३०. ॐ अर्थदानज्ञायै स्वाहा ।
३१. ॐ अरिमण्डलमर्दिन्यै स्वाहा ।
३२. ॐ असुरघ्न्यै स्वाहा ।
३३. ॐ अमावास्यायै स्वाहा ।
३४. ॐ अलक्ष्मीघ्नन्त्यै स्वाहा ।
वास्तुहवनम्
ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्स्वावेशो अनमी वो भवा नः । यत्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ।
१. ॐ शिखिने स्वाहा ।
२. ॐ पर्जन्याय स्वाहा ।
३. ॐ जयन्ताय स्वाहा ।
४. ॐ कुलिशायुधाय स्वाहा ।
५. ॐ सूर्याय स्वाहा ।
६. ॐ सत्याय स्वाहा ।
७. ॐ भृशाय स्वाहा ।
८. ॐ आकाशाय स्वाहा ।
९. ॐ वायवे स्वाहा ।
१०. ॐ पूषणे स्वाहा ।
११. ॐ वितथाय स्वाहा ।
१२. ॐ गृहक्षताय स्वाहा ।
१३. ॐ यमाय स्वाहा ।
१४. ॐ गन्धर्वाय स्वाहा ।
१५. ॐ भृङ्गराजाय स्वाहा ।
१६. ॐ मृगाय स्वाहा ।
१७. ॐ पितृभ्यो स्वाहा ।१८. ॐ दौवारिका स्वाहा ।
१९. ॐ सुग्रीवाय स्वाहा ।
२०. ॐ पुष्पदन्ताय स्वाहा ।
२१. ॐ वरुणाय स्वाहा ।
२२. ॐ असुराय स्वाहा ।२३. ॐ शेषाय स्वाहा ।
२४. ॐ पापाय स्वाहा ।
२५. ॐ रोगाय स्वाहा ।२६. ॐ अहये स्वाहा ।
२७. ॐ मुख्याय स्वाहा ।
२८. ॐ भल्लाटाय स्वाहा ।२९. ॐ सोमाय स्वाहा ।
३०. ॐ सर्पेभ्यो स्वाहा ।
३१. ॐ आदित्यै स्वाहा ।
३२. ॐ दित्यै स्वाहा ।
३३. ॐ अद्भ्यो स्वाहा ।
३४. ॐ आपवत्साय स्वाहा ।
३५. ॐ अर्य्यमणे स्वाहा ।
३६. ॐ सावित्राय स्वाहा ।३७. ॐ सवित्रे स्वाहा ।
३८. ॐ विवस्वते स्वाहा ।३९. ॐ वबुधाधिपाय स्वाहा ।
४०. ॐ जयन्ताय स्वाहा ।४१. ॐ मित्राय स्वाहा ।
४२. ॐ राजयक्ष्मणे स्वाहा ।
४३. ॐ रुद्राय स्वाहा ।४४. ॐ पृथ्वीधराय स्वाहा ।
४५. ॐ ब्रह्मणे स्वाहा ।
४६. ॐ चरक्यै स्वाहा ।४७. ॐ विदार्य्यै स्वाहा ।
४८. ॐ पूतनायै स्वाहा ।
४९. ॐ पापराक्षस्यै स्वाहा ।
५०. ॐ स्कन्दाय स्वाहा ।
५१. ॐ अर्य्यमणे स्वाहा ।
५२. ॐ जृम्भकाय स्वाहा ।
५३. ॐ पिलिपिच्छाय स्वाहा ।
५४. ॐ इन्द्राय स्वाहा ।५५. ॐ अग्नये स्वाहा ।
५६. ॐ यमाय स्वाहा ।
५७. ॐ निर्ऋतये स्वाहा ।५८. ॐ वरुणाय स्वाहा ।
५९. ॐ वायवे स्वाहा ।
६०. ॐ सोमाय स्वाहा ।
६१. ॐ ईश्वराय स्वाहा ।
६२. ॐ ब्रह्मणे स्वाहा ।
६३. ॐ अनन्ताय स्वाहा ।
FAQ : संपूर्ण हवन विधि
पूर्णाहुति मंत्र क्या है ?
हवन की शुरुआत कैसे करें ?
ओम पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
हवन करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए ?
ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा। ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते। ओम पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
निष्कर्ष
दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को संपूर्ण हवन विधि के बारे में बताया अगर आपने हमारे इस लेख को अच्छी तरह से पढ़ है तो आपको संपूर्ण हवन विधि मिल गई होगी अगर आप अपने घर में किसी भी प्रकार का हवन करवाते हैं तो इस संपूर्ण हवन विधि की आवश्यकता होती है. अगर आपके घर में हवन रहे है तो हमारे द्वारा दी गई इस संपूर्ण हवन विधि का प्रयोग जरूर करें इससे आपको काफी सारे लाभ प्राप्त होंगे उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी।